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मराठी के नाम पर भड़काऊ रवैया ठाकरे बंधुओं के लिए आत्मघाती है

मुंबई में शिवसेना यूबीटी और मनसे की संयुक्त रूप से विजय दिवस रैली हुई. मराठी भाषा के नाम पर ठाकरे बंधुओं ने खुलकर गुंडागर्दी को शह देने की बात की. इस बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस क्यों आंख मूंदे हुए हैं ?

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राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे

महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे बंधुओं उद्धव ठाकरे (शिवसेना-UBT) और राज ठाकरे (मनसे) का 5 जुलाई को 20 साल बाद मिलन हो गया. वर्ली के एनएससीआई डोम में आयोजित 'मराठी विजय दिवस' रैली में दोनोंं ने एक मंच पर आ आकर मराठी भाषा के सम्मान के नाम पर गुंडागर्दी को शह देने का ऐलान किया. जाहिर है कि यह दोनों भाइयों का महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार को सीधा चैलेंज करना था.

 रैली में ठाकरे बंधुओं के भड़काऊ बयानों, जैसे राज ठाकरे का 'अगर आप किसी को पीटते हैं, तो वीडियो न बनाएं' और उद्धव ठाकरे का 'अगर गुंडागर्दी किए बगैर न्याय नहीं मिलेगा, तो हम गुंडागर्दी करेंगे' ने यह सवाल उठाया कि क्या महाराष्ट्र सरकार की चुप्पी से हिंदी भाषियों की सुरक्षा हो सकेगी? एक सवाल यह भी उठता है कि क्या महाराष्ट्र की राजनीति में गुंडा गर्दी के बिना सत्ता नहीं हासिल होने वाली है. क्या ठाकरे बंधु इस तरह की आक्रामक रणनीति और गुंडागर्दी के जरिए वे अपनी खोई राजनीतिक जमीन महाराष्ट्र में  वापस हासिल कर सकेंगे? इन सारे सवालों का जवाब फडणवीस की चुप्पी में है. फडणवीस पेशवाई राजनीति के घुटे हुए खिलाड़ी हैं. ठाकरे बंधुओं के पटखनी देने के लिए उनकी चुप्पी ही काफी है क्यूं? 

ठाकरे बंधुओं के भड़काऊ बयानों पर जरा गौर करिए

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5 जुलाई 2025 की विजय दिवस रैली में ठाकरे बंधुओं ने मराठी अस्मिता और हिंदी को थोपने के कथित प्रयास के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया. उनके कुछ प्रमुख बयान निम्नलिखित हैं.

राज ठाकरे कहते हैं कि मैं आपको एक बात बताता हूं, अगर आप किसी को पीटते हैं, तो घटना का वीडियो न बनाएं. जाहिर है कि यह बयान सीधे सीधे हिंसा को प्रोत्साहित करने वाला माना गया, खासकर हाल की घटनाओं जैसे ठाणे में मराठी न बोलने पर दुकानदार की पिटाई के संदर्भ में.  राज कहते हैं कि सभी हिंदी भाषी राज्य हमसे पीछे हैं और हम सभी हिंदी भाषी राज्यों से आगे हैं, फिर भी हमें हिंदी सीखने के लिए मजबूर किया जा रहा है? यह बयान देते हुए राज ठाकरे की हिंदी भाषियों के लिए जो तुच्छ भावना दिख रही थी जाहिर है वह नफरत में तब्दील होगी ही.

उद्धव ठाकरे कहते हैं कि अगर गुंडागर्दी किए बगैर न्याय नहीं मिलेगा, तो हम गुंडागर्दी करेंगे. यह बयान स्पष्ट रूप से हिंदीभाषियों के प्रति हिंसा को शह देने वाला है जो सामाजिक एकता के लिए हानिकारक है. इस बयान के खिलाफ तो महाराष्ट्र सरकार को प्रदेश को दंगे की आग में झोकने का सीधा मामला दर्ज करना चाहिए था. उद्धव बोलते हैं कि ये लोग (भाजपा-शिंदे गुट) यूज एंड थ्रो की पॉलिसी का इस्तेमाल करते हैं. अब हमारी बारी है. अब हम इन्हें उखाड़कर बाहर फेंकेंगे. 

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गौरतलब है कि इन बयानों के पहले मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा मराठी न बोलने पर दुकानदारों की पिटाई जैसी घटनाओं के चलते ठाकरे बंधुओं पर गुंडागर्दी का आरोप लगा था.  

क्या गुंडागर्दी सत्ता की कुंजी हो सकती है?

ठाकरे बंधुओं की एकजुटता और मराठी अस्मिता का मुद्दा मुंबई, ठाणे, और नवी मुंबई जैसे शहरी क्षेत्रों में मराठी मतदाताओं को भावनात्मक रूप से आकर्षित कर सकता है, पर गुंडागर्दी करके कतई उन्हें अपना नहीं बनाया जा सकता है. हां, अगर ठाकरे बंधुओं के उकसावे में आकर फडणवीस सरकार या हिंदी भाषी कोई कदम उठाते हैं तो  जरूर यह ठाकरे बंधुओं के लिए फ्रूटफुल हो सकता है . पर ऐसा होता दिख नहीं रहा है. हिंदी भाषी जनता , विशेषकर सड़कों पर मार खाने वाले अधिकतर कमजोर लोग हैं. ये लोग ऐसे नहीं हैं कि अपना प्रतिरोध कर सकें. ये अपना वोट देकर भले ही अपना विरोध दर्ज कराएं पर सड़क पर उतर कर मराठी भाषियों से झगड़ा करने नहीं आएंगे. महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और बीजेपी नेता नितेश राणे ने शायद इसलिए ही कहा था कि अगर ठाकरे बंधुओं में हिम्मत है तो मुस्लिम एरिया में जाएं और मराठी न बोलने पर मार कर दिखाएं. 

