5 राज्यों का चुनाव सामने है पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों का ध्यान अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों पर है. इन पांच राज्यों के चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों राष्ट्रीय मुद्दों की भले बात कर लें पर वोट तो स्थानीय मुद्दे पर पड़ेंगे. यह बात दोनों दलों के नेता समझते हैं.यही कारण है कि दोनों पार्टियां अपने राष्ट्रीय मुद्दों का लिटमस टेस्ट इन विधानसभा चुनावों में कर लेना चाहती है. यही कारण है कि कांग्रेस जाति जनगणना के मुद्दे पर अचानक इतना जोर देने लगी है. कांग्रेस जानती है कि अगर विधानसभा चुनावों में ये मुद्दा फुस्स होता है तो फाइनल मुकाबले में इससे किनारा कर लिया जाएगा. यह भी देखते हैं कि बीजेपी जाति जनगणना को लेकर इतना आश्वस्त क्यों नजर आ रही है?
1-जाति जनगणना से मुकर नहीं रही बीजेपी
जो लोग सोच रहे हैं कि विपक्ष के जाति जनगणना के दावे का बीजेपी विरोध कर रही है वो मुगालते में हैं. बीजेपी की रणनीति को समझना इतना आसान खेल नहीं है. आप खुद देखिए और बताइये यह कितना सही होगा कहना कि बीजेपी जाति जनगणना से मुंह मोड़ रही है.बीजेपी के सुशील मोदी कहते हैं कि ये जो जातीय जनगणना है, ये हमारा बच्चा है. बात भी सही है दरअसल बिहार में जाति जनगणना का डिमांड करने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में पटना से दिल्ली पहुंचने वालों में बीजेपी भी थी. सुप्रीम कोर्ट में जब मामला फंसा तो केंद्र सरकार अपना विरोध करके जाति सर्वे रोक भी सकती थी. पर केंद्र सरकार ने विरोध नहीं किया.
अब दूसरा पक्ष भी देखिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक रैली में कहते हैं कि जाति की राजनीति करके कांग्रेस और विपक्षी दल पाप कर रहे हैं. फिर एक दिन बाद वो बयान पलटते हैं और कहते हैं गरीब की जाति सबसे बड़ी जाति होती है. तीसरे दिन जिसकी जितनी आबादी-उसकी उतनी हिस्सेदारी को मुसलमानों के अधिकार से जोड़ देते हैं. वे कहते हैं कि कांग्रेस क्या नहीं चाहती कि मुसलमानों को उनका हक मिले, क्या कांग्रेस मुसलमानों का हक छीनना चाहती है?
अब देखिए असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व शर्मा भी कह रहे हैं कि वो मुसलमानों की पांच जातियों को लेकर सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण कराएंगे. महाराष्ट्र में उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने साफ कहा कि हम बिहार में जातीय सर्वे कराने वाले अधिकारियों से बात कर रहे हैं और उनकी मेथोडोलॉजी समझने की कोशिश कर रहे हैं.आप किस तरह कहेंगे कि बीजेपी जाति जनगणना का विरोध कर रही है.
2-जातियों के वोट पर CSDS सर्वे क्या कहता है
ये तय है कि बीजेपी जाति जनगणना का विरोध नहीं करने वाली है. सर्वे में यह बात सामने आयी है कि 2009 में बीजेपी को ओबीसी का करीब 22% वोट मिला था, जो 2019 में बढ़कर 44% हो गया. सीएसडीएस के लोकनीति सर्वे की माने तो आज की तारीख में जब बिहार में जाति जनगणना की रिपोर्ट भी आ गई है बीजेपी को 44 प्रतिशत से बढ़कर 45 प्रतिशत वोट मिल रहा है. कांग्रेस को 2019 में 22 से 23% वोट मिला था जो घटकर 15% हो गया. सामाजिक न्याय की बात करने वाली पार्टियों को 54% वोट मिला था जो घटकर 41% हो गया. एक बात बीजेपी के पक्ष में और जाती है कि 2019 में जो 44% वोट ओबीसी के मिले थे उसमें ईबीसी का 48% वोट मिला था.
3- जाति-जाति करना कांग्रेस की मजबूरी
कांग्रेस अच्छी तरह जानती है कि जो उसका परंपरागत वोट बैंक रहा है वो अब उसके पास आने वाला नहीं है. अगर परंपरागत वोटरों का कुछ हिस्सा वापस भी आ जाता है तो उसकी सरकार नहीं बनने वाली है. सरकार बनाने के लिए जरूरी है कि कुछ नए वोट बैंक तैयार किए जाएं. इस चक्कर में कांग्रेस ओबीसी वोटर्स को लुभाने के लिए लगातार प्रयास शुरू कर दिया है.सीएसडीएस के सर्वे से एक बात और क्लीयर होती है कि पिछली बार कांग्रेस को 12 करोड़ वोट मिला था. पर कांग्रेस के लिए सबसे खुशी की बात यह है कि सर्वे कहता है कि 2024 में पार्टी को 19% ज्यादा वोट मिल सकता है.
