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कैसे बनाए जाते हैं युद्ध लड़ने वाले Drones... जानिए पूरा प्रॉसेस

India-Pakistan Latest News: भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव में बड़ी संख्या में ड्रोन्स का इस्तेमाल किया जा रहा है. दोनों ही देशों ने ड्रोन्स का इस्तेमाल किया है. हालांकि, भारत ने पाकिस्तान की ओर से भेजे गए ड्रोन्स को हवा में ही नष्ट कर दिया है. युद्ध में हिस्सा लेने वाले ड्रोन्स को बनाने में एक लंबी और जटिल प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है. आइए जानते हैं इसकी डिटेल्स.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है. शुक्रवार देर रात पाकिस्तान ने भारत में 26 जगहों पर हमले की कोशिश की, जिसे हमारी सेना ने विफल कर दिया. वहीं भारत ने पाकिस्तान के कई एयरबेस को निशाना बनाया है. दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थिति में बड़ी संख्या में ड्रोन्स का इस्तेमाल हो रहा है. 

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जंग में इस्तेमाल होने वाले ड्रोन यानी Unmanned Aerial Vehicles (UAV), लेटेस्ट टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग के जरिए तैयार किए जाते हैं. इन्हें बनाने में कई प्रक्रियाओं का इस्तेमाल होता है, जिनके बारे में हम स्टेप-बाय-स्टेप बात करेंगे. 

डिजाइन और प्लानिंग 

ड्रोन कई तरह के होते हैं. इसमें निगरानी, हमला और खोजी ड्रोन शामिल होते हैं. इन सभी प्रकार के ड्रोन्स का उद्देश्य अलग होता है और इनके निर्माण की प्रक्रिया भी. ड्रोन किस काम के लिए तैयार किया जा रहा है, इसके आधार पर उसका साइज, वजन, रेंज और दूसरे आस्पेक्ट को तय किया जाता है. 

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सभी पॉइंट्स को तय किए जाने के बाद इन ड्रोन्स का एक 3D मॉडल तैयार किया जाता है. इस डिजाइन में एयरोडायनैमिक्स, लोड क्षमता और उड़ान जैसे तमाम पहलुओं को चेक किया जाता है. इस डिजाइन को सॉफ्टवेयर की मदद से टेस्ट किया जाता है कि रियर लाइफ में ड्रोन कैसे काम करेगा. 

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प्रोटोटाइप बनाना 

ड्रोन को तैयार करने में किस मैटेरियल का इस्तेमाल होगा ये फाइनल किया जाता है. इसके लिए हल्के और मजबूत मैटेरियल का इस्तेमाल होता है. इसमें कार्बन फाइबर, एल्यूमिनियम या कंपोजिट मैटेरियल यूज किया जा सकता है. इसके साथ ही सेंसर, कैमरा, GPS मॉड्यूल और कम्युनिकेशन के लिए हाई-क्वालिटी इलेक्ट्रॉनिक्स को चुना जाता है. 

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अगर एक हमलावार ड्रोन बनाया जा रहा है तो उसमें किस हथियार का इस्तेमाल किया जाएगा. इस हिसाब से जरूरी डिजाइन जोड़ा जाता है. लेजर या गाइडेड बम के लिए स्पेशल माउंट जोड़ा जाता है, जिसमें जरूरत पड़ने पर इन हथियारों को इंस्टॉल किया जा सके. इन सभी डिटेल्स के आधार पर एक प्रोटोटाइप बनाया जाता है. प्रोटोटाइप में मोटर, बैटरी, प्रोपेलर और कंट्रोल प्रणाली जोड़ी जाती है. 

सॉफ्टवेयर और इलेक्ट्रॉनिक्स को जोड़ना 

ड्रोन को रात और दिन किसी भी परिस्थिति में काम करने के लिए तैयार किया जाता है. इसके लिए इसमें थर्मल इमेजिंग, नाइट विजन और हाई-रेज्योल्यूशन वाले कैमरों का इस्तेमाल किया जाता है. डिवाइस को रिमोट से कंट्रोल करने और ऑटोपायलट जैसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है. कुछ ड्रोन्स में AI का भी इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा सैटेलाइट और रेडियो कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी जोड़ी जाती है. 

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इसके अलावा ड्रोन को पावर देने के लिए पावर सिस्टम दिया जाता है. छोटे ड्रोन के लिए लिथियम-आयन बैटरी यूज की जाती है. वहीं बड़े ड्रोन के लिए जेट इंजन का इस्तेमाल किया जाता है. किस प्रकार का ड्रोन बनाया जा रहा है इस आधार पर प्रोपेलर या टर्बोफैन इंजन का इस्तेमाल होता है. 

टेस्टिंग और प्रोडक्शन 

सभी तैयारी के बाद ड्रोन की टेस्टिंग की जाती है. तेज हवा, बारिश और हाई टेम्परेचर जैसे तमाम पॉइंट्स को ध्यान में रखकर ड्रोन को विभिन्न परिस्थितियों में टेस्ट किया जाता है. अगर हमलावर ड्रोन है, तो उसकी एक्यूरेसी और इम्पैक्ट को भी टेस्ट किया जाता है. ये भी ध्यान रखा जाता है कि ड्रोन को हैकिंग से कैसे सुरशित रखा जाएगा. 

इन सभी परीक्षण के बाद ड्रोन का प्रोडक्शन शुरू किया जाता है. प्रोडक्शन के बाद ड्रोन की गुणवत्ता को चेक किया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में किसी भी एरर की गुंजाइश नहीं होती है. प्रोडक्शन और परीक्षण के बाद इन ड्रोन्स को तैनात किया जाता है.

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