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संघ के 100 साल: नेहरू की वो चिट्ठियां जिनमें झलकता है पूर्व प्रधानमंत्री का RSS को लेकर नजरिया

प्रधानमंत्री होने के नाते नेहरूजी को देशभर संघ की गतिविधियों की खबर होती थी. उनके कई करीबी उन्हें पत्र भेजकर संघ पर अपने विचार लिखते. नेहरू कई पत्रों का जवाब देते और संघ के बारे में अपनी निजी राय जाहिर करते थे. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उन्हीं चिट्ठियों का मजमून.

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नेहरूजी को उनके करीबी RSS की गतिविधियों से अवगत कराते रहते थे. (Photo: AI generated)
नेहरूजी को उनके करीबी RSS की गतिविधियों से अवगत कराते रहते थे. (Photo: AI generated)

जब से राहुल गांधी की अगुवाई में नेहरू आर्काइव ऑनलाइन हुआ है, तब से देश के पहले प्रधानमंत्री के वो तमाम पत्र सामने आ रहे हैं, जिनसे पता चलता है कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सरसंघचालक गुरु गोलवलकर के किस हद तक विरोधी थे. नेहरू का ये विरोध उनके अंतिम समय तक जारी रहा. मई 1964 में उनके निधन से ठीक 2 महीने पहले यानी मार्च 1964 में गुरु गोलवलकर को अचानक गिरफ्तार कर लिया गया और फिर बाद में छोड़ भी दिया गया.

नेहरू आर्काइव से वो पत्र भी मिले हैं, जो उनकी पार्टी के नेता या अन्य करीबी लोग उन्हें लिखते थे. इनमें भी गुरु गोलवलकर के खिलाफ बातें हैं. शुरुआत नेहरू के सरदार पटेल को उस पत्र से जो 27 अक्तूबर 1948 को लिखा गया था.

इस पत्र में पंडित नेहरू ने लिखा “I remember Bapu telling me after his first meeting with Golwalkar that he was partly impressed by him but at the same time he did not trust him. After his second or third meeting he expressed a very strong opinion against Golwalkar and the R.S.S. and said that it was impossible to rely upon their word. They appear to be highly reasonable when talked to but they had no compunction in acting in exact contradiction to what they said. My own impression has been the same.” नेहरूजी के मुताबिक गोलवलकर ने प्रभावित तो किया, साथ ही ये भी कि उनकी बातें बहुत ज्यादा तार्किक लगती हैं, लेकिन उनकी बातों पर भरोसा करना मुमकिन नहीं है.

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इसी पत्र में सरदार पटेल को नेहरूजी ने ये भी बताया कि इंगलैंड के लोग RSS को कतई पसंद नहीं करते, एक साम्प्रदायिक संगठन मानते हैं, उनके शब्दों में, “Regarding the R.S.S., there is a widespread impression in England that they are Fascist, communal-minded people and any action we take in regard to them will be considered from this point of view.”  

पंडित नेहरू इस बात से भी परेशान रहते थे कि महाराष्ट्र में शुरू हुआ संगठन कश्मीर और पंजाब में कैसे इतना ताकतवर हो गया है, एक जगह तो वो लिखते भी हैं कि उनके लिए पंजाब से दिल्ली आना फिर मुश्किल नहीं. 23 सितम्बर 1953 को पंजाब के सीएम भीमसेन सच्चर को वह एक पत्र में लिखते हैं कि हमें रिपोर्ट मिली हैं कि जनसंघ के लोग पठानकोट में काफी सक्रिय हैं और बिना परमिट के ही बसौली के रास्ते कश्मीर में घुस रहे हैं. वो आगे लिखते हैं, “ Some vague reports have even reached me that some arms were being collected in Pathankot with the intention of sending them to Jammu. Golwalkar is visiting Pathankot in the course of the next few days, after going to Mandi, etc., where there are some municipal by-elections”.

