आचार्य चाणक्य ने इंसान के जीवन को सफल और खुशहाल बनाने को लेकर अपने नीति शास्त्र में कई नीतियां बताई हैं. अपने नीति ग्रंथ में जहां उन्होंने इंसान की बोली को अमृत बताया है, तो वहीं उसे विष भी कहा है. वे कहते हैं कि किसी व्यक्ति की बोली बहुत मीठी भी होती है और जहर से भी भरे होते हैं. अब यह व्यक्ति को तय करना है कि उसे अपनी बोली में विष से भरे शब्द उगलने हैं या फिर चीनी से भी ज्यादा मीठा बोल रखना है.
कहा जाता है कि एक व्यक्ति को सोच समझकर बोलना चाहिए. कब, क्या और कैसे बोलना है इसकी समझ होना जरूरी है, क्योंकि फिर बोले गए शब्द वापस नहीं लिए जा सकते हैं. चाणक्य के कहने का तात्पर्य है कि इंसान के पास बोली एक हथियार के मानिंद है जिसकी मदद से किसी के मन में अपने लिए सम्मान पैदा कराया जा सकता है, लेकिन उसी बोली से किसी की नजरों में गिरा भी जा सकता है.
कई बार ऐसा होता है कि इंसान के जीवन में कई ऐसी परिस्थितियां आती हैं जब वे गुस्से में होते हैं. ऐसे में वे अपनी बोली में जहर भर लेते हैं और फिर विष भरे शब्द का इस्तेमाल करते हैं. जब इंसान गुस्से में हो तब उसे पता नहीं चलता या यूं कहें उसे अपने बोले गए जहरीले शब्द का तनिक भी एहसास नहीं होता कि वो क्या बोले जा रहा है. जब उसी व्यक्ति का गुस्सा शांत हो जाता है और वो अपने कहे गए शब्दों को याद करता है तो उसे पछतावा होने लगता है.
इसलिए कहा जाता है कि हमेशा बोलते समय अपनी वाणी पर कंट्रोल रखना चाहिए. बोलते समय यह जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे क्या बोल रहे हैं और इसका अंजाम क्या होगा. अंजाम के बारे में पता होने पर व्यक्ति संभल सकता है. इसलिए अगर इंसान बोलने से पहले ये सोच ले तो फिर उसकी बोली से किसी सामने वाले व्यक्ति को चोट नहीं पहुंचेगी.
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