2024 में शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के तख्ता-पलट के बाद से बांग्लादेश की राजनीति में उथल-पुथल थमने का नाम नहीं ले रही है. राजनीतिक हत्याएं और हिंदुओं पर हमले आम हैं. सबकी उम्मीद अब 12 फरवरी 2026 को होने वाले आम चुनाव से है. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारीक रहमान के 17 साल के निर्वासन के बाद स्वदेश लौटने से नया चुनावी रंग आ गया है. दूसरी ओर छात्र संगठन नेशनलिस्ट सिटिजन पार्टी (NCP) और कट्टरपंथी इस्लामी संगठन जमात-ए-इस्लामी के भी चुनाव मैदान में डटे होने से मामला दिलचस्प हो गया है. लेकिन, इन सबके बीच एक अमेरिकी संगठन, इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट (IRI), बांग्लादेश की चुनावी हवा को अपनी तरह से दिशा देने में लगा है.
IRI का एजेंडा तो 'लोकतंत्र मजबूत करना' है. पर यह संगठन जिस तरह के सर्वे कर रहा है और इसके सदस्य जिस तरह से बांग्लादेशी राजनीतिक दलों से मिल रहे हैं. वह कुछ और ही कहानी कहता है. IRI को अक्सर अमेरिकी 'डीप स्टेट' या CIA से जुड़े संगठन के रूप में देखा जाता है, क्योंकि यह अमेरिकी सरकार की फंडिंग (USAID से) पर चलता है. दुनिया भर में यह संगठन 'लोकतंत्र मजबूत करने' के नाम पर राजनीतिक हस्तक्षेप करता रहा है. बांग्लादेश में IRI की एक्टिविटी 2003 से जारी हैं, लेकिन 2025 में यह चुनावी माहौल को आकार देने में विशेष रूप से सक्रिय दिख रही है.
IRI के मुताबिक बांग्लादेश में उसकी भूमिका चुनावी निगरानी, राजनीतिक दलों की ट्रेनिंग, सर्वे करना और सिविल सोसाइटी को मजबूत करना है. इसी साल IRI ने अक्टूबर में एक उच्चस्तरीय प्री-इलेक्शन असेसमेंट मिशन भेजा. जिसमें लिसा कर्टिस (पूर्व CIA एनालिस्ट) जैसी शख्सियतें शामिल थीं. लीजा 90 और 2000 की दहाई में सीआईए एनालिस्ट के तौर पर पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश को लेकर काम कर रही थीं. फिर वे अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का भी हिस्सा रहीं. अब वे सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी (CNAS) का हिस्सा हैं, जिसके सदस्य के रूप में वे दक्षिण एशिया और खासकर बांग्लादेश में कट्टरपंथ और आतंकवाद जैसे विषयों पर काम कर रही हैं. और वहां की पॉलिसी को रूप देने में जुटी हैं. वे QUAD डॉयलॉग के लिए भी काम करती रही हैं, जो अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के चलते ठंडे बस्ते में चला गया है. IRI के बोर्ड में क्रिस्टोफर जे. फुशनर भी हैं, जो रिपब्लिकन पार्टी समर्थक होने के अलावा सिंगापुर से अपनी टेक कंपनी चलाते हैं. वे फिलेंथ्रापी और IRI जैसे रणनीतिक संगठनों में भूमिका के लिए दुनिया में चर्चित हैं.
IRI की टीम ने पिछले दिनों बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस, चुनाव आयोग, BNP, जमात-ए-इस्लामी, इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश और अन्य दलों से मुलाकात की है. IRI ने चुनाव पर्यवेक्षक भेजने की घोषणा भी की. ये गतिविधियां सतही तौर पर डिमोक्रेसी की खातिर लगती हैं, लेकिन इस काम अमेरिकी हितों को आगे बढ़ाना है.
विवादित यूनुस IRI के सर्वे में हीरो और रिफॉर्मर हैं
IRI की सबसे विवादास्पद भूमिका उसके सर्वेक्षणों में दिखती है. दिसंबर 2025 में जारी IRI के राष्ट्रव्यापी सर्वे (सितंबर-अक्टूबर 2025 में किया गया) में मुहम्मद यूनुस और अंतरिम सरकार को भारी समर्थन दिखाया गया. बावजूद इसके कि बांग्लादेश में यूनुस सरकार के खिलाफ कुछ धरने प्रदर्शन हुए. चुनाव कराने में आनाकानी कराने को लेकर भी यूनुस के खिलाफ नाखुशी रही. लेकिन, सर्वे के अनुसार 69% लोगों ने यूनुस के कामकाज को अच्छा बताया, जबकि 70% ने अंतरिम सरकार की तारीफ की. IRI की एशिया-पैसिफिक सीनियर डायरेक्टर जोहाना काओ ने कहा, 'बांग्लादेशी यूनुस के नेतृत्व में प्रगति देख रहे हैं.'

