सावन का पावन और पवित्र माह त्रिदेवों में एक महादेव शिव को समर्पित होता है. इसलिए फाल्गुन मास में आने वाली शिवरात्रि के अलावा श्रावण (सावन) की शिवरात्रि का अलग ही महत्व है. इस दौरान भगवान शिव के जलाभिषेक का विधान है और माना जाता है कि ये जलाभिषेक गंगाजल से हो तो महादेव प्रसन्न होते हैं. वैसे जिस तरह हर एक कंकर शंकर होता है, वैसे ही हर शुद्ध जल गंगाजल ही होता है. यह केवल भावना की बात है और महादेव सिर्फ भावना देखते हैं.
उनके प्रति शुद्ध भावना और समर्पण का ही प्रतीक है, द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक सोमनाथ. इस लिंगम की स्थापना खुद चंद्रदेव ने की थी और शिवजी ने इसी स्थान पर उनकी शुद्ध भावना से प्रसन होकर उन्हें अपने शीष का आभूषण बनाया और चंद्रशेखर कहलाए. इस तरह शिवलिंगम का यह स्वरूप जो सोम (चंद्र) के स्वामी हैं सोमनाथ कहलाया और मानव मात्र का कल्याण करने के लिए शिव अपने अंशरूप में यहां विराजमान हो गए.
क्या है शंकर शब्द की व्याख्या?
शिव कौन हैं? जो परम तत्व आदि–अंत रहित, असीम, अगोचर, अजन्मा और सर्वव्यापक है वही शिव है. भगवान शंकर का मतलब ही होता है 'शं कल्याणं करोति इति शंकरः', जो मानव मात्र का कल्याण करने के लिए ही विराजमान हो वही शंकर है. शिव का तो अर्थ ही कल्याण होता है.
प्रयागराज में मौजूद विशालाक्षी शक्तिपीठ से जुड़े, स्वामी अखण्डानंद जी शिव स्वरूप की व्याख्या करते हैं तो शिव पुराण कोटिरूद्र संहिता का संदर्भ देते हुए कहते हैं कि, 'भूत भगवान शंकर प्राणियों के कल्याणा के लिए ही हर तीर्थ में लिंग रूप में निवास करते हैं. जिस-जिस पुण्य स्थान में भक्त जनों ने उनकी अर्चना की उसी उसी स्थान पर वह प्रकट हुए और फिर वहीं पर ज्योतिर्लिंग के रूप में अवस्थित हो गए. लिंग रूप में भगवान शिव संपूर्ण जगत में ही व्याप्त हैं और सारा जगत ही उनके लिंगम स्वरूप में समाया हुआ है. ‘लिंगात्मकम् हर चराचर विश्वरुपिन’, यानि कि यह चराचर जगत भगवान शिव का लिंग रूप है.
सोमनाथ क्यों है सर्वश्रेष्ठ?
वैसे तो धरती पर अलग-अलग धामों में असंख्य शिवलिंग हैं, फिर भी इनमें द्वादश ज्योतिर्लिंग सबसे प्रमुख हैं और इनमें भी श्रीसोमनाथ को इस धरा धाम का आदि ज्योतिर्लिंग होने का गौरव प्राप्त है.
इसकी महिमा में पुराणों में वर्णन है कि-
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये,
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावसंतम्.
भक्ति प्रदानाय कृपावतीणं,
तन सोमनाथं शरणं प्रपद्ये..
(जो अपनी भक्ति प्रदान करने के लिए अत्यंत रमणीय तथा निर्मल, गुजरात प्रदेश के सौराष्ट्र में दयापूर्वक अवतीर्ण हुए हैं, चंद्रमा जिनके मस्तक का आभूषण है, उन ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान श्री सोमनाथ की में शरण ग्रहण करता हूं.)
स्वामी अखंडानंद बताते हैं कि अगर सोमनाथ लिंगम की उत्पत्ति का प्रश्न है तो इसका प्रकटीकरण धरती के साथ ही हुआ बताया जाता है. एक पौराणिक कथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मदेव ने प्रभास क्षेत्र में भूमि के भीतर मुर्गी के अंडे के बराबर स्वयंभू स्पर्शलिंग श्रीसोमनाथ के दर्शन किए. उन्होंने उस लिंग को मधु आदि से ढक करके उस पर ब्रह्म-शिला रख दी और उसके ऊपर श्री सोमनाथ के ब्रह्म-लिंगम की प्रतिष्ठा की ,चंद्रमा ने उसी वृहल्लिंग का पूजन किया.
