मां पार्वती (Maa Parvati) हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं, जो भगवान शिव की अर्धांगिनी और शक्ति की साक्षात मूर्ति मानी जाती हैं. वे त्रिदेवी- सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती में से एक हैं और दुर्गा, काली, गौरी, अन्नपूर्णा, चंडी, भवानी, कात्यायनी जैसे अनेक रूपों में पूजी जाती हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने राजा हिमवान और रानी मैना के घर जन्म लिया था. उन्हें "हिमालय पुत्री" और "गिरिजा" भी कहा जाता है. पूर्वजन्म में वे सती थीं, दक्ष प्रजापति की पुत्री और शिवजी की पत्नी, जिन्होंने अपने पिता द्वारा शिव का अपमान सहन न कर आत्मदाह कर लिया. सती ने पुनः पार्वती के रूप में जन्म लेकर भगवान शिव को फिर से पति रूप में प्राप्त किया.
माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए हजारों वर्षों तक घोर तपस्या की. उन्होंने कठिन व्रत और साधना कर यह सिद्ध किया कि प्रेम, समर्पण और धैर्य से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया. यह विवाह काशी, कैलाश और हिमालय के बीच की दिव्य गाथा है, जो आज भी शिव-पार्वती के विवाह के रूप में आदर्श माना जाता है.
पार्वती जी को 'शक्ति स्वरूपा' कहा जाता है. जब संसार में अधर्म बढ़ा और दैत्य अत्याचार करने लगे, तब उन्होंने विभिन्न रूपों में उनका संहार किया, जिसमें दुर्गा के रूप में महिषासुर का वध, काली के रूप में राक्षसों का संहार, अन्नपूर्णा के रूप में अन्न का दान, गौरी के रूप में सौंदर्य और मातृत्व की मूर्ति प्रमुख है. इन रूपों से यह सिद्ध होता है कि माता पार्वती कोमलता और कठोरता दोनों की प्रतीक हैं.
माता पार्वती केवल शक्ति की देवी नहीं, एक आदर्श गृहिणी और मां भी हैं. वे भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की माता हैं. उनका पारिवारिक जीवन यह सिखाता है कि ईश्वर भी परिवार, प्रेम, सेवा और जिम्मेदारियों से जुड़ा होता है.