 BMC चुनावों में, जहां मराठी वोटरों का शेयर 40% के करीब है. इसलिए शिवसेना (UBT) की यह रणनीति जरूर मनसे को थोड़ा मजबूत कर सकती है. हो सकता है कि उद्धव को राज ठाकरे के 7 प्रतिशत वोट शेयर का समर्थन मिल जाए पर कोई गारंटी नहीं है. क्योंकि राज ठाकरे के वोट उनके प्रत्याशियों के अपने वोट हैं. राज ठाकरे की पार्टी के नाम पर अभी भी कोई वोट बैंक नहीं है. जो समझ रहे हैं कि दोनों भाई मिलकर एक वोट बैंक बना लेंगे वो मुगालते में हैं. फडणवीस यह बात समझते हैं इसलिए उन्होंने चुप्पी साध ली है.

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मराठी वोटर अब पहले की तरह एकजुट नहीं 

 2024 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना (UBT) का वोट शेयर 16.3% (2009) से घटकर 10% हो गया, और मनसे का 1.6% रह गया है. जाहिर है कि यह सब शिवसेना शिंदे के चलते हुआ है. शिंदे के पास शिवसेना का चुनाव चिह्न भी है. इसके साथ शिवसेना शिंदे के पास पार्टी के जितने कद्दावर लोग थे उसमें से करीब 80 प्रतिशत उनके साथ हैं. लोकल चुनाव पूरे देश में स्थानीय नेताओं के व्यक्तित्व पर लड़े जाते हैं.   

ग्रामीण महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण, जाति, और आर्थिक मुद्दे हावी हैं. इन सबसे बढ़कर हिंदुत्व का मुद्दा पूरे देश की तरह यहां भी सर चढ़कर बोल रहा है.बाला साहब ठाकरे ने स्वयं मराठी भाषा के नाम पर राजनति शुरू की थी पर बाद में उन्होंने हिंदुत्व की राह पकड़ ली थी. बाला साहब के हिंदुत्व की राह पकड़ने के बाद ही वह पूरे देश में चर्चा के केंद्र बने. बाबरी विध्वंस करने का श्रेय डंके के चोट पर  लेने वाले वे एक मात्र नेता थे. जिसके चलते वो पूरे देश में हिंदू हृदय सम्राट के रूप में लोकप्रिय हुए. कहने का मतलब केवल इतना है कि बाला साहब ठाकरे तक को भाषाई राजनीति रास नहीं आई थी. उम्मीद कम है दोनों भाई भाषा के नाम पर अपनी राजनीति चमका सकेंगे.

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मराठी महापुरुषों ने ही हिंदी को बनाया सिरमौर

आम मराठी को हिंदी भाषा से कोई दुराव नहीं है. क्योंकि वो समझता है कि हिंदी कहीं से भी उनके कंपटीटर बनकर नहीं उभर रही है. खुद मराठा क्षत्रपों ने हिंदी भाषा को अपने सर माथे पर बिठाया. छत्रपति शिवाजी और मराठी नेताओं ने ही हिंदी को सिरमौर बनाया.मराठा साम्राज्य और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इन नेताओं ने मराठी अस्मिता को मजबूत करते हुए हिंदी को एकजुट करने वाली भाषा के रूप में स्थापित किया. 

शिवाजी ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की और हिंदवी स्वराज्य का विचार दिया. उनके शासन में मराठी और संस्कृत मुख्य भाषाएं थीं, लेकिन कूटनीति में हिंदुस्तानी (प्रारंभिक हिंदी-उर्दू) का उपयोग आम था. मुगल दरबार और राजपूत शासकों के साथ पत्राचार में हिंदी का प्रयोग हुआ, जैसे औरंगजेब को लिखे पत्र. शिवाजी के दरबार में भक्ति कवियों को संरक्षण मिला, जिन्होंने हिंदी के प्रारंभिक रूपों (ब्रज, अवधी) में रचनाएं कीं, जिससे हिंदी को जनमानस में लोकप्रियता मिली. मराठा दरबारों में हिंदी कवि भूषण को संरक्षण मिला, जिन्होंने ब्रजभाषा में शिवा-बावनी जैसी रचनाएँ लिखीं.

अहिल्याबाई ने मंदिरों में हिंदी भजनों और भक्ति साहित्य को प्रोत्साहन दिया, जिससे हिंदी सांस्कृतिक रूप से सशक्त हुई. बाल गंगाधर तिलक ने हिंदी को स्वतंत्रता आंदोलन में एकजुट करने वाली भाषा के रूप में प्रोत्साहित किया. विनायक दामोदर सावरकर ने हिंदी को राष्ट्रीय एकता की भाषा माना और हिंदू महासभा के मंच से इसका प्रचार किया.  डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने संविधान सभा में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने का समर्थन किया, जिससे यह राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हुई.  विष्णु दिगंबर पलुस्कर ने हिंदी भजनों और हिंदुस्तानी संगीत को बढ़ावा दिया, जिसने हिंदी को सांस्कृतिक मंच प्रदान किया.

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महाराष्ट्र में हिंदी इस कदर रची बसी है कि ठाकरे बंधुओं की गुंडागर्दी मराठी भाषियों के वोट हासिल करने के सपने पर उल्टा पड़ जाएगा.

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