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जम्मू-कश्मीर की 4 राज्यसभा सीटों पर चुनाव, गवर्नर के एक दांव से बदल सकता है सीन

जम्मू-कश्मीर की चार राज्यसभा सीटों पर चार साल बाद चुनाव हो रहे हैं, जिसके लिए 24 अक्टूबर को वोटिंग है. विधानसभा में विधायकों की संख्या के आधार पर तीन सीटें नेशनल कॉफ्रेंस आसानी से जीत लेगी, लेकिन चौथी सीट पर मुकाबला काफी रोचक हो सकता है. ऐसे में निगाहें राज्य के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा पर टिकी हुई हैं.

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राज्यसभा चुनाव में मनोज सिन्हा का एक दांव कैसे बदलेगा गेम(Photo-ITG)
राज्यसभा चुनाव में मनोज सिन्हा का एक दांव कैसे बदलेगा गेम(Photo-ITG)

जम्मू-कश्मीर में चार राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है. विधानसभा में विधायकों की संख्याबल के लिहाज़ से तीन सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व वाले गठबंधन और एक सीट भाजपा (बीजेपी) जीत सकती है, लेकिन चुनाव आयोग ने चार राज्यसभा सीटों के लिए अलग-अलग मतदान कराने का ऐलान करके मुक़ाबले को रोचक बना दिया है.

फ़रवरी 2021 से ख़ाली चल रही जम्मू-कश्मीर की चार राज्यसभा सीटों पर 24 अक्टूबर को चुनाव होंगे. ये सीटें पीडीपी के मीर मोहम्मद फ़ैयाज़ और नज़ीर अहमद लावे, भाजपा के शमशेर सिंह और कांग्रेस के पूर्व नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद के पास थीं. अब इन चार राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव आयोग ने तीन अलग-अलग अधिसूचनाएं जारी की हैं.

चुनाव आयोग के मुताबिक़, चार राज्यसभा सीटों पर अलग-अलग चुनाव होंगे, जिसमें पहली दो सीटों के लिए अलग-अलग वोटिंग होगी, जबकि शेष दो सीटों पर संयुक्त मतदान होगा. इस तरह राज्यसभा के लिए तीन चुनाव (एक, एक और दो सीटों के लिए अलग वोटिंग) होंगे.

दरअसल, राज्यसभा की प्रत्येक रिक्त सीट तकनीकी रूप से एक अलग चुनाव चक्र के अंतर्गत आती है. ऐसे में विधानसभा के नंबर गेम के साथ प्रथम वरीयता और दूसरी वरीयता की वोटिंग का भी अहम रोल होगा.

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जम्मू-कश्मीर विधानसभा का नंबर गेम

राज्यसभा चुनाव में विधायक मतदान करते हैं, जिसके चलते विधानसभा का नंबर गेम काफ़ी अहम हो जाता है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 90 सीटें हैं, जिसमें से दो सीटें बडगाम और नगरोटा ख़ाली हैं. इस लिहाज़ से विधानसभा में फ़िलहाल 88 विधायक हैं, जिसमें सत्ताधारी नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन के पास कुल 53 सदस्यों का समर्थन है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के 41, कांग्रेस के 6, निर्दलीय 5 और सीपीआई (एम) के एक विधायक हैं.

वहीं, भाजपा के पास 28 विधायक हैं. इसके अलावा 6 विधायक (कश्मीर की छोटी पार्टियों और निर्दलियों से) न तो भाजपा के साथ हैं और न ही नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन के साथ. इसमें 3 पीडीपी, 1 पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और 2 निर्दलीय विधायक (शब्बीर कुले और शेख़ ख़ुर्शीद) शामिल हैं. इसके अलावा, आम आदमी पार्टी के मेहराज मलिक को जोड़ने पर यह संख्या 7 हो जाती है. मेहराज मलिक इस समय पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत हिरासत में हैं.

राज्यसभा सीट जीतने का नंबर गेम क्या है?

विधानसभा की संख्याबल के आधार पर नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन पहले दो सीटों पर आसानी से जीत दर्ज कर लेगा, क्योंकि उसके पास फ़िलहाल 53 विधायक हैं, जबकि भाजपा के पास 28 हैं. इस लिहाज़ से तीन सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन और एक सीट भाजपा जीत सकती है, लेकिन चार सीटों के लिए तीन अलग-अलग चुनाव होंगे. इस लिहाज़ से राज्यसभा चुनाव काफ़ी दिलचस्प हो गया है.

