बिहार की सियासत में एक बार फिर बिल्ली की भाग्य से छींका टूटने वाला है. यानि कि महागठबंधन अपनी गलतियों के चलते एक बार फिर एनडीए को बैठे बिठाए सत्ता सौंपने वाली है. हाल फिलहाल की घटनाएं बताती हैं कि 2025 विधानसभा चुनावों में उतरने के लिए राज्य का विपक्षी गठबंधन लोकसभा चुनावों में मिली हार से कोई सबक नहीं सीख सका है. 2024 लोकसभा चुनावों की तरह एक बार फिर महागठबंधन बाहर से ही केवल एक है. अंदर से बुरी तरह बिखरा हुआ है.
कांग्रेस नेता और पूर्णिया निर्दलीय सांसद का चुनाव जीतने वाले पप्पू यादव (राजेश रंजन) के एक बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है. उन्होंने गुरुवार को कहा कि अगर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बने, तो या तो मुझे मरवा देंगे या फिर मैं बिहार छोड़कर भाग जाऊंगा. कल्पना करिए जब महागठबंधन का एक प्रमुख नेता अपने सीएम कैंडिडेट के बारे में ऐसी बात कर रहा है तो भगवान ही मालिक है इस गठबंधन का.
यह बयान न केवल तेजस्वी यादव और राष्ट्रीय जनता दल के लिए एक गंभीर आरोप है, बल्कि यह महागठबंधन की एकजुटता पर भी बड़ा सवाल खड़ा करता है. जिस तरह तेजस्वी के चुनावों के बॉयकॉट वाले बयान से कांग्रेस ने किनारा किया है वो भी महागठबंधन में बड़े लेवल के मतभेद को उजागर करता है.
1-पप्पू यादव और तेजस्वी यादव की अनबन तो पुरानी है, लेकिन क्या ये खतरनाक भी है
बिहार की राजनीति में पप्पू यादव और तेजस्वी यादव के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है. 2024 के लोकसभा चुनाव में यह तब और बढ़ गया, जब RJD ने पूर्णिया सीट पर बीमा भारती को अपना उम्मीदवार बनाया, जबकि पप्पू यादव ने कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी. अंततः, पप्पू यादव ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. दोनों के बीच जिस तरह की प्रतिस्पर्धा है उसका नुकासन महागठबंधन और तेजस्वी यादव को एक बार फिर भुगतना पड़ सकता है.
पप्पू यादव का यह बयान केवल व्यक्तिगत रंजिश का परिणाम नहीं है, बल्कि यह महागठबंधन के भीतर नेतृत्व और सीट बंटवारे को लेकर गहरे असंतोष को भी दर्शाता है. पप्पू यादव ने बार-बार यह संकेत दिया है कि वह तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा मानने के लिए तैयार नहीं हैं. उन्होंने कांग्रेस के नेताओं जैसे राजेश राम और तारिक अनवर को संभावित मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करने की कोशिश की. हालांकि पप्पू के इस पेशकश का कोई मतलब नहीं था. पर महागठबंधन की कमजोरी को जरूर उजागर करता है.
2-तेजस्वी को पप्पू के बजाय प्रशांत किशोर पर फोकस करना चाहिए
पप्पू यादव और तेजस्वी के बीच नेतृत्व को लेकर स्पष्ट मतभेद हैं. पप्पू यादव खुद को एक मजबूत क्षेत्रीय नेता के रूप में स्थापित करना चाहते हैं और कांग्रेस के लिए एक बड़ा रोल चाहते हैं.पर तेजस्वी और लालू यादव को भी इतना भी मंजूर नहीं है. समय की दौड़ में पप्पू यादव से तेजस्वी बहुत आगे निकल चुके हैं. तेजस्वी आज की तारीख में विपक्षी गठबंधन की ओर स्वाभाविक CM फेस के रूप में स्वीकार्य हो चुके हैं. बिहार विपक्षी गठबंधन में में तेजस्वी के कद का आज की तारीख में न कोई नेता है और न ही कोई शख्स इतनी मेहनत कर रहा है.
