बिहार में बड़ी जीत के बाद बीजेपी की खुशी के बीच अंटा उपचुनाव की हार बड़ा झटका देने वाली है. अंटा विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को हराकर सबको चौंका दिया. इस हार ने बीजेपी को सोचने पर मजबूर कर दिया है.
कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री प्रमोद जैन भाया ने बीजेपी उम्मीदवार मोरपाल सुमन को 15,612 वोटों से हरा दिया. ये सीट पहले बीजेपी की थी इसलिए नतीजा और भी हैरान करने वाला है. बीजेपी ने कहा कि सरकारी योजनाओं का प्रचार ठीक से नहीं हुआ, इसलिए हार मिली. लेकिन असल वजहें गलत रणनीति, आपसी गुटबाजी और मजबूत उम्मीदवार चुनने में देरी थी.
कांग्रेस ने तुरंत फैसला लिया, BJP उलझी रही
ये सीट तब खाली हुई जब BJP विधायक कंवरलाल मीणा को एक सरकारी अफसर को धमकाने के केस में सजा हुई. कांग्रेस ने मौके को समझा और तुरंत प्रमोद जैन भाया को टिकट दे दिया जो पहले भी दो बार ये सीट जीत चुके हैं. दूसरी तरफ बीजेपी टिकट तय करने में ही समय गंवाती रही.
BJP के अंदर की खींचतान खुलकर सामने आई
अंटा, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके बेटे दुष्यंत सिंह का इलाका माना जाता है. कई लोगों का मानना था कि राजे शुरू में ज्यादा एक्टिव नहीं थीं. कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि वो शायद हार की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती थीं. आखिर में बीजेपी ने उनकी पसंद के उम्मीदवार मोरपाल सुमन को टिकट दिया जो इलाके में ज्यादा पहचान नहीं रखते. बीजेपी के पास मीणा की पत्नी को टिकट देने का भी मजबूत विकल्प था जिससे सिम्पैथी मिल सकती थी लेकिन वो मौका भी निकल गया.
नरेश मीणा ने काट दिए BJP के वोट
नरेश मीणा ने निर्दलीय चुनाव लड़कर बीजेपी के वोटों में बड़ी सेंध लगा दी. वो पहले भी दो बड़े चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर चुके हैं. हालांकि, उनके खिलाफ भी विवाद रहा है जैसे SDM को थप्पड़ मारने के केस में 8 महीने जेल जाना. युवा मीणा वोटर उन्हें पसंद करते हैं लेकिन दूसरे समुदायों में उनका असर कम है.
क्या वसुंधरा राजे का प्रभाव कम हो रहा है?
चुनाव नतीजों के बाद अब ये सवाल बहुत उठ रहा है कि क्या यहां वसुंधरा राजे का प्रभाव वाकई कम हो रहा है. अंटा राजे के क्षेत्र के बहुत करीब है इसलिए हार को राजे और उनके बेटे की व्यक्तिगत हार भी माना जा रहा है. इसके अलावा बीजेपी के कई बड़े नेता जो वसुंधरा राजे गुट में नहीं आते, वो चुनाव प्रचार में नजर ही नहीं आए. इससे साफ दिखता है कि राजस्थान बीजेपी में गुटबाजी अभी भी गहरी है. राजे के करीबी विधायक प्रताप सिंह सिंघवी ने तो खुलकर पार्टी नेतृत्व पर हार का आरोप लगाया.
कांग्रेस ने मिलकर लगातार चुनाव लड़ा, बिखरी रही BJP
कांग्रेस नेताओं ने लगातार मौके पर जाकर प्रचार किया. राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने जीत को जनता का BJP को जवाब बताया. उधर, सीएम भजनलाल शर्मा सिर्फ दो बार प्रचार करने पहुंचे. लोगों का ये भी मानना है कि उन्होंने जानबूझकर इस सीट पर राजे को आगे रखा. अगर सीट जीत जाती तो BJP को फायदा होता और अगर हारती तो राजे की ताकत कम होती, और हुआ भी वही, हार से राजे का प्रभाव कमजोर दिखा.
इस हार का बड़ा संदेश क्या है?
अंटा की हार से सरकार नहीं डगमगाएगी, लेकिन BJP को ये सबक जरूर मिल गया है कि आपसी लड़ाई, सही वक्त पर फैसला न लेना, कमजोर उम्मीदवार चुनना इन सबके कारण पक्की सीट भी हाथ से निकल जाती है. कांग्रेस के लिए ये जीत सिर्फ उपचुनाव की जीत नहीं बल्कि मनोबल बढ़ाने वाली जीत है. बीजेपी के लिए ये साफ संदेश है कि राजस्थान में अभी बहुत काम बाकी है.
Rajasthan में BJP के लिए चेतावनी की घंटी क्यों है अंटा का हारना
बिहार चुनाव में बड़ी जीत के बाद जहां बीजेपी जश्न मना रही थी, वहीं राजस्थान से उसे बड़ा झटका लगा. अंटा विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने जबरदस्त जीत दर्ज की जिसने भाजपा की राज्य इकाई को हिला दिया है. अब पार्टी के अंदर कड़े सवाल उठ रहे हैं.
कांग्रेस के उम्मीदवार और पूर्व मंत्री प्रमोद जैन भाया ने बीजेपी के मोरपाल सुमन को 15,612 वोटों से हराया. ये सीट भाजपा की मजबूत सीट मानी जाती थी इसलिए हार और चुभती है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने इसे सरकारी योजनाओं का प्रचार न होने की गलती बताया. लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि असली वजहें कमजोर रणनीति, अंदरूनी खींचतान और स्थानीय समीकरणों की गलत पढ़ाई थी.