शिव पुराण में श्रीसोमनाथ के अविर्भाव का इतिहास दक्ष और चंद्रमा की कथा और दक्ष के द्वारा चंद्रमा को दिए गए श्राप से जुड़ी हुई है. कथा इस प्रकार आती है कि दक्ष असिवनी के गर्भ से उत्पन्न 60 कन्याओं के पिता थे. उन्होंने उनमें से 10 कन्याएं धर्म को, 13 कश्यप को, 27 चंद्रमा को, दो भूत को, दो अंगिरा को, दो कृशाश्व को और शेष कश्यप को ब्याह दीं.
चंद्रदेव की श्राप मुक्ति का स्थल
चंद्रमा 27 पत्नियों के साथ बहुत प्रसन्न हुए. दक्ष कन्याओं में रोहिणी सबसे अधिक सुंदरी और सर्वगुण संपन्न थी. चंद्रमा रोहिणी से अधिक प्रेम करने लगे. चंद्रमा के इस व्यवहार से दक्ष की अन्य 26 कन्याओं को बहुत दुख हुआ. दुखी कन्यायें अपने पिता दक्ष के पास गई और अपने दुख का कारण बताकर निवारण का उपाय पूछा. चंद्रमा के इस व्यवहार से दक्ष बहुत दुखी हुए. उन्होंने जाकर चंद्रमा को बहुत समझाया लेकिन चंद्रमा पर इसका कोई असर नहीं हुआ और इस तरह क्रोधिक दक्ष ने उन्हें क्षय रोग होने का भयंकर श्राप दे दिया.
श्रूयतां चंद्र यत्नपूर्वं प्रार्थितो बहुधा मया.
न मानितं त्वचा यस्मात्तस्मात्तवं च क्षयीभव..
(शिव पुराण, कोटिरूद्र संहिता)
दक्ष द्वारा श्राप देने के साथ ही चंद्रमा दोनों दिन क्षीण होने लगे. उनका दिव्य सौंदर्य नष्ट हो गया. इसके धरती पर भी बुरे प्रभाव पड़ने लगे. ऐसे में अन्न और औषधियों का सार समाप्त हो गया. चंद्रमा घबराकर ब्रह्मा जी के पास गए. ब्रह्मा जी ने उनसे इस श्राप को पलटने में असमर्थता जताई और कहा कि केवल आशुतोष भगवान शिव ही प्रसन्न होने पर इस श्राप को पलट सकते हैं. ब्रह्माजी के आदेश पर चंद्रमा ने शिवजी की प्रसन्नता के लिए कठोर तपस्या की और महामृत्युंजय मंत्र का 10 करोड़ जाप किया. भगवान शिव ने उन्हें दिव्य दर्शन देकर कृतार्थ किया. भगवान शिव ने कहा !"चंद्र देव मैं तुम पर प्रसन्न हूं तुम अपनी इच्छानुसार वर मांग लो".
कैसे कलाधर हो गए चंद्रमा
चंद्रमा बोले! "महेश्वर मैं अपने पूज्य ससुरजी के श्राप से क्षय रोग से ग्रस्त होकर क्षीण शक्ति हो रहा हूं. आप मेरे अपराधों को क्षमा करके मुझे आरोग्य और यश प्रदान करें". भगवान शिव ने कहा !"चंद्रदेव मैं तुम्हें अमरत्व प्रदान करता हूं. कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी परंतु शुक्ल पक्ष में उसी क्रम में तुम्हारी एक-एक कला बढ़ेगी. इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम 16 कलाओं से पूर्ण होकर पूर्ण चंद्र हो जाओगे ". इस प्रकार भगवान शिव की कृपा प्राप्त करके कलाहीन चंद्र पूर्ण कलाधर हो गए.
इधर चंद्रमा की प्रार्थना स्वीकार करके भगवान शिव भवानी सहित ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा के लिए प्रभास क्षेत्र में स्थित हो गए. तभी से यह प्रसिद्ध हुआ कि श्रीसोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और अभीष्ट फल प्राप्त कर मृत्यु के बाद स्वर्ग में जाता है. मनुष्य जिन-जिन कामनाओं के उद्देश्य से इस तीर्थ का दर्शन करता है, उसे वह फल जरूर प्राप्त होते हैं.