पहले आम चुनाव में जनसंघ के जो 3 सांसद चुने गए थे, उनमें से एक थे चित्तौड़ के सांसद यूएम त्रिवेदी. उनके एक पत्र का जवाब देते हुए पंडित नेहरू ने लिखा था कि, “मुझे डर है कि आरएसएस आंदोलन के बारे में जो जानकारी मुझे अक्सर मिलती रही है, वह आपके अपने मूल्यांकन से मेल नहीं खाती. मैं व्यक्तिगत दुर्व्यवहारों की बात नहीं कर रहा हूं, बल्कि उनके पीछे छिपे दर्शन की बात कर रहा हूँ, जो सत्तावादी भी है और हिंसा की ओर भी ले जाता है. हमारे सामने ऐसे कई उदाहरण हैं. यदि आप चाहें तो मेरा पत्र श्री एम.एस. गोलवलकर को ज़रूर भेज सकते हैं।“.  
 
गुरु गोलवलकर से मिलने वाले अधिकारी को नेहरूजी ने यूं चेताया

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एक बार पंडित नेहरू को जब पता चला कि एक सिविल सर्विस अधिकारी आर के पाटिल जो उस वक्त फूड कॉरपोरेशन से जुड़े थे, ने संघ से प्रतिबंध हटने के बाद गुरु गोलवलकर से मिलकर फूड कॉरपोरेशन के कार्यक्रम में स्वयंसेवकों की सहायता मांगी है तो पंडित नेहरू ने उस अधिकारी को सभ्य भाषा में चेताया. उन्होंने 22 अगस्त 1949 के पत्र में लिखा कि, “My dear Patil, I am told that you are meeting Shri Golwalkar, the leader of the R.S.S. and that it has been announced that you have invited the R.S.S. to cooperate in the food campaign and give volunteers for it. We want everybody’s cooperation in the business. But we have to be very careful how to associate ourselves with the R.S.S. Any close association in this may be exploited for a wrong purpose and party politics may come into play.” .
 
नेहरू को भी मिलते थे गोलवलकर के खिलाफ पत्र

मृदुला साराभाई का 17 दिसम्बर 1962 का नेहरूजी का पत्र मिला है, जिसमें वो लिखती हैं कि कानाफूसी अभियान के रूप में भद्दी अफवाहें फैल रही हैं, जम्मू कश्मीर के तत्काकालीन प्रधानमंत्री गुलाम मोहम्मद बख्शी और कुछ कांग्रेसी सांसदों ने जनसंघ और आरएसएस को "कश्मीर को पाकिस्तान के हवाले होने से बचाने" के लिए एक आंदोलन शुरू करने के लिए उकसाया है. इस आंदोलन की घोषणा 24 दिसंबर को गोलवलकर के जम्मू दौरे पर होने की संभावना है. गोलवलकर की यात्रा की योजना बख्शी साहब के यहां जनसंघ नेताओं से मुलाकात के बाद बनी थी और यह ठाकुर रघुनाथ सिंह की योजना है. 1952 के जनसंघ आंदोलन के पीछे काम करने वाला समूह एकजुट हो रहा है. इसके पीछे की वजह भी वो बताती हैं कि कैसे चीनी सेना के हमले के चलते तेजपुर (आसाम) में सबसे पहले मुस्लिम छोड़कर भागे तो इसे संघ के अखबार ऑर्गनाइजर और हिंदुस्तान स्टैंडर्ड ने मुद्दा बनाकर सीमा पर बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या पर सवाल उठाए हैं.

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मृदुला सारा भाई ने सारी स्थिति समझाते हुए नेहरूजी को इस पत्र के आखिर में लिखा, “ It would have been better if Golwalkar’s meeting was not allowed to be held in Jammu because whatever he says is bound to instigate and excite the Pakistanis and their greater pressure will be on Western powers that the Kashmir Valley Muslims are at the mercy of fanatic Hindus and are in great danger of annihilation. Therefore, Western powers must, at any cost, go to the protection of Kashmiris.”
 