कांग्रेस ने चाल समझी, BJP ने मौका गंवाया
ये सीट इसलिए खाली हुई थी क्योंकि मौजूदा विधायक कंवरलाल मीणा को एक सरकारी अधिकारी को धमकाने के केस में दोषी ठहराया गया था. कांग्रेस ने तुरंत रणनीति बदली और अनुभवी नेता प्रमोद जैन भाया पर दांव लगा दिया. उनके पास इलाके में मजबूत नेटवर्क है और दो बार की जीत का अनुभव भी. कांग्रेस जहां तेजी से एक्टिव हुई, वहीं बीजेपी उम्मीदवार चुनने में ही उलझी रही.
BJP की अंदरूनी कलह पड़ी भारी
अंटा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके बेटे सांसद दुष्यंत सिंह का राजनीतिक क्षेत्र माना जाता है.पार्टी केंद्रीय नेतृत्व चाहता था कि राजे खुलकर चुनाव संभालें लेकिन शुरुआत में उनके ज्यादा सक्रिय न होने की चर्चा रही. कुछ लोगों का मानना था कि वे जानबूझकर दूरी बना रही हैं या तो हार की जिम्मेदारी से बचने के लिए या फिर हार होने दें ताकि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा कमजोर पड़ें.
आखिरकार पार्टी ने उनकी पसंद के उम्मीदवार मोरपाल सुमन को टिकट दे दिया जो अनुभव में कमजोर माना जाता था. बीजेपी के पास एक और विकल्प कंवरलाल मीणा की पत्नी को टिकट देना था जिससे सिंपैथी वेव मिल सकती थी लेकिन ये मौका भी चला गया.
नरेश मीणा ने बिगाड़ा BJP का खेल
नरेश मीणा का निर्दलीय चुनाव लड़ना भाजपा के लिए सबसे बड़ा झटका साबित हुआ. उन्होंने बीजेपी के पारंपरिक वोटों में बड़ी सेंध लगाई. यहां नरेश मीणा पहले भी अपना प्रभाव दिखा चुके हैं. साल 2023 चाबड़ा चुनाव में 43,291 वोट से तीसरा स्थान और
2024 देओली-उनियारा उपचुनाव में 58,345 वोट से दूसरा स्थान लिया था. लेकिन उनकी आक्रामक शैली और विवादों ने भी लोगों को बांटा हुआ है, खासकर तब से जब वे SDM को थप्पड़ मारने के आरोप में 8 महीने जेल में रहे.
क्या वसुंधरा राजे का प्रभाव घट रहा है?
चुनाव का एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या राजे का प्रभाव उनके गढ़ में कमजोर हो रहा है? सुमन की हार को कई लोग सीधे राजे और दुष्यंत सिंह की राजनीतिक कमजोरी के तौर पर देख रहे हैं. चौंकाने वाली बात ये रही कि भाजपा के वे बड़े नेता, जो राजे गुट में नहीं गिने जाते, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के समर्थक मंत्री किरोड़ी लाल मीणा, मंत्री हीरा लाल नागर चुनाव अभियान से गायब नजर आए. संदेश साफ है कि राजस्थान BJP आज भी गुटबाजी से बुरी तरह जूझ रही है.
बीजेपी में खुलकर आरोप-प्रत्यारोप
राजे के करीबी और सात बार के विधायक प्रताप सिंह सिंघवी ने हार का ठीकरा पार्टी नेतृत्व पर फोड़ दिया और कहा कि जमीनी नेताओं को दरकिनार किया गया. लेकिन अंदर की बात यह है कि सिंघवी शायद अब खुद को राजे गुट से दूर दिखाना चाह रहे हैं ताकि भविष्य में मंत्री बनने का रास्ता खुल सके.
कांग्रेस का सीधा-सादा लेकिन मजबूत अभियान
कांग्रेस ने इस चुनाव में एकजुटता दिखाई. राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इसे जनता का BJP सरकार को संदेश बताया.जहां बीजेपी के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सिर्फ दो बार प्रचार करने पहुंचे, वहीं कांग्रेस नेताओं ने लगातार जमीन पर काम किया.
भजनलाल शर्मा की रणनीति काम आई?
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि CM शर्मा ने ये सीट जानबूझकर राजे को संभालने दी. क्योंकि अगर जीत होती तो पार्टी को फायदा होता और अगर हार होती तो राजे कमजोर होतीं. दूसरा विकल्प सच साबित हुआ. हार के बाद अब ये साफ हो रहा है कि BJP के अंदर की पुरानी शक्ति संरचनाएं कमजोर हो रही हैं और नई ताकतें उभर रही हैं.
नतीजा क्या संदेश देता है?
अंटा की हार से सरकार तो नहीं गिरेगी लेकिन इसने BJP को चेतावनी दे दी है कि अंदरूनी लड़ाई, देर से फैसले और गलत उम्मीदवार सब मिलकर पक्का सीट भी डुबा सकते हैं. कांग्रेस के लिए ये जीत सिर्फ चुनावी सफलता नहीं, बल्कि राजनीतिक वापसी की उम्मीद भी है और बीजेपी के लिए साफ संकेत है कि राजस्थान में बहुत काम बाकी है.