कल्पना कीजिए कि आप किसी रेलवे स्टेशन पर खड़े हों और अपनी मंजिल के लिए टिकट काउंटर से लेकर मोबाइल ऐप तक सब छान मारा हो, फिर भी मनचाही जगह की कोई ट्रेन न मिल रही हो. ऐसे में ज्यादातर लोग निराश होकर अपना सफर टाल देते हैं, लेकिन भारतीय रेलवे के नक्शे पर एक स्टेशन ऐसा भी है जहां पहुंचते ही मुसाफिरों की ये उलझन खत्म हो जाती है.
उत्तर प्रदेश का मथुरा जंक्शन देश का ऐसा रेलवे स्टेशन है, यहां आकर अहसास होता है कि जैसे पूरा हिंदुस्तान रेल पटरियों पर सिमट आया हो. जहां भी जाना हो और जिस दिशा में भी रुख करना हो, बस ट्रेन पकड़िए और बेफिक्र होकर निकल पड़िए.
मथुरा सिर्फ एक धार्मिक नगरी नहीं है, बल्कि भारतीय रेलवे का वो सबसे मजबूत जोड़ है, जो देश के उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम, चारों दिशाओं को एक साथ धागे में बांधता है. यही वजह है कि यहां हर वक्त मुसाफिरों की भीड़, अनाउंसमेंट की गूंज और पटरियों पर दौड़ती ट्रेनों का सिलसिला कभी नहीं थमता. यह जंक्शन कनेक्टिविटी का वो बेजोड़ नमूना है, जहां से शुरू होने वाला हर सफर मुसाफिर को देश के किसी न किसी नए और खूबसूरत कोने से मिला देता है.
सात रास्तों का वो जादुई जंक्शन जो देश को जोड़ता है
मथुरा जंक्शन की सबसे बड़ी खासियत इसकी वो सात पटरियां हैं, जो अलग-अलग दिशाओं में जाकर पूरे हिंदुस्तान का नक्शा पूरा करती हैं. आम तौर पर किसी भी बड़े स्टेशन से दो या तीन दिशाओं के लिए ट्रेनें निकलती हैं, लेकिन मथुरा का गणित थोड़ा अलग और दिलचस्प है. यहां से सात रेल रूट निकलते हैं, जो इसे देश के सबसे महत्वपूर्ण 'इंटरचेंज' में से एक बनाते हैं.
इसी वजह से अगर आप दिल्ली-मुंबई रूट पर हों या दिल्ली-चेन्नई की ओर जा रहे हों, मथुरा एक ऐसा पड़ाव बनकर सामने आता है, जहां से आप अपनी मंजिल के लिए कभी भी रास्ता बदल सकते हैं. यह स्टेशन एक तरह का 'रेलवे हब' है, जहां भारत के लगभग हर प्रमुख राज्य के लिए सीधी ट्रेन मौजूद रहती है.
यात्रियों के लिए क्यों है भरोसेमंद ठिकाना
अगर आप मथुरा जंक्शन के प्लेटफॉर्म्स पर नजर डालें, तो वहां आपको हिंदुस्तान की विविधता साफ दिखाई देगी. यहां कुल 10 प्लेटफॉर्म हैं और इन पर चौबीसों घंटे पैर रखने की जगह नहीं होती. इसका कारण यह है कि यहां ट्रेनों का आना-जाना इतनी तेजी से होता है कि स्टेशन कभी खाली नजर ही नहीं आता.
उत्तर मध्य रेलवे के आगरा डिवीजन का यह हिस्सा रेल मूवमेंट के मामले में बेहद व्यस्त माना जाता है. दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे महानगरों के साथ-साथ जयपुर, बेंगलुरु, लखनऊ और चंडीगढ़ जैसे शहरों के लिए यहां से ट्रेनों का ऐसा सिलसिला लगा रहता है कि मुसाफिरों को कभी यह फिक्र नहीं होती कि वे अपनी मंजिल तक कैसे पहुंचेंगे.
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इतिहास के पन्नों से निकलकर आधुनिक सफर का हमसफर
इस स्टेशन का रुतबा रातों-रात नहीं बना, बल्कि इसके पीछे सवा सौ साल का लंबा इतिहास है. मथुरा जंक्शन का आधिकारिक सफर वैसे तो 1904 में शुरू हुआ था, जब इसने एक प्रमुख ब्रॉड गेज स्टेशन के रूप में काम करना प्रारंभ किया. लेकिन इससे बहुत पहले, यानी 1875 में ही यहां रेल की सीटी गूंज चुकी थी. समय के साथ यह छोटा सा स्टेशन विकसित होता गया और आज यह भारत की कनेक्टिविटी की रीढ़ की हड्डी बन चुका है. पुरानी परंपराओं और कान्हा की भक्ति के बीच बसा यह आधुनिक रेलवे स्टेशन आज तकनीक और इतिहास का एक शानदार मिश्रण पेश करता है, जहां हर पत्थर और पटरी के पीछे एक लंबी कहानी छिपी है.