ऐसा ही एक दूसरा पत्र राज्य सभा सदस्य रहे एम आर शेरवानी का मिला है, 31 जुलाई 1963 को उन्होंने नेहरूजी को भेजे इस पत्र में लिखा है गोलवलकर एक पत्रिका की 10 हजार कॉपियां बंटवा रहे हैं, दावा कर रहे हैं कि हम केवल अंग्रेजों के गुलाम नहीं थे, बल्कि 1000 साल से गुलाम हैं. वो आगे लिखते हैं कि, “He does not realise that if this philosophy is stretched further even Ashok and Chandra Gupta could be considered foreigners by a certain section of the people, as their forefathers came to India originally as invaders.”  ये पत्र नेहरूजी ने गृहमंत्री शास्त्रीजी को भेज दिया था.
 
गोलवलकर के जन्मोत्सव की धूम पर नेहरू की नाखुशी

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गुरु गोलवलकर का 51वां जन्मदिन जब पूरे देश में मनाए जाने की जानकारी पंडित नेहरू को मिली थी, तब भी वो परेशान हो गए थे. 12 फरवरी के एक अखबार की खबर में बताया गया था कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के पूर्व प्रो-वीसी श्यामा चरण डे के साथ साथ कुछ कॉलेजों के प्रधानाचार्यों व प्रोफेसरों ने गुरु गोलवलकर के 51वें जन्मदिन पर ज्यादा से ज्यादा धन सहयोग की अपील की थी ताकि 8 मार्च को अधिकतम राशि खुद गुरु गोलवलकर को सौंपी जा सके. 14 फरवरी 1956 को उन्होंने जो पत्र उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सम्पूर्णानंद को लिखा, उन्हीं के शब्दों में पढ़िए, “My dear Sampurnanand, From the enclosed cutting from the Leader,  it would appear that the Banaras Hindu University is practically run by the R.S.S. group. It is really extraordinary that all this galaxy of principals, professors, teachers, etc., should function in this way.” हालांकि नेहरूजी ने पत्र में इस बात को नजरअंदाज किया कि इन प्रोफेसर्स में से ज्यादातर कभी गुरु गोलवलकर के साथ ही बीएचयू में पढ़ाते रहे थे. उनके लिए वो संघ प्रमुख नहीं बल्कि पूर्व साथी प्रोफेसर थे.

चीन से बुरी हार के बाद तो नेहरू और भी ज्यादा इस तरह की खबरों पर नजर रखने लगे थे. एक बार उन्हें पता चला कि किसी ने गुरु गोलवलकर के भाषणों के अलग अलग हिस्सों को निकालकर एक पुस्तिका बनाई है और उसे नाम दिया है, “हिंदू राष्ट्र क्यों?” और उसे बंगलौर में बांटा जा रहा है तो उन्होंने तुरंत गृहमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को पत्र लिख दिया था. इस पत्र में लिखा था कि, “My dear Lal Bahadur, This is just to remind you about the book Why Hindu Rashtra which has been published from Bangalore and which contains extracts from speeches of Golwalkar. hope you will have this book examined and if necessary take action against it.”
 
हिंदू संगठनों पर नजर रखने के लिए इंटेलीजेंस

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नेहरू ने गृहमंत्रालय को 8 दिसम्बर 1952 को एक पत्र लिखा. इस पत्र वो जम्मू क्षेत्र में जनसंघ, हिंदू महासभा औऱ खासतौर पर प्रजा परिषद मूवमेंट पर नजर रखने की बात करे रहे हैं. इस पत्र में वो दावा कर रहे हैं कि कैसे जम्मू से पंजाब के रास्ते ये लोग दिल्ली में उपद्रव फैलाने की तैयारी में हैं और पूरे देश को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं. उनके शब्दों में, “I have received some information about this, which is significant. The leaders of this movement are thinking of spreading out from Jammu into the Punjab first of all and then Delhi. They refer to it as a major movement against our Government to establish Hindu Rashtra all over India. The three allied topics are said to be Kashmir of course and the refugees of East Bengal especially and cow protection.”.
 
