एक कमजोर इम्यून सिस्टम वाले व्यक्ति का COVID-19 संक्रमण 750 दिनों से ज्यादा चला, जो दुनिया में अब तक का सबसे लंबा मामला है. अमेरिकी शोधकर्ताओं की नई स्टडी में बताया गया है कि यह संक्रमण लॉन्ग COVID नहीं था, बल्कि वायरस SARS-CoV-2 का सक्रिय चरण ही दो साल से ज्यादा चला.
व्यक्ति को लगातार सांस की तकलीफ रही और पांच बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. शोधकर्ता चेतावनी दे रहे हैं कि ऐसे लंबे संक्रमण सबके लिए खतरा हैं, क्योंकि इससे वायरस में खतरनाक म्यूटेशन हो सकते हैं. यह स्टडी 'द लैंसेट' जर्नल में प्रकाशित हुई है.
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यह 41 साल का व्यक्ति एडवांस HIV-1 से पीड़ित था. मई 2020 के मध्य में उसे SARS-CoV-2 का संक्रमण हुआ. उस समय वह एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ARV) नहीं ले रहा था. मेडिकल केयर भी नहीं मिल पा रही थी. उसके लक्षणों में सांस लेने में तकलीफ, सिरदर्द, शरीर दर्द और कमजोरी शामिल थी.

उसके इम्यून सिस्टम की कमजोरी का मुख्य कारण था कम CD4 T-सेल काउंट. सामान्य व्यक्ति में यह 500 से 1,500 सेल प्रति माइक्रोलीटर ब्लड होता है, लेकिन उसके में सिर्फ 35 था. इसी कारण वायरस उसके शरीर से बाहर नहीं निकल सका और 750 दिनों (लगभग 2 साल) तक सक्रिय रहा. मार्च 2021 से जुलाई 2022 तक लिए गए वायरल सैंपल्स के जेनेटिक विश्लेषण से पता चला कि वायरस लगातार म्यूटेट हो रहा था.
बोस्टन यूनिवर्सिटी की बायोइनफॉर्मेटिशियन जोसेलीन वेलास्क्वेज़-रेयेस और उनकी टीम ने पाया कि मरीज के अंदर वायरस का म्यूटेशन रेट सामुदायिक स्तर पर होने वाले म्यूटेशन जैसा ही था. खास बात यह है कि स्पाइक प्रोटीन में हुए म्यूटेशन ओमिक्रॉन वैरिएंट के म्यूटेशन से मिलते-जुलते थे. यानी, एक ही व्यक्ति के अंदर वायरस ने वही बदलाव किए, जो बाद में ओमिक्रॉन जैसे तेज फैलने वाले वैरिएंट में दिखे.
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लॉन्ग COVID वह स्थिति है जब वायरस शरीर से चला जाता है, लेकिन उसके लक्षण (जैसे थकान, सांस की तकलीफ) लंबे समय तक रहते हैं. लेकिन इस मामले में वायरस ही सक्रिय रहा, इसलिए यह तीव्र (एक्यूट) COVID का लंबा स्टेज था. यह रिकॉर्ड सिर्फ कमजोर लोगों का मामला नहीं लग सकता, लेकिन इसके प्रभाव सब पर पड़ते हैं.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एपिडेमियोलॉजिस्ट विलियम हेनेज ने कहा कि लंबे संक्रमण वायरस को कोशिकाओं को ज्यादा कुशलता से संक्रमित करने के तरीके खोजने का मौका देते हैं. यह स्टडी साबित करती है कि ज्यादा फैलने वाले वैरिएंट ऐसे संक्रमणों से ही निकले हैं. ओमिक्रॉन जैसे वैरिएंट भी शायद किसी व्यक्ति के अंदर ही विकसित हुए हों, जहां वायरस को म्यूटेट करने का समय मिला.
शोधकर्ताओं का मानना है कि वायरस एक ही मेजबान (मरीज) में रहने के कारण कम संक्रामक हो गया, इसलिए यह अन्य लोगों में नहीं फैला. लेकिन हर संक्रमण ऐसा नहीं होगा. अगर वायरस ज्यादा संक्रामक हो गया, तो महामारी फिर से फैल सकती है. इसलिए, विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसे मामलों की निगरानी और इलाज जरूरी है.
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वेलास्क्वेज़-रेयेस और टीम ने निष्कर्ष निकाला कि इन संक्रमणों को साफ करना स्वास्थ्य प्रणालियों की प्राथमिकता होनी चाहिए. व्यक्ति के स्वास्थ्य के साथ-साथ समुदाय की सुरक्षा के लिए भी. डॉक्टरों और शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया ...