हमारे देश में जब भी कोई दुखद घटना होती है, तो आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है. यही कुछ 4 जून को बेंगलुरु के एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर हुई भगदड़ के बाद भी हो रहा है. इस दुखद वाकये के बाद सोशल मीडिया पर भ्रम की स्थिति है, बहुत से सवाल पूछे जा रहे हैं.
हम अक्सर बड़े नामों और बड़े चेहरों पर उंगली उठाते हैं, जबकि जरूरत घटना के पीछे के कारणों को समझने की होती है. ऐसे में हमने 7 सवालों के जवाब खंगालकर इस मामले पर से पर्दा हटाने की कोशिश की है. क्योंकि जब तक हम असली वजह नहीं समझेंगे, ऐसी घटनाएं दोबारा होती रहेंगी. खिलाड़ी जीतेंगे, जश्न मनाए जाएंगे. ऐसे में फैन्स भी अपने चहेते स्टार्स की झलक देखने आएंगे...
सवाल नंबर 1: क्या भारत में विक्टी परेड नहीं होना चाहिए?
कुछ लोग अब कह रहे हैं कि भारत जैसे देश में विक्ट्री परेड नहीं होने चाहिए क्योंकि हम इसे संभाल नहीं सकते. यह केवल किसी की निजी राय हो सकती है, लेकिन विक्ट्री परेड को बंद करना पूरी तरह सही नहीं होगा. विक्ट्री परेड दुनियाभर में होते हैं- फुटबॉल, क्रिकेट, ओलंपिक हर जगह. बेंगलुरु में लगभग 3 लाख लोग अपने हीरोज को देखने आए, कुछ लोग नहीं गए, जो उनकी व्यक्तिगत राय होगी. फैन्स का इतना भी हक नहीं बनता. जो खामी थी, उसे सुधारा जाए, न कि परंपरा ही खत्म कर दी जाए.
सवाल नंबर 2: क्य फैन्स ही दोषी हैं क्योंकि उनमें नागरिक समझ (Civic Sense) नहीं होती?
यह कहना भी अनुचित होगा. फैन्स काफी उत्साही होते हैं, साथ ही अपने पसंदीदा खिलाड़ियों के दीवाने भी. पूरी दुनिया में ऐसा होता है. सब फैन्स एक जैसे नहीं होते. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि फैन्स का व्यवहार समस्या की मूल जड़ है. हमारे पास भीड़ को कंट्रोल करने का सिस्टम होना चाहिए. मानचक संचालन प्रक्रिया (SOP) होनी चाहिए, अनुभवी स्टाफ होने चाहिए. अगर यह नहीं है तो गलती सिस्टम की है, फैन्स की नहीं. प्रशंसक सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में एक जैसे होते हैं. वे भावनाओं में बह जाते हैं और जश्न मनाने से कतराते नहीं.
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सवाल नंबर 3: क्या कुछ पुलिसकर्मी इतने बड़ी भीड़ को संभाल सकते हैं?
यह बात पूरी तरह सही नहीं है. चाहे एक हजार या 2000 पुलिसकर्मी हों, नंबर मायने नहीं रखता. SOP और तैयारी मायने रखती है. आप हर 100 लोगों पर एक पुलिसकर्मी नहीं तैनात कर सकते. पूरी दुनिया में ऐसा नहीं होता. बड़ा बात यह है कि पुलिस ने कितनी प्लानिंग की थी. कुछ प्रोटोकॉल हैं जिनका पालन किया जाना चाहिए. खुफिया जानकारी भी रहती है. यह हमारी व्यवस्था की खामी है, संख्या की नहीं.
सवाल नंबर 4: खिलाड़ियों को जाने की जल्दी थी, इसलिए पुलिस पर दबाव बना और हड़बड़ी में आयोजन हुआ?
हो सकता है कि ऐसा हुआ हो. शायद खिलाड़ी अपने-अपने घर जल्दी जाना चाहते थे, इसलिए वे चाहते होंगे कि जीत के अगले दिन जश्न मने. परंतु आखिरी फैसला पुलिस का होता है. पुलिस की मंजूरी के बिना कोई आयोजन नहीं हो सकता. यदि पुलिस तैयार नहीं थी तो उन्हें मना कर देना चाहिए था. इसलिए यह कहना कि खिलाड़ियों की वजह से आयोजन हुआ, यह सही नहीं है. अगर पुलिस ने मंजूरी दी, तो फिर उनकी जिम्मेदारी बनती है.
