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हजारों पाकिस्तानी अवैध तरीके से देश में कैसे रह रहे हैं, क्या इसके लिए भी पाकिस्तान जिम्मेदार?

देश की राजधानी दिल्ली मे सैकड़ों पाकिस्तानी अस्पतालों के पते पर वीजा बनवाकर भारत आ गए और सालों से यही रह रहे हैं. दुर्भाग्य ये है कि आप और हम बैंक में खाता खोलने जाएं या कार खरीदने जाएं तो हमसे प्रॉपर एड्रेस प्रूफ मांगा जाता है.

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देश की राजधानी दिल्ली में हजारों पाकिस्तानी अस्पतालों के पते पर वीजा लेकर आए और यहीं रह गए.
देश की राजधानी दिल्ली में हजारों पाकिस्तानी अस्पतालों के पते पर वीजा लेकर आए और यहीं रह गए.

हजारों पाकिस्तानी भारत में कई साल से रह रहे थे और सरकार को पता ही नहीं था या जानबूझकर हम उन्हें पाल पोस रहे थे. यह कितनी निराशाजनक बात है कि पाकिस्तानी नेशनल्स को वीजा अस्पतालों के एड्रेस पर विदेश मंत्रालय दे रहा था. भारत का नागरिक बैंक में एकाउंट खोलने जाए, कार खरीदने जाए या ड्राइविंग लाइसेंस खरीदने जाए तो उससे एड्रेस प्रूफ मांगा जाता है. और जिन लोगों पर शक है कि वे भारत में कभी भी देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं उनके लिए खुला खेल फरुखाबादी चल रहा है. मतलब कि अस्पतालों के एड्रेस पर सालों से वो भारत में घूम रहे हैं और फिक्र किसी को नहीं है. क्या इसके लिए भी हम पाकिस्तान को दोष देंगे?

पहलगाम हमले के बाद जब केंद्र सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों को देश छोड़ने का आदेश दिया तब यह खुलासा हुआ है कि हजारों पाकिस्तानी नागरिक भारत में वैध और अवैध रूप से कई वर्षों से रह रहे हैं. जाहिर है कि इस स्थिति ने राष्ट्रीय सुरक्षा, सीमा प्रबंधन और सरकारी नीतियों की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल उठेंगे ही. 

1-ये देश के नागरिकों की जान से खिलवाड़ नहीं तो क्या है?

भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सैकड़ों पाकिस्तानी नागरिकों के अस्पतालों के पते पर रहने की चौंकाने वाली खबर का पता चला है. इनमें से कई लोग इलाज के लिए वैध वीजा पर आए थे, लेकिन वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी भारत में रुके रहे. इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने दिल्ली पुलिस को एक सूची सौंपी, जिसमें लगभग 5200 पाकिस्तानी नागरिकों के नाम शामिल हैं, जो दिल्ली में रह रहे थे. इनमें से अधिकांश ने अपने पते के रूप में विभिन्न अस्पतालों को दर्ज किया था, विशेष रूप से मध्य दिल्ली, जामिया नगर, मजनू का टीला, और नॉर्थ ईस्ट दिल्ली जैसे क्षेत्रों में. इनमें कुछ लोग अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) जैसे प्रमुख अस्पतालों में मुफ्त इलाज का लाभ उठा रहे थे, जबकि अन्य ने अस्पतालों के पते का उपयोग केवल निवास के लिए आधार के रूप में किया.

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इनमें से कई पाकिस्तानी नागरिक अल्पकालिक मेडिकल वीजा पर भारत आए थे, लेकिन वीजा समाप्त होने के बाद वे लापता हो गए या स्थानीय समुदायों में घुलमिल गए. कुछ मामलों में, उन्होंने फर्जी दस्तावेजों या भारतीय नागरिकों से शादी के माध्यम से अपनी उपस्थिति को वैध बनाने की कोशिश की. मजनू का टीला में लगभग 900 और सिग्नेचर ब्रिज के पास 600-700 पाकिस्तानी नागरिकों की मौजूदगी दर्ज की गई है. यह स्थिति दर्शाती है कि निगरानी तंत्र में गंभीर खामियां थीं, जिसके कारण इतनी बड़ी संख्या में लोग बिना किसी वैध दस्तावेज के दिल्ली में रह रहे थे.