अवामी लीग बैन है, लेकिन आगामी चुनाव अभी से ‘निष्पक्ष'
दिलचस्प ये है कि आगामी चुनावों को 80 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने फ्री एंड फेयर बताया है, जबकि इस चुनाव में अवामी लीग को चुनाव लड़ने से ही अयोग्य करार दिया गया है. यह तथ्य भले ही डेमोक्रेसी के पैमाने में खरा न उतरता हो, लेकिन IRI का सर्वे यही कहता है कि बांग्लादेशी नागरिक चुनाव को लेकर सकारात्मक हैं और आवामी लीग को प्रतिबंधित किए जाने से खुश.
यूनुस को नोबेल विजेता और सुधारक के रूप में प्रचारित कर IRI अंतरिम सरकार की वैधता को मजबूत कर रही है. ऐसे सर्वे चुनाव से पहले जनमत को प्रभावित करते हैं, खासकर तब जबकि अवामी लीग पर चुनाव लड़ने को लेकर प्रतिबंध है और शेख हसीना निर्वासन में हैं. पहले IRI के सर्वे हसीना सरकार को हाई रेट करते थे, लेकिन अब नई सरकार को बढ़ावा दे रहे हैं.

सर्वे में पाकिस्तान दोस्त, और भारत विलेन
IRI का सर्वे भारत के प्रति नकारात्मक धारणा भी हाईलाईट करता है. बांग्लादेश के दोस्तों की सूची में भारत सबसे नीचे है. जबकि रूस, चीन और यहां तक कि पाकिस्तान टॉप पर हैं. यह भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव को दर्शाता है, जो यूनुस सरकार के समय बढ़ा है. IRI के सर्वे में वो यूनुस अच्छे हैं जो हिंदुओं पर हमले रोक पाने में नाकाम हैं. वो यूनुस अच्छे हैं जो भारत के खिलाफ जहरीले बयानों को रोक पाने में नाकाम है.

और, अंत में सबसे दिलचस्प है मजहबी भेदभाव और उन्माद पर सर्वे के नतीजे
यूनुस सरकार के सत्ता संभालने के बाद से न सिर्फ भारत के बल्कि बांग्लादेशी हिंदुओं के खिलाफ माहौल विषैला होता गया. जहां तक हिंदुओं पर हमले और हत्याएं होती गईं. लेकिन IRI के सर्वे के नतीजे देखकर लगता है कि बांग्लादेश के हिंदू और मुसलमान दोनों वहां समान रूप से संतुष्ट या असंतुष्ट हैं. दोनों समान रूप से भेदभाव सह रहे हैं या नहीं सह रहे हैं. दोनों को समान रूप से लगता है कि हाल के वर्षों में राजनीति में मजहबी उन्माद बढ़ा है या नहीं बढ़ा है. आइये, सच्चाई से नजरें चुराते इन सर्वे के नतीजों पर एक बार और नजर डालते हैं.


IRI की गतिविधियां चुनाव को आकार देने में कैसे मदद कर रही हैं?
IRI सर्वे BNP को 33% और जमात-ए-इस्लामी को 29% समर्थन दिखाते हैं, जो अवामी लीग के बिना चुनाव में इस्लामी ताकतों के उभार की ओर इशारा करता है. IRI की रिपोर्ट्स में चुनाव सुधारों की तारीफ है, लेकिन राजनीतिक हिंसा और पक्षपात की चेतावनी भी. IRI जैसे संगठन 'सॉफ्ट पावर' से अमेरिकी हित साधते हैं. जैसे बांग्लादेश को चीन के BRI से दूर रखना या इंडो-पैसिफिक में अपनी पोजीशन मजबूत करना. कुल मिलाकर, IRI की ताजा गतिविधियां, मीटिंग्स, सर्वे और निगरानी बांग्लादेश के चुनावी नैरेटिव को प्रभावित कर रही हैं. यह संगठन यूनुस को रिफॉर्मर, हीरो बनाकर और भारत को निगेटिव रोल में दिखाकर अमेरिकी विदेश नीति को आगे बढ़ा रही है.