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इस गांव में लोगों के घर पर नहीं जलता कभी चूल्हा, आखिर 500 लोग कहां खाते हैं खाना

गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित चंदनकी गांव एक अनोखी मिसाल पेश करता है, जहां किसी भी घर में खाना नहीं बनता. यहां रहने वाले करीब 500 लोग रोजाना एक ही जगह पर, सामुदायिक रसोई में बना भोजन करते हैं.

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यहां घरों में नहीं जलता चूल्हा (सांकेतिक फोटो: Pixabay)
यहां घरों में नहीं जलता चूल्हा (सांकेतिक फोटो: Pixabay)

हमारा देश भारत विविधताओं से भरा है और हर जगह की अपनी एक अनोखी कहानी है. गुजरात में एक ऐसा ही हैरान कर देने वाला गांव है मेहसाणा जिले का चंदनकी. यहां की परंपरा सुनकर आप दंग रह जाएंगे, क्योंकि इस गांव में किसी भी घर में रसोई नहीं है और न ही लोग अपने घर में खाना बनाते हैं. यह कोई मजाक नहीं, बल्कि सच है. यहां रहने वाले 500 लोग रोजाना एक साथ, एक ही जगह पर सामुदायिक रसोई में बना खाना खाते हैं. यह परंपरा न सिर्फ खाना बनाने के बोझ को कम करती है, बल्कि पूरे गांव में एकता और भाईचारे को भी बनाए रखती है.आइए जानते हैं, इस 'किचन फ्री' गांव की पूरी कहानी.

क्यों नहीं जलते घरों में चूल्हे?

चंदनकी गांव के लोगों ने मिलकर यह नियम इसलिए बनाया, क्योंकि यहां की ज्यादातर आबादी बुजुर्गों की है. गांव के युवा नौकरी या कारोबार के लिए शहरों और विदेशों में जा चुके हैं. ऐसे में पीछे रह गए बुजुर्गों के लिए रोजाना अलग-अलग घरों में खाना बनाना एक बड़ी मुश्किल बन गया था. ऐसा कहा जाता है कि इस परेशानी को दूर करने के लिए, गांव के लोगों ने सामूहिक रूप से एक फैसला लिया कि क्यों न सब मिलकर एक जगह खाना बनाएं और साथ में खाएं? जो शुरुआत में एक जरूरत थी, आज वो इस पूरे गांव की पहचान बन चुकी है.

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सामुदायिक रसोई की शुरुआत और सेवा

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गांव के सरपंच पूनम भाई पटेल ने इस सामुदायिक रसोई की सोच को आगे बढ़ाया. इसका मुख्य लक्ष्य बुजुर्गों की सुविधा था, पर धीरे-धीरे यह पूरी आबादी की जीवनशैली बन गई. गांव में फिलहाल 500 के आसपास लोग रहते हैं, जो रोज एक तय जगह पर बैठकर भोजन करते हैं. हालांकि यह सेवा मुफ्त नहीं है. गांव में रहने वाले हर व्यक्ति को महीने में लगभग दो हजार रुपये देने होते हैं, जिससे रसोई चलती है. खाना बनाने के लिए रसोइयों को रखा गया है, जिन्हें हर महीने करीब 11,000 रुपये का वेतन दिया जाता है. इस सामुदायिक रसोई में रोज दाल-चावल, सब्जी, रोटी और जरूरत के हिसाब से हेल्दी खाना तैयार किया जाता है.

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एकता और सादगी की मिसाल

चंदनकी गांव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां लगभग 50-60 ग्रामीण रोज मिलकर खाना बनाने में हाथ बटाते हैं, ताकि किसी एक व्यक्ति पर सारा बोझ न पड़े. खास मौकों पर तरह-तरह के विशेष व्यंजन भी तैयार किए जाते हैं, जिन्हें सभी मिलकर आनंद लेते हैं. इस अनूठी व्यवस्था से गांव का माहौल एक बड़े परिवार जैसा बना रहता है. सब लोग साथ खाते हैं, साथ हंसते हैं और मिल-जुलकर रहने से जीवन और भी खूबसूरत हो जाता है. चंदनकी गांव दिखाता है कि अगर गांव वाले मिलकर किसी समस्या का समाधान निकालें, तो वह एक बेहतरीन परंपरा बन सकती है.

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