सरकारों की लापरवाही का एक प्रमुख कारण यह रहा कि विभाजन के बाद दोनों देशों के बीच लोगों का आवागमन सामान्य था. पर दोनों देश के बीच संबंध सामान्य कभी नहीं रहे.  कई युद्ध और अपरोक्ष युद्द लगातार कई दशकों से चल रहा है. इसके बावजूद एक ऐसे देश में संभव है जहां कानून का राज न हो.  राजस्थान, पंजाब, और दिल्ली जैसे सीमावर्ती या प्रमुख शहरों में पाकिस्तानी नागरिकों की उपस्थिति को तो सामान्य माना जा चुका है. उदाहरण के लिए, जैसलमेर में 6,000 से अधिक पाकिस्तानी दीर्घकालिक वीजा पर रह रहे थे, और पूरे राजस्थान में यह संख्या 20,000 तक थी. इस तरह की स्थिति को नजरअंदाज करना सरकारों की प्राथमिकताओं में कमी को दर्शाता है.

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2.क्या हमारी वीजा नीतियां कमजोर हैं

आम तौर पर यह माना जाता रहा है कि भारत में वीजा नीतियां, विशेष रूप से पाकिस्तानी नागरिकों के लिए, हमेशा से जटिल रही हैं. पर जिस तरह की घटनाएं सामने आईं हैं उससे तो यही लगता है कि भारत में राशन कार्ड बनवाने से भी आसान है यहां का वीजा लेना. उसमें भी पाकिस्तानियों के लिए तो और भी आसान है , क्योंकि उन्हें भारत में आंख मूंदकर वीजा दिया जाता है.  कई मामलों में, वीजा अवधि समाप्त होने के बाद भी लोगों ने भारत में रहना जारी रखा, और इसकी निगरानी नहीं की गई. उदाहरण के लिए, एक पाकिस्तानी नागरिक राधा भील, जो अल्पकालिक वीजा पर भारत में रह रही थी, ने अपने बच्चे को पाकिस्तान में छोड़ दिया था, लेकिन बाद में उसे भी भारत लाया गया. यह दर्शाता है कि भारत में वीजा प्रणाली में उचित ट्रैकिंग और फॉलो-अप की कमी है. सवाल यह उठता है कि इसके लिए जो जिम्मेदार हैं, क्या उनके खिलाफ कार्रवाई भी होगी?

3.क्या हमारा खुफिया तंत्र कमजोर है

भारत की खुफिया एजेंसियां और स्थानीय पुलिस आतंकवाद और सीमा सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करती हैं, पर जिस तरह आए दिन पाकिस्तानी भारत में घुसकर आतंकी वारदात को अंजाम देते रहे हैं उससे तो यही लगता है कि जरा भी ध्यान नहीं दिया जाता है. सोचिए जब मुंबई हमले, संसद पर हमले , पुलुवामा हमले , आए दिन कश्मीर में सेना के अफसरों पर हमले के बाद भी खुफिया विभाग पर जूं नहीं रेंग रहा है तो पाकिस्तानी नेशनल्स की चिंता कौन करेगा?  अवैध प्रवासियों की पहचान और निगरानी तो पूरी दुनिया में सीमित रही है. पर दुनिया का कोई भी देश अपने दुश्मन देश के नागरिकों के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं करता जैसा भारत में हो रहा है. ये तब है जब देश में कट्टर राष्ट्रवादी पार्टी की सरकार है. देश में पाकिस्तानी नागरिकों की स्थिति ऐसी है कि वे स्थानीय समुदायों में घुलमिल गए और उनकी गतिविधियों पर नजर नहीं रखी गई. उदाहरण के लिए, पंजाब में 83,000 और दिल्ली में 5,000 पाकिस्तानी नागरिकों की उपस्थिति का पता तब चला जब सरकार ने सख्ती दिखाई.

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4. राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता
 

भारत में विभिन्न सरकारों ने समय-समय पर अवैध प्रवासियों के मुद्दे को उठाया, लेकिन इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के बजाय राजनीतिक मुद्दा बनाया गया. भारतीय जनता पार्टी जब तक सत्ता में नहीं थी तब तक अवैध बांग्लादेशी नागरिकों और पाकिस्तानी नागरिकों के खिलाफ आए दिन कुछ बोलती रहती थी. यूपीए सरकार पर इन लोगों को पनाह देने का आरोप लगाती रही पर अब केंद्र और राज्यों में बीजेपी की ही सरकार तो कुछ ऐसा नहीं दिख रहा है जिसे अलग कहा जा सके. विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्टॅ, राजस्थान जैसे राज्यों में, जहां पाकिस्तानी नागरिकों की संख्या अधिक थी और वहां बीजेपी की ही सरकार है पर स्थानीय प्रशासन ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया. अब जब पहलगाम में पर्यटकों की हत्या हुई है तो केंद्र और राज्य सरकारें जागी हैं. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस शासित राज्यों में सरकार ने पाकिस्तानियों और बांग्लादेशियों के खिलाफ सख्ती की हो . पर कांग्रेस तो मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते ऐसा करने से बच रही होगी पर बीजेपी सरकारों की क्या मजबूरी है, ये समझ से परे है.

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