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Kaal Bhairav Jayanti 2025: क्या काल भैरव काल चक्र से परे एक आयाम है? जानें

Kaal Bhairav Jayanti 2025: काल भैरव केवल शिव का उग्र रूप नहीं, बल्कि समय से परे जाने की चेतना हैं. वे उस रहस्यमय शक्ति का प्रतीक हैं जो जीवन और मृत्यु के चक्र को तोड़ देती है. विज्ञान जिस स्पेस-टाइम के रहस्य को अब खोज रहा है, वही तो योगिक परंपरा में सदियों से काल के रूप में पूजित है, जहां समय रुक जाता है, वहीं भैरव प्रकट होते हैं.

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सद्गुरु के मुताबिक काल भैरव काल चक्र से परे का समय है (Photo: ITG)
सद्गुरु के मुताबिक काल भैरव काल चक्र से परे का समय है (Photo: ITG)

Kaal Bhairav Jayanti 2025: आज पूरे देश में काल भैरव जयंती या काल भैरव अष्टमी का त्योहार मनाया जा रहा है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, काल भैरव को भगवान शिव का ही रूप माना जाता है. लेकिन ऐसा क्यों?  कई लोगों के लिए 'शिव नाम' एक रंगीन कैलेंडर आर्ट की छवि प्रस्तुत करता है. हालांकि, यह छवि अपने आप में आकर्षक है, लेकिन दिव्यता की इस परिष्कृत अवधारणा को एक सीमित, एकल रूप में बांध देना दुखद है. परंपरागत रूप से कहा गया है कि शिव को कोई नाम नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि नाम देना उन्हें सीमित करना है. फिर भी, उनके अनगिनत नाम सृष्टि के अनेक अवर्णनीय रहस्यों की ओर संकेत करते हैं.

कौन हैं काल भैरव?

काल भैरव, शिव का एक अनूठा रूप हैं- जो स्वयं समय के प्रतीक हैं. वैज्ञानिकों ने हाल ही में अंतरिक्ष-समय की संरचना पर गुरुत्वाकर्षण तरंगों को खोजा है. यह आइंस्टीन के इस विचार की पुष्टि है कि भौतिक दुनिया का हमारा अनुभव सापेक्ष है. साथ ही, यह सदियों पुरानी योगिक अंतर्दृष्टि को भी पुष्ट करता है, जो समय को सृष्टि का मूलभूत आधार मानती है. समय निरंतर प्रवाहित होता रहता है, लेकिन इसे बांधा नहीं जा सकता. यह एक शक्तिशाली, अवर्णनीय आयाम है जो पूरे ब्रह्मांड को एक साथ थामे रखता है और इसी आयाम को हमने ‘काल’ कहा है.

समय का एक पहलू भौतिक वास्तविकता की चक्रीय गति से उत्पन्न होता है जैसे पृथ्वी का एक घूर्णन एक दिन बनाता है, एक परिक्रमा एक वर्ष. परमाणु से लेकर ब्रह्मांड तक, सब कुछ चक्रीय गति में है. लेकिन मूल रूप से, समय ‘काल’ है, जिसका अर्थ अंधकार या स्थान भी होता है. केवल समय में ही स्थान संभव है; इसलिए स्थान को समय का परिणाम माना गया है. स्थान के कारण रूप संभव हुआ, और रूप के कारण समस्त भौतिक वास्तविकता का अस्तित्व बना. इसलिए, योगिक परंपरा में समय और स्थान, दोनों के लिए एक ही शब्द प्रयुक्त होता है- ‘काल’.

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गुरुत्वाकर्षण से भी संबंधित है काल भैरव

गुरुत्वाकर्षण भी समय का एक सूक्ष्म उपोत्पाद है. यह एक ऐसी शक्ति है जो समय-स्थान के संबंध को नियंत्रित करती है और काल को अभिव्यक्ति का अवसर देती है. जब काल की गहन शून्यता प्रतिध्वनित होकर आकार लेती है, तभी भौतिक अस्तित्व का आरंभ होता है. दुनिया की हर आध्यात्मिक प्रक्रिया भौतिक सीमाओं से परे जाने के प्रयास से जुड़ी है, क्योंकि रूप चक्रों के अधीन होता है. इसलिए काल भैरव को वह माना जाता है जो जन्म और मृत्यु, अस्तित्व और अनस्तित्व के अनिवार्य चक्रों को भंग करते हैं. चलिए अब आपको काल भैरव भगवान से जुड़ी कहानी से अवगत कराते हैं.

ऋषि मार्कंडेय और काल भैरव की कहानी

भारतीय संस्कृति में एक मार्कंडेय और काल भैरव की सुंदर कथा मिलती है. मार्कंडेय एक ऐसे बालक थे, जिनके जन्म से पहले ही उनके जीवन से जुड़ा एक चुनाव किया जा चुका था. उनके माता-पिता को यह विकल्प दिया गया था, क्या वे एक ऐसे पुत्र को जन्म देना चाहते हैं जो सौ वर्ष तक जीवित रहे लेकिन मूर्ख हो, या फिर एक ऐसा पुत्र जो अत्यंत प्रखर और तेजस्वी हो, किंतु केवल सोलह वर्ष तक जीवित रहे.

ऋषि मार्कंडेय के माता-पिता बुद्धिमान थे. उन्होंने दूसरा विकल्प चुना, और परिणामस्वरूप उन्हें एक अपार प्रतिभा और असाधारण क्षमताओं वाला तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, वे अपने पुत्र की आयु को लेकर चिंतित होते गए. जब उसकी मृत्यु की निर्धारित आयु पास आने लगी, तो वे गहरे दुःख और व्यथा में डूब गए. जब उन्होंने मार्कंडेय को उस वरदान और अपने किए गए चुनाव के बारे में बताया, तब वह असाधारण रूप से बुद्धिमान और आत्मज्ञानी बालक था. वह जीवन के रहस्यों को समझ चुका था. इसलिए जब उसकी मृत्यु का क्षण आया, जब मृत्यु के देवता यम उसके प्राण लेने आए तब मार्कंडेय ने एक सरल किंतु गहन कार्य किया. वहां एक शिवलिंग प्रतिष्ठित था, जिसे विशेष रूप से ‘काल भैरव’ रूप में स्थापित किया गया था. मार्कंडेय ने उस लिंग को दृढ़ता से पकड़ लिया.

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जैसे ही उन्होंने लिंग को पकड़ा, समय ठहर गया और मृत्यु उनके पास नहीं आ सकी. यम वहीं रुक गए. उस क्षण मार्कंडेय के भीतर चेतना का ऐसा आयाम प्रकट हुआ जहां वे समय की सीमा से परे चले गए. कहा जाता है कि वे सदा पंद्रह वर्ष के ही बनकर रह गए, कभी सोलह नहीं हुए क्योंकि वे उस चेतना के आयाम से जुड़ गए थे जिसे हम ‘काल भैरव’ कहते हैं. वास्तव में, मृत्यु का अस्तित्व केवल इसलिए है क्योंकि समय का अस्तित्व है. ‘काल भैरव’ चेतना का वह आयाम है जो समय से परे जा सकता है.

समय से परे जाना

योग का एक आयाम यह है कि मनुष्य भौतिक प्रकृति से परे जा सकता है. यदि आप अपने भौतिक शरीर को पूर्ण सहजता की एक विशिष्ट अवस्था में ले आते हैं, तो एक अर्थ में, आप समय पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते हैं. जब आप स्वयं को ऐसी स्थिति में लाते हैं जहां आपके और आपकी भौतिकता के बीच एक निश्चित दूरी स्थापित हो जाती है. जहां आप अपने भौतिक स्वरूप को एक ओर रख देते हैं, तब आपके लिए समय का अस्तित्व समाप्त हो जाता है. जब यह दूरी अनुभव में आ जाती है, तो समय का कोई प्रभाव नहीं रहता. उसी अवस्था को हम ‘काल भैरव’ कहते हैं, वह जिसने समय पर पूर्ण महारत प्राप्त कर ली है.

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