दिल्ली का आइकॉनिक जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम अब इतिहास के पन्नों में समा जाएगा. जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम को सरकार ने तोड़ने का फैसला किया है और इसकी जगह नई स्पोर्ट्स सिटी बनाई जाएगी. स्पोर्ट सिटी 102 एकड़ के बड़े क्षेत्र में बनेगी, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होगी और इसमें कई प्रकार के खेलों का आयोजन हो पाएगा.
जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम से भारतीय क्रिकेट टीम की खास यादें जुड़ी हुई हैं. भारत में पहला डे-नाइट क्रिकेट मैच इसी स्टेडियम में खेला गया था. 21 सितंबर 1983 को भारत-पाकिस्तान के बीच वो मैच हुआ था. हालांकि उस मैच को आईसीसी (अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद) ने आधिकारिक दर्जा नहीं दिया. फिर एक साल बाद भारत ने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध यहां पर डे-नाइट ओडीआई मुकाबला खेला, जिसे आईसीसी ने ऑफिशियल मैच माना. यानी भारत में पहला डे-नाइट क्रिकेट मैच इसी जेएलएन स्टेडियम में हुआ, चाहे वो नॉनऑफिशियल हो या ऑफिशियल.
भारत-पाकिस्तान के बीच मुकाबले को आधिकारिक दर्जा हासिल तो नहीं हुआ, लेकिन वो मैच काफी खास था. कपिल देव की कप्तानी में क्रिकेट विश्व कप जीतने के बाद भारतीय टीम का वो पहला मुकाबला था, जिसमें 'मेन इन ब्लू' एक विकेट से बेहद रोमांचक जीत हासिल की थी. उस मैच में कीर्ति आजाद ने ऑलराउंड प्रदर्शन से पूरी बाजी बलट दी थी. कीर्ति ने तब जैसा खेल दिखाया, वैसा वो भारत के लिए इंटरनेशनल क्रिकेट में कभी नहीं दिखा पाए.
भारत-पाकिस्तान के बीच वो मैच प्रधानमंत्री राहत कोष के लिए आयोजित किया गया था और इसके आयोजन में पूर्व भारतीय कप्तान बिशन सिंह बेदी की अहम भूमिका थी. स्टेडियम में लगभग 70,000 दर्शक मौजूद थे. तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह भी उस मुकाबले को देखने के लिए पहुंचे थे. पाकिस्तानी टीम की कप्तानी जहीर अब्बास कर रहे थे क्योंकि इमरान खान चोट के कारण उस मुकाबले में नहीं खेले.

मैच 60-60 ओवर्स का होना था, लेकिन लाइट टावर में खराबी के चलते इसे प्रति पारी 50 ओवर्स का कर दिया गया. मुकाबले में पाकिस्तानी टीम ने पहले बैटिंग की और 50 ओवर्स में तीन विकेट पर 197 रन बनाए. मुददस्सर नजर ने 65 और मोहसिन खान ने 50 रनों का योगदान दिया. वसीम राजा ने भी नाबाद 38 रन बनाकर पाकिस्तान को सम्मानजनक स्कोर तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई. पाकिस्तान के जो तीन विकेट गिरे, वो सभी कीर्ति आजाद ने अपने नाम किए.
चेज में भारतीय टीम की शुरुआत खराब रही. सलामी बल्लेबाजों सुनील गावस्कर (2) और कृष्णमाचारी श्रीकांत (13) रन आउट हो गए. संदीप पाटिल (12), मोहिंदर अमरनाथ (11), यशपाल शर्मा (12), कपिल देव (6) और रोजर बिन्नी (9) भी क्रीज पर ज्यादा देर नहीं टिक पाए. ऐसे में भारत का स्कोर 7 विकेट पर सिर्फ 101 रन था और उसकी हार तय नजर आने लगी थी. लेकिन सातवें नंबर पर बैटिंग करने उतरे कीर्ति आजाद के इरादे कुछ और थे.
कीर्ति आाजाद ने मदन लाल के साथ मिलकर मैच का नक्शा पलट दिया. दोनों ने आठवें विकेट के लिए 86 रनों की साझेदारी की. मैच में थोड़ा ट्विस्ट उस समय आया, जब जहीर अब्बास ने मदन लाल (35) और रवि शास्त्री (2) को आउट कर दिया. शास्त्री जब आउट हुए तो भारत को जीत के लिए 7 रन चाहिए थे और उसके हाथ में सिर्फ एक विकेट था.
यहां से कीर्ति आजाद ने पूरी जिम्मेदारी ली और मैच को तीन गेंद शेष रहते चौके के साथ खत्म किया. यह चौका उन्होंने जहीर अब्बास की गेंद पर थर्ड मैन एरिया में लगाया था. दूसरे छोर पर बलविंदर सिंह संधू (0) नॉट आउट रहे. कीर्ति ने छह चौके और चार छक्के की मदद से नाबाद 71 रन बनाए. कीर्ति ने इस इनिंग्स में जो पहला छक्का लगाया था, वो तो मैदान के बाहर जा गिरा था.

