प्रो. दीवान सिंह रावत 12 वर्षों से इस बीमारी का इलाज खोज रहे थे. अब उन्होंने एक ऐसे अणु की खोज की है, जो इसके इलाज में कारगर साबित होगा. प्रो. रावत और अमेरिका के मैकलीन अस्पताल के प्रो. किम की ओर से विकसित किए गए इस अणु (एटीएम 399ए) का क्लिनिकल ट्रायल अमेरिका में शुरू हो गया है.
पार्किंसंस एक गंभीर बीमारी है, जिससे दुनिया भर में एक करोड़ लोग प्रभावित हैं. इसके प्रमुख लक्षणों में शरीर में कंपकंपी, पूरे शरीर या फिर कुछ अंगों का लगातार हिलना, चलने और उठने बैठने और काम करने में कठिनाई होती है. इस बीमारी के लाइलाज होने से मरीजों में डिप्रेशन भी हो जाता है.

प्रो. दीवान सिंह रावत ने आजतक को बताया कि इस बीमारी का प्राथमिक कारण मस्तिष्क के मध्य भाग में स्थित सबस्टैंटिया नाइग्रा में न्यूरॉन्स का कम होना होता है. इससे मस्तिष्क में डोपामाइन की कमी हो जाती है. डोपामाइन न्यूरॉन्स के अस्तित्व के लिए जरूरी होते हैं.
प्रोफेसर रावत ने बताया कि वर्ष 2012 में मैकलीन अस्पताल के प्रो. किम ने पार्किंसंस रोग के उपचार के लिए एक अणु विकसित करने में प्रो. रावत से संपर्क किया. तब यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ. प्रोफेसर रावत के नेतृत्व में भारतीय शोधकर्ताओं ने 600 से अधिक नव-संश्लेषित यौगिकों का परीक्षण किया.
चार साल में दवा आने की संभावना
चूहों पर सफलता के बाद मनुष्यों पर पार्किंसन्स दवा के परीक्षण प्रारंभ हो चुके हैं. प्रो.दीवान ने बताया कि अभी ये ट्रायल सेहतमंद मनुष्यों को पार्किंसन्स से रोगयुक्त करने के बाद उन पर किए जा रहे हैं. लगभग डेढ़ वर्ष बाद इनका परीक्षण पार्किंसन्स के गंभीर रोगियों पर किया जाएगा. उन पर सफल होने पर लगभग चार साल में इसकी दवा मार्केट में मिलने लगेगी.

18 की रिसर्च और अरबों रुपयों में बनती है दवा
प्रो. रावत ने बताया कि अनुबंध के आधार पर उनकी ओर से खोजे गए अणु के आधार पर अमेरिका की प्रसिद्ध फार्मा कंपनी नरवन दवा विकसित करेगी. इस वक्त एक कोरिया और दो अमेरिकी कंपनी भी शोध में सहयोग कर रही हैं. शोध के लिए उन्हें भी एक करोड़ रुपए की फंडिंग हुई है. उन्होंने बताया कि इस प्रकार की दवा विकसित करने में औसतन दस हजार यौगिकों का परीक्षण करने पर एक यौगिक सफल होता है.
इसमें लगभग 18 वर्ष का समय लगता है. 450 मिलियन डॉलर का खर्च आता है. यानी 3739 करोड़ रुपए से ज्यादा. प्रो. रावत ने बताया कि तमाम परीक्षणों में सफलता के बाद इस अणु की मार्केट वैल्यू 400 मिलियन डॉलर हो चुकी है. अमेरिकी वॉल स्ट्रीट जर्नल और ब्लूमबर्ग ने प्रो. दीवान सिंह रावत की इस उपलब्धि को प्रमुखता से प्रकाशित किया है.