सवाल नंबर 5: क्या पुलिस की इजाजत के बिना कार्यक्रम हुआ?
यह भी गलत है. पुलिस की अनुमति के बिना रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) की टीम बस एयरपोर्ट से विधान सौधा (कर्नाटक विधानसभा) नहीं जा सकती थी. पुलिस ने सिर्फ ओपन बस परेड के लिए मना किया था, विधान सौधा और चिन्नास्वामी स्टेडियम जाने के लिए इजाजत दी थी. भगदड़ भी उन्हीं जगहों पर हुआ जहां पुलिस मौजूद थी. इसका मतलब यह है कि पुलिस को आयोजन की जानकारी थी, साथ ही उन्होंने मंजूरी भी दी थी. मैं भी वहां था और मैंने अपनी आंखों से इसे देखा. पुलिस ने ओपन बस परेड पर रोक जरूर लगाई. लेकिन जिन दो जगहों पर इवेंट हुआ, वहां पुलिस की सहमति थी.
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सवाल नंबर 6: क्या खिलाड़ी यह जानते हुए भी जश्न मना रहे थे कि उनके फैन्स मारे गए हैं?
नहीं. मेरा व्यक्तिगत अनुभव कहता है कि जब फैन्स बेहोश हो रहे थे, तो वो वक्त शाम 4 से 4.30 के बीच का था. जब टीम की बस 5 बजे आई, तब तक किसी को नहीं पता था कि मौतें हुई हैं. मीडिया को जानकारी शाम के 5 बजकर 15 मिनट के आसपास मिली, जब चिन्नास्वामी स्टेडियम में इवेंट चल रहा था. जैसे ही यह खबर मिली, इवेंट को छोटा कर दिया गया. पहले की प्लानिंग के मुताबिक दो घंटे का सेलेब्रेशन होना था, लेकिन उसे 15 मिनट में खत्म कर दिया गया. इसलिए ऐसा कहना कि खिलाड़ियों को मौत की खबर थी, यह सही नहीं है. यदि उन्हें मालूम होता, तो वे जश्न नहीं मनाते.
सवाल नंबर 7: क्या RCB को पूरे मामले में क्लीन चिट दी जा सकती है?
नहीं. पुलिस मुख्य दोषी है क्योंकि सुरक्षा के साथ-साथ इवेंट के लिए अनुमति देने की जिम्मेदारी उन्हीं की है. लेकिन आरसीबी को भी बख्शा नहीं जा सकता क्योंकि उन्होंने टिकट और रजिस्ट्रेशन को लेकर बेहद खराब कम्युनिकेशन किया. बहुत से लोग यह मानकर स्टेडियम के अंदर जाना चाहते थे कि एंट्री फ्री होगी. बाद में पता चला कि इवेंट के लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी था. यहां गलती आरसीबी से हुई. जब खिलाड़ियों को हादसे की जानकारी मिली, तो वे अस्पताल जा सकते थे. फैन्स तो उन्हें ही देखने आए थे. खिलाड़ियों को कम से कम घायल फैन्स से मिलने, मृतकों के परिजनों से बात करने की जरूरत थी. यह उनकी छवि को बेहतर करता और मानवता की मिसाल भी पेश होती.
लाठी चार्ज की जो तस्वीर सामने आई, वो दिल दहला देने वाली थी. ये फैन्स थे, दंगाई नहीं. वे अपने पसंदीदा खिलाड़ी को देखने आए थे. उन पर लाठियां बरसाना सिस्टम की असफलता को दिखाता है. ऐसे इवेंट्स के लिए SOP होनी चाहिए, साथ ही प्रशासन भी पूरी तरह तैयार रहे. ये बिल्कुल उचित नहीं है कि हम फैन्स को ही दोष दें या विक्ट्री परेड जैसी परंपराओं को ही बंद कर दें. ये अच्छे समाज की पहचान नहीं हो सकती...