उस मैच में मैदानी अंपायर रहे पीडी रिपोर्टर ने मदन लाल और कीर्ति आजाद की तारीफों के पुल बांधे थे. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि कीर्ति ने तब लंबे-लंबे छक्के लगाए थे. गेंदबाजी छोर से बाउंड्री और दर्शक दीर्घा के बीच लगभग 10 गज की दूरी होने के बावजूद गेंद काफी दूर जाकर गिर रही थी. रिपोर्टर को यह सब करीब से देखने का मौका मिला था.
सचिन तेंदुलकर के बचपन के हीरो और भारतीय महान ओपनर सुनील गावस्कर ने अपनी किताब 'रन्स एंड रुइंस' (Runs 'n Ruins) में कीर्ति की इस इनिंग्स पर पूरा अध्याय लिखा है, जिसका शीर्षक था- 'कीर्तिज ब्राइट नाइट' (Kirti’s Bright Night). यानी कीर्ति की चमकदार रात. गावस्कर लिखते हैं कि इस जीत के बाद भारतीय टीम होटल लौटी, जहां खिलाड़ियों ने खुलकर जश्न मनाया और कमरे शैम्पेन की बोतलों से भर गए. थकान के बावजूद तब कई खिलाड़ी होटल के डिस्को में रात तक नाचते रहे.
कीर्ति आजाद ने लल्लनटॉप को दिए इंटव्यू में उस मैच की यादें ताजा की थीं. कीर्ति कहते हैं, 'उस मैच में मुझे माता आ गई थी (यानी खेल में पूरी तरह डूब गया था, जोश से लबरेज था). हमलोग वर्ल्ड कप जीतकर आए थे, विश्व चैम्पियन थे. उसके बाद ये पहला मैच था. ये मैच जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में हुआ था और ये इंडिया का पहला डे-नाइट गेम था. वो मैच पहले ऑफिशियल था, लेकिन जब पाकिस्तान हार गई तो अनऑफिशियल कर दिया गया, ये कहते हुए कि इस मैदान में रनिंग ट्रैक्स हैं. वो मैच होना 60-60 ओवरों का था, लेकिन बाद में 50-50 ओवर्स का कर दिया गया क्योंकि लाइट चली गई थी. 10 हमारे और 10 उनके ओवर्स काट दिए गए.'
कीर्ति आजाद ने आगे कहा, 'उस समय वनडे मुकाबले 60-60 ओवर्स के होते थे, लेकिन ये मैच 50-50 ओवर्स का हुआ. इसके चलते भी शायद इसे आधिकारिक मैच का दर्जा नहीं मिला. पाकिस्तान ने 50 ओवरों में 197 रन बनाए थे. जो 3 विकेट गिरीं, वो मैंने ली थीं. जब मैं बैटिंग करने उतरा तो टीम का स्कोर 75/5 था. फिर जब 101 पर सातवां विकेट गिरा था, तो मदन लाल आए थे. हम दोनों ने मिलकर पाकिस्तानी टीम को खूब ठोका था. इसलिए वो मैच उनको आजतक याद है और मेरे भी जेहन में है. जब भी कभी आप भारत की आन बान शान और मर्यादा के लिए खेलें एवं अच्छा करें, तो बहुत सुकून और आनंद आता है.'
जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में केवल दो वनडे इंटरनेशनल मुकाबले खेले गए. यहां कोई टेस्ट या टी20 इंटरनेशनल मुकाबला नहीं हुआ. 28 सितंबर 1984 को भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच यहां मुकाबला खेला गया, जो भारत में पहला डे-नाइट इंटरनेशनल मैच था. उस मुकाबले में भारतीय टीम को 48 रनों से हार मिली थी.
14 नवंबर 1991 को यहां पर भारतीय टीम ने साउथ अफ्रीका का सामना किया. उस मैच में भी भारत साउथ अफ्रीका के हाथों 8 विकेट से पराजित हो गया था. साउथ अफ्रीका के लिए वो मुकाबला काफी यादगार बन गया क्योंकि इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी के बाद अफ्रीकी टीम की ये पहली जीत थी.
भारतीय टीम यहां कभी इंटरनेशनल मैच तो नहीं जीत पाई, लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ अनऑफिशियल मैच में मिली जीत फैन्स के जेहन में हमेशा के लिए बस गईं. 21 सितंबर 1983 की रात दिल्ली की रोशनी में सिर्फ स्टेडियम ही नहीं चमका था, बल्कि भारतीय क्रिकेट इतिहास में कीर्ति आजाद और मदन लाल के नाम एक ऐसी सुनहरी दास्तां लिख दी गई थी, जिसे आज भी 1983 की यादों के साथ गर्व से दोहराया जाता है.