चाबहार पोर्ट (Chabahar Port) ईरान में स्थित है. यह ईरान का एकमात्र समुद्री बंदरगाह है और इसमें शाहिद कलंतरी और शाहिद बेहेश्टी नाम के दो अलग-अलग पोर्ट्स शामिल हैं. प्रत्येक में पांच बर्थ हैं. यह पाकिस्तानी पोर्ट ग्वादर से लगभग 170 किलोमीटर दूर पश्चिम में है.
इस पोर्ट के विकास का प्रस्ताव सबसे पहले 1973 में ईरान के अंतिम शाह ने रखा था. इस पोर्ट का पहला चरण 1983 में ईरान-इराक युद्ध के दौरान खोला गया था. ईरान ने फारस की खाड़ी में पोर्ट्स पर निर्भरता कम करने के लिए समुद्री व्यापार को पाकिस्तानी सीमा की ओर स्थानांतरित करना शुरू किया था.
भारत और ईरान ने पहली बार 2003 में शाहिद बेहेश्टी पोर्ट को और विकसित करने की योजना पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन ईरान के खिलाफ प्रतिबंधों के कारण ऐसा नहीं हो पाया. 2016 तक, बंदरगाह में दस बर्थ हैं. मई 2016 में, भारत और ईरान ने एक द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें भारत शाहिद बेहेश्टी बंदरगाह पर एक बर्थ का नवीनीकरण करेगा और 600 मीटर लंबी कंटेनर हैंडलिंग सुविधा का पुनर्निर्माण करेगा.
बंदरगाह का उद्देश्य आंशिक रूप से भारत और अफगानिस्तान के बीच व्यापार के लिए एक ऑप्शन प्रदान करना है क्योंकि यह पाकिस्तान के कराची बंदरगाह की तुलना में अफगानिस्तान की सीमा से 800 किलोमीटर करीब है.
अक्टूबर 2017 में, भारत का अफगानिस्तान को गेहूं का पहला शिपमेंट चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भेजा गया था. दिसंबर 2018 में, भारत ने बंदरगाह का संचालन अपने हाथ में ले लिया (India-Iran).
भारत और अमेरिका के रिश्तों में बढ़ा तनाव कम होता नजर आ रहा है. फॉरेन मिनिस्ट्री ने बताया कि अमेरिका ने ईरान में स्थित चाबहार पोर्ट प्रोजेक्ट के लिए प्रतिबंधों से छूट की समय-सीमा बढ़ा दी है. चाबहार पोर्ट पर अमेरिकी प्रतिबंध से भारत को छय महीने की छूट मिली है.
ईरान के जिस चाबहार पोर्ट पर भारत अरबों डॉलर निवेश कर रहा है वो बंदरगाह पाकिस्तान में चीनी कैपिटल के दम पर बन रहे ग्वादर पोर्ट का काउंटर था. अमेरिका की ईरान से नहीं बनती है बावजूद इसके पूर्व अमेरिकी प्रशासन ने भारतीय कंपनियों को यहां काम करने की छूट दे रखी थी लेकिन भारत और पीएम मोदी को अपना बहुत करीबी दोस्त बताने वाले ट्रंप ने इस छूट को भी खत्म कर दिया.
ईरान का चाबहार पोर्ट रणनीतिक और व्यापारिक तौर पर भारत के लिए काफी अहम है. इसी वजह से पिछले साल भारत ने 10 साल के लिए इसके प्रबंधन को लेकर ईरान के साथ समझौता किया है. साथ ही पोर्ट के विकास में अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है. लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों से न सिर्फ ईरान बल्कि भारत के सामने चुनौतियों का अंबार खड़ा हो गया है.
अमेरिकी विदेश विभाग ने इसे लेकर सफाई भी दी है. विदेश विभाग ने कहा कि यह कदम ईरान सरकार और उसकी सैन्य गतिविधियों को बनाए रखने वाले अवैध वित्तीय नेटवर्क को बाधित करने के उसके व्यापक प्रयासों के अनुरूप है.
ईरान के साथ लंबे समय से भारत के रिश्ते बने हुए हैं और उसके साथ गहरे सांस्कृतिक और सभ्यतागत संबंध हैं. इसी तरह पिछले दशक में इजरायल के साथ भारत के संबंध, खासतौर पर डिफेंस और टेक्नोलॉजी सेक्टर में काफी मजबूत हुए हैं.
भारत के एक प्रतिनिधिमंडल ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए अफगानिस्तान के कार्यवाहक रक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब से मुलाकात की और उनके देश के व्यापारिक समुदाय के लिए ईरान स्थित चाबहार पोर्ट का उपयोग करने का प्रस्ताव दिया. इसके साथ ही भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने काबुल को मानवीय सहायता बढ़ाने पर भी चर्चा की.
ईरान का चाबहार बंदरगाह भारत के लिए बेहद अहम है लेकिन ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते इसके विकास में कभी तेजी नहीं आ पाई. अब भारत इस बंदरगाह पर तेजी से काम करना चाहता है. चुनाव के बाद इसे लेकर ईरान के साथ दीर्घकालिक समझौता होने वाला है.
अमेरिका के विदेश विभाग के प्रधान उप प्रवक्ता वेदांत पटेल से जब चाबहार पोर्ट को लेकर भारत और ईरान के एग्रीमेंट को लेकर सवाल किया गया तो पटेल ने कहा कि हम इन खबरों से वाकिफ हैं कि ईरान और भारत ने चाबहार पोर्ट को लेकर एक डील की है. भारत सरकार की अपनी विदेश नीति है. ईरान के साथ चाबहार पोर्ट को लेकर की गई डील और ईरान के साथ उनके द्विपक्षीय संबंधों को वह बेहतर तरीके से समझता है. लेकिन जहां तक अमेरिका की बात है. ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध जारी रहेंगे.
भारत और ईरान के बीच चाबहार पोर्ट को लेकर एक लॉन्ग-टर्म एग्रीमेंट हुआ है. इस समझौते के तहत अगले 10 साल तक भारत, ईरान के चाबहार पोर्ट का कामकाज संभालेगा. इस डील को चीन और पाकिस्तान के लिए झटका माना जा रहा है. वहीं, अमेरिका ने इसे लेकर चेतावनी दी है.
हाल ही मेें भारत ने ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह को लेकर समझौता किया है जिसके तहत भारत को 10 सालों तक बंदरगाह ऑपरेट करने का अधिकार मिल गया है. अमेरिका ने भारत को चेतावनी दी थी कि ईरान से इस समझौते की वजह से प्रतिबंधों का खतरा मंडरा सकता है. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजतक को दिए एक्सक्लूसिल इंटरव्यू में इस मुद्दे पर पहली बार टिप्पणी की है.