इटली के एंटीट्रस्ट रेगुलेटर ने Apple पर करीब 115 मिलियन डॉलर्स (लगभग 950 करोड़ रुपये) का जुर्माना लगाया है. आरोप है कि Apple ने अपने App Store के ज़रिए अपनी ताक़त का गलत इस्तेमाल किया और थर्ड पार्टी ऐप डेवलपर्स के लिए मैदान बराबर नहीं रहने दिया. यह फ़ैसला ऐसे वक्त आया है जब पूरी दुनिया में बड़ी टेक कंपनियों की ताक़त पर सवाल उठ रहे हैं.
असल मामला Apple के App Tracking Transparency यानी ATT फीचर से जुड़ा है. Apple ने iPhone यूज़र्स को यह ऑप्शन दिया कि वे ऐप्स को अपनी एक्टिविटी ट्रैक करने से रोक सकते हैं. सुनने में यह यूज़र प्राइवेसी के लिए शानदार कदम लगता है और Apple ने भी इसे ऐसे ही पेश किया. लेकिन इटली के रेगुलेटर का कहना है कि Apple ने ये नियम सभी पर बराबर लागू नहीं किए.
रेगुलेटर के मुताबिक, थर्ड पार्टी ऐप्स को तो सख़्त ट्रैकिंग नियमों का पालन करना पड़ा, लेकिन ऐपल के अपने ऐप्स को उतनी सख़्ती का सामना नहीं करना पड़ा. यानी Apple ने प्राइवेसी के नाम पर ऐसा सिस्टम बना दिया, जिससे उसके अपने एड और सर्विस बिज़नेस को फ़ायदा मिला और बाकी डेवलपर्स पीछे छूट गए.
इसका सीधा असर डिजिटल ऐड इंडस्ट्री पर पड़ा. कई ऐप डेवलपर्स और ऐड कंपनियों ने पहले ही कहा था कि ATT के बाद उनके रेवेन्यू में भारी गिरावट आई. इटली के एंटीट्रस्ट बॉडी का मानना है कि Apple ने अपनी डॉमिनेंट पोज़िशन का इस्तेमाल कर कॉम्पिटिशन को नुकसान पहुंचाया, जो यूरोप के नियमों के खिलाफ़ है.
Apple ने इन आरोपों से इनकार किया है. कंपनी का कहना है कि App Tracking Transparency सभी डेवलपर्स पर बराबर लागू होता है और इसका मक़सद सिर्फ़ यूज़र्स को उनकी प्राइवेसी पर ज़्यादा कंट्रोल देना है. Apple के मुताबिक, प्राइवेसी कोई सौदे की चीज़ नहीं है, बल्कि एक बेसिक राइट है.
लेकिन सवाल सिर्फ़ Apple बनाम डेवलपर्स का नहीं है. यह मामला दिखाता है कि अब सरकारें और रेगुलेटर्स बड़ी टेक कंपनियों को बिना सवाल किए नहीं छोड़ने वाले. यूरोप पहले ही Google, Meta और Amazon जैसी कंपनियों पर कड़े कदम उठा चुका है. Apple पर लगा यह जुर्माना उसी सिलसिले की अगली कड़ी माना जा रहा है.
भारत के लिए भी यह कहानी अहम है. यहां लाखों ऐप डेवलपर्स Apple और Google जैसे प्लेटफॉर्म्स पर निर्भर हैं. अगर प्लेटफॉर्म मालिक अपने नियम अपने हिसाब से मोड़ते हैं, तो छोटे डेवलपर्स के पास शिकायत के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता. भारत में भी डेवेलपर्स ऐपल और गूगल पर आरोप लगाते आए हैं कि वो सिर्फ अपने इकोसिस्टम के ऐप्स को बढ़ावा देते हैं.