भारत हमेशा से ऐसी सेनाओं के बीच रहा है जहां ऊंचाई वाले इलाकों और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में लड़ाई लड़नी पड़ती है. खासकर लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे इलाकों में चीन से लगी सीमाओं पर आधुनिक और हल्के टैंकों की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी. इसी जरूरत को ध्यान में रखते हुए भारत ने अपना खुद का हल्का टैंक “जोरावर” बनाया (Zorawar Tank).
इस टैंक का नाम जोरावर सिंह के नाम पर रखा गया है, जो 19वीं सदी के प्रसिद्ध डोगरा योद्धा और जनरल थे. उन्होंने लद्दाख और तिब्बत के कठिन इलाकों में युद्ध करके भारत की सीमाओं की रक्षा की थी. इसलिए इस टैंक को भी उनकी बहादुरी और जज्बे से जोड़कर नाम दिया गया है.
जोरावर टैंक को लार्सन एंड टुब्रो (L&T) और DRDO (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) ने मिलकर तैयार किया है. यह पूरी तरह से Make in India और Atmanirbhar Bharat का हिस्सा है. लद्दाख में 2020 के भारत-चीन विवाद के दौरान भारत ने देखा कि चीन ने वहां हल्के टैंक (Type-15) तैनात कर दिए, जबकि भारत के पास उस तरह के टैंक नहीं थे.
हमारे पास ज्यादातर T-72 और T-90 जैसे भारी टैंक थे, जिन्हें ऊंचाई वाले इलाकों में ले जाना और चलाना मुश्किल होता है. इसी वजह से हल्के, तेज और पहाड़ी इलाकों में आसानी से चलने वाले टैंक की जरूरत पड़ी.
2023-24 में इस टैंक का लद्दाख की ऊंचाई पर परीक्षण किया गया. टेस्ट सफल रहा और सेना ने इसे लेकर संतोष जताया. आने वाले समय में इसे सीमावर्ती इलाकों में तैनात किया जाएगा.
यह टैंक भारत के लिए खासकर चीन सीमा पर गेम-चेंजर साबित हो सकता है. दुर्गम इलाकों में दुश्मन की हरकतों पर तुरंत जवाब देने में मदद करेगा. भारत को हल्के टैंकों के मामले में आत्मनिर्भर बनाएगा और विदेशी टैंकों पर निर्भरता घटाएगा.
डोगरा योद्धा जोरावर सिंह जम्मू कश्मीर के महाराजा रणजीत सिंह के सेनापति और भरोसेमंद साथी थे. सैन्य कौशल और नेतृत्व क्षमता ने जोरावर सिंह को देश का महान सेनानायक बनाया. जोरावर सिंह की तुलना नेपोलियन बोनापार्ट से भी की जाती है, क्योंकि दोनों ही योद्धाओं ने अपनी सैन्य क्षमताओं विरोधियों को पराजित किया और अपनी सीमाओं का विस्तार किया.