संगम नगरी प्रयागराज महाकुंभ में तमाम तरह के हठयोगी, साधक और तपस्वी साधना में जुटे हुए हैं. यहां एक साधु अग्नि साधना कर रहे हैं. इनकी यह साधना देश कल्याण, राष्ट्रहित के लिए है. यह साधना दिगंबर आणि अखाड़े की अखिल भारतीय पंच तेरह भाई त्यागी खालसा के साधक ही करते हैं. यह विशेष साधना 18 साल तक की जाती है. यह बसंत पंचमी से शुरू होकर पांच माह तक चलेगी.
इस अनोखी साधना के दौरान संत अपने चारों ओर जलती हुई आग के घेरे में बैठकर तपस्या करते हैं. इस साधना का उद्देश्य देश और राष्ट्र कल्याण के लिए तप करना है. अग्नि के बीच बैठकर यह कठोर तपस्या की जाती है.
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इस विशेष साधना को लेकर महंत गोपालदास ने बताया कि ये जनकल्याण, देश कल्याण, विश्व कल्याण के लिए सभी संत महात्मा तप करते हैं. यह 18 साल का तप होता है, इसमें छह प्रकार के कोर्स होते हैं. पहले पंचध्वनि से शुरू होता है. तीन साल तक पंचध्वनि तपना पड़ता है. वह माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को शुरू होता है. यह गंगा दशहरा तक चलता है. चार महीने तक धूप में मंत्र जाप करते हुए तपस्या की जाती है.
यह बहुत ही कठिन और दुर्लभ साधना है, जिसे केवल कुछ ही साधक कर सकते हैं. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और इसका पालन करने वाले संत अग्नि को साक्षी मानकर तप करते हैं.
इस साधना के माध्यम से संत शारीरिक और मानसिक शक्ति का विस्तार करते हैं और अपने तप से समाज और राष्ट्र के कल्याण की कामना करते हैं. महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालु इस अद्भुत अग्नि साधना को देखकर इस घोर तपस्या को नमन करते हैं और संतों के दर्शन कर रहे हैं.