प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंडोनेशिया के दौरे पर हैं. बुधवार को राजधानी जकार्ता में पीएम मोदी ने कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. पीएम मोदी के इस दौरे से दोनों देशों के बीच रिश्तों के और मजबूत होने की उम्मीद जताई जा रही है.
इंडोनेशिया और भारत सांस्कृतिक रूप से एक-दूसरे के करीब हैं. इंडोनेशिया दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश है और यहां हिंदू आबादी दो फीसदी से भी कम है, लेकिन फिर भी यहां की हर चीज पर हिंदू संस्कृति की छाप देखने को मिलती है. इंडोनेशिया में हिंदू देवी-देवताओं की तो पूजा होती ही है, भाषा पर भी यहां का प्रभाव दिखता है.
जावा इंडोनेशिया का एक प्रमुख द्वीप है, जहां लगभग 60 प्रतिशत आबादी बसती
है. 13वीं से 15वीं शताब्दी के बीच यहां माजापाहित नाम का हिंदू साम्राज्य
खूब फला फूला जिससे यहां की संस्कृति, भाषा और भूमि पर हिंदू संस्कृति की
अमिट छाप पड़ गई. पूरे शहर
में दुकानों, स्कूलों और जगहों पर संस्कृत के शब्द दिख जाते हैं.
कई लोगों को हैरानी होती है कि इंडोनेशिया में जगहों और लोगों के नाम संस्कृत शब्दों में रखे गए हैं. यहां कई मुस्लिमों का नाम विद्या, प्रिया, कृष्णा, विसनु मिल जाता है. दरअसल, संस्कृत जावानीज भाषा का हिस्सा बन चुकी है. इंडोनेशियाई और जावानीज भाषा में संस्कृत के बोध वाले कई शब्द मिल जाएंगे.
इंडोनेशिया की भाषा को 'बहासा इंदोनेसिया' कहते हैं. उनकी भाषा पर संस्कृत का काफी प्रभाव दिखता है. इंडोनेशिया के महान नेता सुकर्णो का नाम महाभारत के किरदार कर्ण से ही लिया गया है. सुकर्णो के पिता कर्ण के किरदार से बहुत ज्यादा प्रभावित थे, लेकिन महाभारत के युद्ध में कर्ण ने गलत लोगों का पक्ष लिया था इसीलिए उन्होंने अपने बेटे का नाम सु (good)+ कर्णो रखा. इंडोनेशिया के पांचवीं राष्ट्रपति का नाम भी मेघावती सुकार्णोपुत्री था.
हालांकि इंडोनेशिया में लोग अपने धर्म और संस्कृति को अलग-अलग रखते हैं और इसे अपनी संस्कृति का ही हिस्सा मानते हैं. इंडोनेशिया में एक कहावत भी प्रचलित है, 'नेम इज ए विश' यानी वे अपने बच्चे का वह नाम रखते हैं जिस रूप में वे उन्हें देखना चाहते हैं. उदाहरण के तौर पर, जो लोग अपने बच्चों को मजबूत देखना चाहते हैं वे अपने बच्चों का नाम भीम रख देते हैं.
उनके शब्दकोष में भी स्त्री और मंत्री जैसे शब्द मिलते हैं.
इंडोनेशिया के इतिहास में कई बड़े और प्रभावशाली हिंदू साम्राज्य हुए
जिनका प्रभाव आज तक बना हुआ है. सातवीं सदी में व्यापार के कारण इंडोनेशिया
में शक्तिशाली श्रीविजया साम्राज्य पनपा. 13वीं सदी के अंत में पूर्वी
जावा में हिंदू मजापहित साम्राज्य की स्थापना हुई थी. इस्लाम यहां बाद में आया.
जावा में कई हिंदू और बौद्ध मंदिर हैं. योग्याकार्ता में कठपुतली बनाने का
काम करने वाले वायुदि सहस्त्रदिनामा जावा को 'सहिष्णुता का शहर' कहते हैं.
दूसरे लोगों की तरह वह भी रोजा रखते हैं और कठपुतलियां बनाते हैं. वह कहते
हैं कि मेरे लिए धर्म और संस्कृति अलग-अलग चीजें हैं. उनके कामकाज की जगह
पर राम, सीता और घटोत्कच की कृतियां भी हैं जिन्हें भैंस की खाल से बनाया
गया है. वह कहते हैं कि यह गाय की खाल से नहीं बनाया गया है, क्योंकि हम हिंदुओं का सम्मान करते हैं और उनके लिए यह पवित्र पशु है.
इंडोनेशिया की धर्म सहिष्णुता मिसाल के लायक है. यहां के मुसलमानों और हिंदुओं के मन में दूरियां नहीं है. यही वजह है कि 2010 में इंडोनेशिया दौरे के दौरान बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी वहां के सामाजिक माहौल को देखकर हैरान रह गए थे.