‘कश्मीर का भाग्य RSS नहीं, शेख अब्दुल्ला ही तय करेंगे’

कंवर दलीप सिंह उस वक्त कश्मीर में भारत सरकार के एजेंट जनरल थे. उनको 21 नवम्बर के लिखे एक खत में नेहरूजी ने जो लिखा था, उसमें संघ के प्रति उनके विरोध की हद दिखाता है. लेकिन कश्मीर को लेकर उन्होंने जो लिखा वो दिलचस्प है, उनके शब्दों में, “The fate of Kashmir is not going to be decided by the R.S.S., not even of Jammu, and the sooner this is appreciated the better. The only person in the State who, as an individual, will have the biggest say in the matter will be Sheikh Abdullah. If anyone can save Kashmir, it is he and not the R.S.S. or anyone else.” हालांकि पत्र में जिस शेख अब्दुल्ला पर वो इतना भरोसा जता रहे हैं, बाद में अमेरिका से मिलकर भारत से गद्दारी करने के आरोपों में उन्होंने खुद सालों तक जेल में रख दिया था.
 
गुरु गोलवलकर को नेहरू सरकार ने वर्मा (म्यांमार) जाने से रोका

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गुरु गोलवलकर 1963 में वर्मा (म्यांमार) के एक धार्मिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए पहली बार विदेश जाने के लिए तैयार हुए थे. लेकिन नेहरू सरकार ने इजाजत नहीं दी. इस सम्बंध में हुआ पत्राचार नेहरू आर्काइव से मिलता है. ये बात दिलचस्प है कि कैसे पूरा सिस्टम इस बात से परेशान हो गया था कि संघ प्रमुख विदेश यात्रा पर क्यों जाना चाहते हैं. क्या वहां नेहरूजी के खिलाफ बोलेंगे.

एक पत्र में इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) के डिप्टी डायरेक्टर ए जयराम लिख रहे हैं कि, ”Shri Golwalkar’s activities in India have often been hostile to the Govt. of India and lately he has been quite critical of the Prime Minister and he may indulge in the same type of undesirable speeches in Burma and Thailand. We consider that if he can be made to give an undertaking that he will confine his talks only to religious mattes, then only he may be allowed to go out”.  वो ये भी लिख रहे हैं कि विदेश मंत्रालय को भी जवाब भेज दिया गया, विदेश मंत्रालय भी वैसे नेहरूजी के पास ही था.

उसी कड़ी में गृह मंत्रालय के ज्वॉइंट सेक्रेट्री एन सहगल का भी जवाब है, “Perhaps HM may also like to see. If passports are refused to Shri Golwalkar and his two secretaries there is bound to be criticism. I wonder whether it will be either desirable, or useful to take any undertaking from them that they will talk only on religious matters. One may be fairly certain that they will not confine themselves to these. Perhaps in all the circumstances we will have to agree to passports being given.”.

उस वक्त गृह मंत्रालय शास्त्रीजी के पास था. फिर उनके नीचे गृह सचिव वी विश्वनाथन का नोट है, वो लिखते हैं, “I spoke to HM about this matter some days ago. If Shri Golwalkar is permitted to go to Burma to participate in the activities of the Burma Central Hindu Board, he is bound to make speeches and conduct himself in a manner embarrassing to the Government of India. I have mentioned the matter to the Foreign Secretary Also. It would be best not to give Shri Golwalkar and his Secretaries passports to go to Burma.”  ये सारा पत्राचार 11 जनवरी 1963 को हुआ था.
 
ये मामला अटल बिहारी बाजपेयी ने 18 मार्च को राज्यसभा में उठाया तो तत्कालीन विदेश उप मंत्री दिनेश सिंह ने जवाब दिया. अटलजी ने ये दो सवाल पूछे थे, “a) whether it is a fact that Shri M.S. Golwalkar, Chief of the Rashtriya Swayam Sewak Sangh has been refused a passport for visiting Burma; and (b) if so, what are the reasons therefore? “ और दिनेश सिंह का पहले सवाल का लिखित जवाब था ‘Yes’ और दूसरे सवाल का “ It will not be in the public interest to disclose the reasons.” 

RSS के सौ साल से जुड़ी इस विशेष सीरीज की हर कहानी 

हालांकि नेहरू ने शास्त्री को लिखे 3 अगस्त 1963 के एक पत्र से इस मामले से खुद को अंजान बताया. उनके शब्दों में, “Today, Atal Behari Vajpayee came to see me. Apart from enquiring about the frontier situation, he spoke to me about Golwalkar being refused a passport to go to Burma. I did not remember anything about this. I have now looked up the papers and find that in March last your Ministry decided not to issue a passport to him and a question was answered in Parliament to that effect also. I do not think it is necessary or desirable to open this issue now and to issue a passport to him to go abroad”.
गोलवलकर की ये गिरफ्तारी क्या विश्व हिंदू परिषद की स्थापना से पहले चेतावनी थी?

विश्व हिंदू परिषद की स्थापना अगस्त 1964 में हुई. तब तक नेहरू का देहांत हो चुका था, लेकिन अपने जीवनकाल में ही शायद पंडित नेहरू को ये खबर मिल गई थी कि संघ कोई नया संगठन खड़ा करने जा रहा है. एस एस आप्टे लगातार कई संस्थाओं के प्रमुखों से मिल रहे थे, लेकिन नेहरूजी गुरु गोलवलकर के पीछे थे. जो उस वक्त अपने वार्षिक प्रवास पर थे. इस बार उनका प्रवास मार्च 1964 में अविभाजित बिहार में था यानी आज के बिहार-झारखंड के शहरों में. ये प्रवास 16 से 24 मार्च के बीच था. सासाराम, पटना, सीतामढ़ी, छपरा, नारायणपुर, मुंगेर और नवादा के अपने कार्यक्रमों के बाद वह 22 की रात हजारीबाग पहुंचे, अगले दिन वहां कार्यक्रम था और 24 को रांची में था. 5 महीने पहले ही कृष्ण बल्लभ सहाय बिहार के मुख्यमंत्री बने थे.

हजारीबाग में दंगे होने का डर है

जिलाधिकारी ने उसी दिन हजारीबाग में धारा 144 लगा दी और कहा कि दंगे होने का डर है, गुरु गोलवलकर की सभा पर रोक लगा दी गई, लाउडस्पीकर के प्रयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया. संघ के लोगों ने उनसे बात की तो बड़ी मुश्किल से एक हॉल में छोटी सी बैठक की अनुमति दी गई. यहां तक तो ठीक था, डीएम ने उन्हें कहा कि आप अब रांची मत जाइए. लेकिन गुरु गोलवलकर ने इस बात को नहीं माना, और वो निजी सहायक डॉ थट्टे और प्रांत प्रचारक मधुकर देव के साथ रांची के लिए कार से निकल गए. लेकिन हजारीबाग-रांची की सीमा पर उन्हें रोक लिया गया और मुख्यमंत्री कार्यालय से मिला आदेश दिखाया, जिसमें लिखा था, ‘Shri M.S. Golwalkar be arrested and detained in Hazaribagh Central Jail till further orders’.

अगले दिन ही गुरु गोलवलकर को जेल से छोड़ दिया गया, अब रांची का उनका कार्यक्रम निकल चुका था. बाहर मीडिया ने गिरफ्तारी की वजह भी पूछी लेकिन गुरु गोलवलकर ने जवाब दिया कि ये आपको उससे पूछना चाहिए जिसने मुझे 1 दिन का ‘कम्पलीट रेस्ट’ देने के लिए गिरफ्तारी का आदेश दिया था.

पिछली कहानी: ‘गांधीजी गलत हैं’ सुनकर भड़क गए थे पूर्व संघ प्रमुख, बॉडी बनाने पहुंच गए थे जिम 

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