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Puja Rule: पूजा में किन चीजों का दोबारा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, जान लें जरूरी नियम

Puja Rule:धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा में कुछ चीजें एक बार भगवान को अर्पित करने के बाद बासी मानी जाती हैं, इसलिए इन्हें दोबारा पूजा में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, लेकिन कुछ ऐसी चीजें भी हैं जिनका आप दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं.

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जान लें पूजा के ये जरूरी नियम. (Photo: Pixabay)
जान लें पूजा के ये जरूरी नियम. (Photo: Pixabay)

Puja Rule: घर का मंदिर आस्था, शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र भी होता है. ऐसी मान्यता है कि पूजा में इस्तेमाल की जाने वाली हर वस्तु की अपनी पवित्रता होती है.कुछ चीजें भगवान को अर्पित करने के बाद भी शुद्ध बनी रहती हैं, जबकि कुछ वस्तुएं एक बार इस्तेमाल के बाद दोबारा पूजा योग्य नहीं रहतीं. आइए जानते हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौन-सी चीजें दोबारा इस्तेमाल की जा सकती हैं और किनके दोबारा इस्तेमाल से परहेज करना चाहिए.

पूजा में पात्र और धार्मिक वस्तुएं

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा में इस्तेमाल किए जाने वाले चांदी, पीतल या तांबे के पात्र दोबारा प्रयोग किए जा सकते हैं. इसी तरह भगवान की मूर्ति, घंटी, शंख, मंत्र जप की माला और आसन भी बार-बार इस्तेमाल करने योग्य माने गए हैं. इन वस्तुओं को पूजा के बाद साफ करके सुरक्षित रखना चाहिए.

तुलसी और बेलपत्र का महत्व

पूजा में अर्पित की गई तुलसी की पत्तियां विशेष मानी जाती हैं. मान्यता है कि तुलसी कभी अपवित्र या बासी नहीं होती, इसलिए अगर किसी वजह से नई तुलसी उपलब्ध न हो, तो पहले चढ़ाई गई तुलसी को दोबारा पूजा में इस्तेमाल किया जा सकता है.

वहीं भगवान शिव को बेलपत्र अत्यंत प्रिय है. शिवपुराण के अनुसार बेलपत्र छह महीने तक बासी नहीं होता. शिवलिंग पर अर्पित बेलपत्र को धोकर दोबारा उपयोग किया जा सकता है, बस ध्यान रखें कि बेलपत्र खंडित, कटा-फटा या दागदार न हो.

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ये चीजें  हो जाती हैं बासी

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुछ वस्तुएं ऐसी होती हैं, जिन्हें एक बार भगवान को अर्पित करने के बाद दोबारा पूजा में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. इनमें भगवान को चढ़ाया गया भोग, जल, फूल और माला, चंदन और कुमकुम, धूप और दीप, नारियल और अक्षत, जलते दीपक में बचा हुआ तेल या घी शामिल हैं . ऐसा माना जाता है कि इन वस्तुओं की शुद्धता एक बार प्रयोग के बाद समाप्त हो जाती है और इन्हें दोबारा उपयोग करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता. 

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