पूर्व भारतीय कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन को हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन (HCA) के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है. एसोसिएशन की शीर्ष परिषद ने बुधवार को हुई बैठक में अजहरुद्दीन को कारण बताओ नोटिस जारी कर कहा है कि वह अपने खिलाफ लगे आरोपों की जांच पूरी होने तक निलंबित रहेंगे. नोटिस के मुताबिक अजहरुद्दीन की सदस्यता भी रद्द कर दी गई है. शीर्ष परिषद ने अजहरुद्दीन के खिलाफ लंबित मामलों का हवाला देते हुए यह फैसला लिया है.
नोटिस के मुताबिक अजहर ने एसोसिएशन को यह नहीं बताया कि वह दुबई के एक निजी क्रिकेट क्लब के सदस्य हैं, जो एक टी10 टूर्नामेंट में हिस्सा लेता है. इस टूर्नामेंट को भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) से मान्यता प्राप्त नहीं है. नोटिस में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि उन्होंने एचसीए खाते को फ्रीज कर दिया था और लोकपाल की नियुक्ति पर सवाल उठाया था, जिसे अवैध करार दिया गया है.
नोटिस में कहा गया है, 'एचसीए की के सदस्यों की ओर से आपके खिलाफ बहुत सी शिकायतें मिली थीं. शीर्ष परिषद ने उन शिकायतों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के बाद यह नोटिस जारी करने का फैसला लिया है. शीर्ष परिषद आपको निलंबित कर रही है और इन शिकायतों की जांच पूरी होने तक एचसीए की आपकी सदस्यता समाप्त की जा रही है.'
अजहरुद्दीन को सितंबर 2019 में एचसीए के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था. लेकिन उनका कार्यकाल लगातार विवादों के घेरे में रहा है. 58 साल के अजहरुद्दीन ने भारत के लिए 334 वनडे मैचों में 36.92 की औसत से 9378 रन बनाए. अजहर ने वनडे में 7 शतक और 58 अर्धशतक जड़े. वहीं, टेस्ट क्रिकेट में उन्होने 45.03 की औसत से 6215 रन बनाए, जिसमें 22 शतक और 21 अर्धशतक शामिल थे.
अजहरुद्दीन ने कार्रवाई को नियमों के खिलाफ बताया
अजहरुद्दीन ने इस बीच प्रेस विज्ञप्ति जारी करके उनके खिलाफ कार्रवाई को नियमों के खिलाफ बताया. उन्होंने कहा, ‘आज क्रिकेट प्रशासन खतरे में आ गया है क्योंकि मीडिया में गलत बयानी प्रकाशित की गई है. कृपा करके सूचना का सत्यापन करें, दूसरा पक्ष सुनें और फिर एचसीए के संविधान के अनुसार तर्कसंगत रुख अपनाते हुए कुछ प्रकाशित करें क्योंकि आप जो लिखते हैं समाज उस पर भरोसा करता है.’
अजहर ने शीर्ष परिषद के सदस्यों के जॉन मनोज (प्रतिष्ठित कोच) और परिषद में उनके गुट पर निशाना साधा. अन्य चार सदस्य आर विजयानंद, नरेश शर्मा, सुरेंद्र अग्रवाल और अनुराधा हैं.
बयान में कहा गया, ‘उनके सभी प्रयासों पर पानी फिर गया. उनका इरादा शायद लोकपाल की नियुक्ति में बाधा पहुंचाना था, क्योंकि उन्हें डर था कि धोखाधड़ी और हेराफेरी से अर्जित उनके कई क्लबों का खुलासा हो जाएगा और वे अपनी बहुमूल्य संपत्ति से हाथ धो बैठेंगे.’