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अंतरिक्ष में अलकनंदा ... भारतीय वैज्ञानिकों ने JWST की मदद से गैलेक्सी खोजी

भारतीय वैज्ञानिकों ने 12 अरब साल पुरानी स्पाइरल गैलेक्सी ‘अलकनंदा’ खोजी. ब्रह्मांड सिर्फ 1.5 अरब साल का था, तब यह मिल्की वे जैसी पूरी बनी थी. इसमें 1000 करोड़ तारे हैं. 30000 प्रकाश-वर्ष चौड़ी है. जेम्स वेब से मिली खोज ने साबित किया – शुरुआती ब्रह्मांड बहुत तेजी से परिपक्व था.

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चौकौर घेरे में दिख रही है अलकनंदा आकाशगंगा. (Photo: NASA/ESA/CSA)
चौकौर घेरे में दिख रही है अलकनंदा आकाशगंगा. (Photo: NASA/ESA/CSA)

भारत के दो वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में इतिहास रच दिया है. जब ब्रह्मांड सिर्फ 1.5 अरब साल का था (यानी आज से 12 अरब साल पहले), तब भी हमारी आकाशगंगा जैसी एक सुंदर, पूरी तरह बनी-बनाई स्पाइरल गैलेक्सी मौजूद थी. यह खोज दुनिया के सबसे ताकतवर जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) से हुई है. नवंबर में यूरोप के प्रसिद्ध जर्नल Astronomy & Astrophysics में छपी है.  

पहले सोचा था – शुरुआती ब्रह्मांड में सिर्फ छोटी-छोटी और बेतरतीब गैलेक्सी थीं

वैज्ञानिकों का पुराना मानना था कि बिग बैंग के कुछ सौ मिलियन साल बाद सिर्फ छोटी, अनियमित और उलझी हुई गैलेक्सी ही बन पाई थीं. बड़ी और सुंदर स्पाइरल गैलेक्सी बनने में अरबों साल लगते थे. लेकिन पुणे की राशि जैन और प्रोफेसर योगेश वडाडेकर ने जो गैलेक्सी देखी, उसने सारी सोच बदल दी.

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गैलेक्सी का नाम रखा ‘अलकनंदा

इस गैलेक्सी को भारतीय वैज्ञानिकों ने हिमालय की पवित्र नदी के नाम पर अलकनंदा नाम दिया है.  

  • आकार: करीब 30,000 प्रकाश-वर्ष चौड़ी (हमारी मिल्की वे का एक-तिहाई)  
  • तारों की संख्या: 1,000 करोड़ (10 बिलियन सूर्य जितने तारे!)  
  • नई तारों की बनने की रफ्तार: हमारी आकाशगंगा से 20-30 गुना तेज!  
  • खासियत: दो सुंदर सर्पिल भुजाएं, बीच में चमकदार बल्ज और भुजाओं पर मोतियों की माला जैसा क्लस्टर – बिल्कुल आज की गैलेक्सी जैसा.

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कैसे मिली यह गैलेक्सी?

राशि जैन (NCRA-TIFR में पीएचडी कर रही हैं) जेम्स वेब के डेटा में 70000 ऑब्जेक्ट्स देख रही थीं. अचानक एक तस्वीर पर नजर पड़ी – बिल्कुल साफ, सुंदर सर्पिल गैलेक्सी. राशि कहती हैं कि मैं चिल्ला पड़ी. 70000 में सिर्फ एक ही थी जो इतनी परफेक्ट स्पाइरल थी.
 
जब उन्होंने अपने गुरु प्रो. योगेश वडाडेकर को दिखाया तो पहले तो वे यकीन ही नहीं कर पाए. प्रो. वडाडेकर ने बताया कि यह नामुमकिन लग रहा था. इतनी जल्दी इतनी बड़ी और सुंदर गैलेक्सी कैसे बन गई? कुछ सौ मिलियन साल में 1,000 करोड़ तारे और सर्पिल भुजाएं बना लेना – ब्रह्मांड के हिसाब से रॉकेट की स्पीड है.

अब तक की सबसे बड़ी खोज क्यों है यह?

ब्रह्मांड की उम्र अभी 13.8 अरब साल है. यह गैलेक्सी हमें उस समय की दिख रही है जब ब्रह्मांड सिर्फ 10% उम्र का था. पहले मिली पुरानी गैलेक्सी या तो छोटी थीं या लाल धब्बे जैसी दिखती थीं. अलकनंदा पहली गैलेक्सी है जो साबित करती है – शुरुआती ब्रह्मांड इतना बच्चा नहीं था, जितना हम सोचते थे. वहां भी बड़े-बड़े और सुंदर ढांचे बन रहे थे.

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अब आगे क्या?

वैज्ञानिकों ने जेम्स वेब और चिली के ALMA टेलीस्कोप से और गहराई से देखने के लिए आवेदन किया है. वे जानना चाहते हैं कि इतनी जल्दी सर्पिल भुजाएं कैसे बनीं? क्या कोई खास वजह थी? प्रो. वडाडेकर मजाक में कहते हैं कि लोग पूछते हैं – अब वह गैलेक्सी कहां है? मैं कहता हूं – 12 अरब साल बाद बताऊंगा.

भारत का गर्व

यह खोज पूरी तरह भारतीय वैज्ञानिकों की है. दुनिया के 10 अरब डॉलर के टेलीस्कोप से भारत ने ऐसा कमाल किया है जो ब्रह्मांड की पूरी कहानी बदल सकता है. राशि जैन कहती हैं कि यह दिखाता है कि ब्रह्मांड बहुत पहले ही परिपक्व हो चुका था. हमारे आज और भविष्य की कुंजी अतीत में छुपी है.

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