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हालाँकि, चार राज्यसभा सीटों के लिए तीन चुनाव हैं. पहले दो सीटों के लिए अलग-अलग चुनाव होंगे, जबकि बाकी की दो सीटों पर संयुक्त मतदान होगा. ऐसे में पहले जिन दो सीटों पर अलग-अलग चुनाव हैं, यदि भाजपा उम्मीदवार नहीं उतारती है, तो ये दोनों सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन निर्विरोध जीतेगा.

वहीं, तीसरी और चौथी सीट के लिए संयुक्त मतदान होगा. नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन तीसरी सीट के लिए 29 प्रथम वरीयता वोट आसानी से हासिल करेगा, जिससे उसके पास चौथी सीट के लिए 24 द्वितीय वरीयता वोट बचेंगे. भाजपा के पास 28 वोट होंगे, इसलिए वह चौथी सीट जीतने की स्थिति में है, लेकिन सभी की निगाहें निर्दलीय और अन्य वोटों के सियासी स्टैंड पर टिकी होंगी.

राज्यसभा चुनाव में क्या टर्निंग पॉइंट?

जम्मू-कश्मीर के राज्यसभा का चुनाव अलग-अलग सीट पर होने के चलते काफ़ी रोचक बन गया है. राज्यसभा चुनाव में निर्वाचित विधायक आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत एकल संक्रमणीय मत (एसटीवी) के ज़रिए मतदान करते हैं. विधायक प्रत्येक सीट के लिए अलग-अलग मतदान नहीं करते हैं. इसके बजाय, वे वरीयता क्रम में अलग-अलग उम्मीदवारों के नाम सूचीबद्ध करते हैं. निर्वाचित होने के लिए, एक उम्मीदवार को एक निश्चित संख्या में प्रथम वरीयता के वोट प्राप्त करने होते हैं, जो योग्यता सीमा है.

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वहीं, शेष वोट फिर उनकी निम्न वरीयता रैंकिंग के आधार पर अन्य उम्मीदवारों को हस्तांतरित कर दिए जाते हैं. इस तरह विधायक अपनी पार्टी के अलावा अन्य दल के उम्मीदवारों का भी समर्थन कर सकते हैं. हालाँकि, दूसरी या बाद की वरीयता वैकल्पिक होती है, लेकिन अलग-अलग सीट पर चुनाव होने से राज्यसभा का सीन बदल गया है.

जम्मू-कश्मीर की जिन 4 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, उनमें पहली दो सीटों के लिए अलग-अलग चुनाव है, जबकि बाकी दो सीटों के लिए संयुक्त मतदान होगा. ऐसे में एक-एक सीट पर होने वाले चुनाव में एसटीवी के तहत एक सीट का चुनाव जीतने के लिए कुल 88 सदस्यों में से 45 विधायकों के मतों की आवश्यकता होगी, जबकि दो सीटों पर एक साथ होने वाले चुनाव जीतने के लिए 30 मतों की आवश्यकता होती है. हालाँकि, अगर राज्यपाल 5 विधायकों को मनोनीत कर देते हैं तो फिर सीट जीतने का नंबर गेम बदल जाएगा.

किसका सियासी पलड़ा रहेगा भारी?

जम्मू-कश्मीर में फ़िलहाल 88 विधायक हैं, जिसके लिहाज़ से अगर एक-एक सीट पर चुनाव होंगे तो दोनों सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस जीत लेगी. इसके बाद जिन दो सीटों पर संयुक्त चुनाव होंगे तो उसमें एक सीट आसानी से जीत लेगी और दूसरी सीट के लिए भाजपा से फ़ाइट करनी होगी. ऐसे में निर्दलीय और अन्य पार्टियों के विधायकों का रोल अहम हो जाएगा.

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उपराज्यपाल अधिकतम पाँच विधायकों को मनोनीत कर सकते हैं. राज्यसभा चुनाव से पहले गवर्नर अगर विधायकों को मनोनीत कर देते हैं तो फिर राज्यसभा चुनाव का नंबर गेम बदल जाएगा. 5 सदस्य मनोनीत होते हैं तो फिर विधानसभा का आँकड़ा 93 का हो जाएगा. इस स्थिति में एक सीट जीतने के लिए 47 विधायकों का वोट चाहिए. वहीं, दो सीटों पर संयुक्त रूप से होने वाले चुनाव में 31 विधायकों की ज़रूरत होगी.

अगर राज्यपाल मनोनीत करते हैं तो वे सदस्य भाजपा के लिए मतदान करेंगे. इस लिहाज़ से राज्यसभा की तीन सीटें नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन और एक सीट भाजपा जीत लेगी. कांग्रेस कोशिश में लगी है कि उसे एक सीट नेशनल कॉन्फ्रेंस दे दे. इस तरह सियासी शह-मात का खेल शुरू हो गया है और गठजोड़ भी बनाए जा रहे है.

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