कांग्रेस के लिए दिक्कत यह है कि उसके हिस्से में जो एक्स्ट्रा वोट आ रहे हैं वो विपक्ष से टूटकर आते दिख रहे हैं. न कि बीजेपी के वोट कम हो रहे हैं.इसलिए कांग्रेस चाहती है कि अगर ओबीसी वोटरों में सेंध लगाएंगे तो बीजेपी को नुकसान होगा. पर बीजेपी इतनी जल्दी अपने कोर वोटरों को छोड़ने वाली नहीं है. सीएसडीएस सर्वे तो बीजेपी के लिए भी खुशखबरी ही ला रहा है. रुझान बता रहे हैं कि बीजेपी का वोट 37% से बढ़कर 39 हो सकता है.
4- 2019 के आंकड़े क्या कहते हैं?
देश में राजनीति का बिहार मॉडल पूरे देश के लिए बहुत खराब साबित हुआ है. वह बिहार में सत्ता पाने के लिए जाति का यह मॉडल भले कारगर रहा हो प्रशासनिक दृष्टि से कभी इसे कारगर नहीं माना गया है. जहां तक बिहार के राजनीतिक मॉडल की बात है , तमाम पिछड़ी जातियां भाजपा के खिलाफ एकजुट क्यों न हो जाएं, वे केवल बिहार में ही बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकती हैं. फिर भी 2019 के चुनाव के कुछ तथ्यों पर गौर करें तो ऐसा नहीं लगता है कि बिहार का जाति मॉडल पूरे देश के चुनावों में बीजेपी को हानि पहुंचाता दिख रहा है.
देश के वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता अपने एक आर्टिकल में स्पष्ट करते हैं कि 2019 में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने देश की 224 लोकसभा सीटों पर 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किए थे. उनके कहने का मतलब है कि बीजेपी को बहुमत पाने के लिए मात्र 49 सीटें और चाहिए. आप चाहे जिसके समर्थक हों पर कितना क्लीयर है कि इतने बड़े बहुमत को बदलना कितना मुश्किल होगा. इन 224 सीटों में से कितनी किस राज्य की हैं, इसके ब्यौरे पर गौर करें तो यह चुनौती और बड़ी नजर आएगी. भाजपा को उत्तर प्रदेश की कुल सीटों में से आधी पर 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. यह राज्य जातीय समीकरण, आबादी का आर्थिक और सामाजिक आधार, मुस्लिम आबादी के हिसाब आदि से काफी कुछ हद तक बिहार जैसा ही है. यानी 80 में से 40 सीटें.राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक ऐसे बड़े राज्य हैं जिन पर मोदी ज्यादा भरोसा कर रहे हैं. इन राज्यों में भी बीजेपी 2019 में क्रमशः 23, 25, 26, 22 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी. सब मिलाकर देखें तो 188 में से 136 यानी आधे से अधिक सीटें यहां भी मिल रही हैं. शेखर गुप्ता पूछते हैं कि क्या जातीय जनगणना इतना बडा फॉर्मूला हो सकता है, जिसके चलते लाखों वोटर्स मोदी से मुंह मोड़ लेंगे?
5-बीजेपी की क्या है तैयारी
बीजेपी विपक्ष के जाति सर्वे के काट के लिए पूरी तरह तैयार है. पार्टी की पहली रणनीति यह है कि आम जनता में यह जाए ही नहीं कि बीजेपी जाति जनगणना का विरोध कर रही है. दूसरी बात राम मंदिर का उद्घाटन को बीजेपी इतना बड़ा इवेंट बनाएगी कि वो आम हिंदू उसे अपने प्राइड से जोड़कर देखे. वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि हो सकता है कि जिस तरह मंदिर का शिलान्यास एक दलित से ईंट रखकर बीजेपी न कराया था उद्घाटन के इवेंट को भी किसी अति पिछड़े या दलित से जोड़ा जाए.बीजेपी टिकट बंटवारे के जरिए भी यह दिखाने की कोशिश करेगी कि पिछड़ों की असली पार्टी भारतीय जनता पार्टी ही है.यह भी संभव है कि 2024 चुनावों से पहले बीजेपी जाति जनगणना मुद्दे के काट के तौर पर रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को भी लागू करे.