मोहम्मद शाहिद (Mohammad Shahid) का जन्म वाराणसी के एक छोटे से होटल मालिक के घर हुआ था. उनका परिवार बनारस के अर्दाली बाजार क्षेत्र में रहता था. शाहिद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में ही प्राप्त की और बाद में लखनऊ के स्पोर्ट्स कॉलेज में हॉकी की शिक्षा ली. यहीं से उनकी हॉकी यात्रा की शुरुआत हुई, और वे भारतीय हॉकी के सितारे बने.
शाहिद ने 1979 में फ्रांस में आयोजित जूनियर वर्ल्ड कप में भारत का प्रतिनिधित्व किया और अपनी शानदार प्रदर्शन से चयनकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया. इसके बाद, उन्होंने 1980 के मॉस्को ओलंपिक में भारतीय टीम के सदस्य के रूप में स्वर्ण पदक जीता. वे 1980, 1984 और 1988 के ओलंपिक खेलों में भारतीय टीम का हिस्सा रहे और 1980 के ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा थे.
इसके अलावा, उन्होंने 1982 के एशियाई खेलों में रजत पदक और 1986 के एशियाई खेलों में कांस्य पदक भी जीते. उनकी ड्रिब्लिंग कला और तेज़ गति ने उन्हें एक अद्वितीय खिलाड़ी बना दिया.
शाहिद को उनकी अद्वितीय ड्रिब्लिंग शैली के लिए जाना जाता है. उन्होंने "हाफ पुश-हाफ हिट" नामक एक तकनीक विकसित की, जो उनके बाद के खिलाड़ियों के लिए एक मानक बन गई. उनकी साझेदारी ज़फर इकबाल के साथ मैदान पर अत्यधिक प्रभावी थी, और दोनों की समझदारी ने भारतीय टीम की आक्रमण क्षमता को बढ़ाया.
उन्हें अर्जुन पुरस्कार (1980-81), पद्मश्री (1986) से सम्मानित किया गया था. वे 1980 के कराची चैंपियंस ट्रॉफी में सर्वश्रेष्ठ फॉरवर्ड खिलाड़ी रहे और 1986 के एशियाई खेलों में एशियाई ऑल-स्टार टीम में चयन हुआ था.
शाहिद ने 1990 में परवीन से विवाह किया और उनके दो बच्चे हैं- सैफ और हिना. वे भारतीय रेलवे में खेल अधिकारी के रूप में कार्यरत थे और अपने जीवन के अंतिम वर्षों में वाराणसी में ही निवास कर रहे थे.
20 जुलाई 2016 को मोहम्मद शाहिद का निधन गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में हुआ था. वे गंभीर किडनी और लीवर की बीमारियों से जूझ रहे थे. उनके निधन पर भारतीय हॉकी जगत ने गहरा शोक व्यक्त किया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की.
मोहम्मद शाहिद न केवल एक महान खिलाड़ी थे, बल्कि उन्होंने भारतीय हॉकी को नई दिशा और पहचान दी.
पूर्व हॉकी खिलाड़ी और पद्मश्री से सम्मानित ओलंपियन स्व. मो. शाहिद का पुस्तैनी मकान सड़क चौड़ीकरण में तोड़ दिया गया. परिवार ने प्रशासन से शादी तक मोहलत और मुआवजे में बढ़ोतरी की मांग की थी, लेकिन कार्रवाई तय समय पर हुई. मकान को धरोहर बनाने की मांग भी परिवार ने उठाई है.