विपक्ष में केवल प्रशांत किशोर ही एक मात्र ऐसे नेता हैं जो इस बार तेजस्वी से ज्यादा मेहनत कर रहे हैं. तेजस्वी के लिए सही मायने में पप्पू यादव नहीं बल्कि प्रशांत किशोर प्रतिस्पर्धी हैं. तेजस्वी अगर पप्पू यादव के खिलाफ अगर सारा फोकस लगाए रखेंगे तो एक दिन ऐसा आएगा कि राज्य में उनकी जगह प्रशांत किशोर ले लेंगे. शायद यही कारण है कि प्रशांत किशोर के टार्गेट पर नीतीश के बजाय तेजस्वी यादव ही रहते हैं. किशोर को पता है कि अगर राज्य में सबसे बड़ा विपक्ष का नेता बनना है तो तेजस्वी को टार्गेट करना होगा. यही कारण है कि प्रशांत किशोर लगातार तेजस्वी को नौंवी फेल बोलकर टार्गेट करते रहते हैं.
3-पप्पू यादव के आरोप तेजस्वी की अभी तक की सारी मेहनत पर पानी फेर सकता है
पप्पू यादव का यह कहना कि तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने पर उनकी जान को खतरा है, एक अत्यंत गंभीर आरोप है. यह न केवल तेजस्वी की छवि को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि RJD की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है. यह बयान बिहार की जनता के बीच डर और अविश्वास का वही माहौल पैदा कर सकता है जो जंगलराज के समय हुआ करती थी. खासकर उन वोटरों में जो महागठबंधन को एक वैकल्पिक शक्ति के रूप में देखते हैं.
बिहार में तेजस्वी के माता-पिता के कार्यकाल में कानून व्यवस्था का बहुत बुरा हाल था. लालू और राबड़ी के कार्यकाल को याद दिलाकर ही प्रदेश में पिछले कई चुनावों से एनडीए बढ़त बना रही है. यहां तक कि 2025 का विधानसभा चुनाव भी लालू-राबड़ी के जंगल राज के भय को दिखाकर लड़ा जा रहा है. जाहिर है कि एक कांग्रेसी नेता पप्पू यादव अगर ये कहेंगे कि तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने के बाद मेरी जान को खतरा हो जाएगा या उन्हें स्टेट छोड़ने को मजबूर होने पड़ेगा, तो जनता को जंगलराज की याद तो आएगी ही.
4-क्या यह कांग्रेस की रणनीति है
राजनीतिक गलियारों में बहुत से लोगों का मानना है कि पप्पू यादव का यह बयान कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. क्योंकि आरजेडी से भविष्य में कांग्रेस को सीटों का तालमेल करना है. आम तौर पर आरजेडी बिहार की उन सीटों को ही कांग्रेस को सौंपती है जहां उसके जीतने की संभावना नहीं होती है. इसके साथ ही इस बार के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस महागठबंधन में अपना शेयर बड़ा करना चाहती है. जाहिर है कि इसके लिए पार्टी को पप्पू यादव का प्रेशर बहुत काम आ सकता है.
तेजस्वी यादव को RJD ने स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया है, लेकिन कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों ने इस पर पूर्ण समर्थन नहीं दिखाया है. पप्पू यादव स्पष्ट रूप से तेजस्वी के नेतृत्व को अस्वीकार कर चुके हैं.
चुनाव के बॉयकॉट के मुद्दे पर कांग्रेस ने जिस तरह बयानबाजी की है वो आरजेडी के सहयोगी दल वाला नहीं दिखा. तेजस्वी ने खुद बॉयकॉट की बात करते हुए कहा था कि कोई भी फैसला लेने के पहले अपने सहयोगी दलों के साथ चर्चा होगी. अगर सहयोगी दल चाहेंगे तो ही इस तरह का फैसला लिया जाएगा . पर कांग्रेस का सीधे सीधे बॉयकॉट के मुद्दे से किनारा करना यही दिखलाता है कि उसे गठबंधन से कोई मतलब नहीं है.
5-और भी कई तरह के असंतोष
बिहार विधानसभा की 243 सीटों के बंटवारे को लेकर महागठबंधन के घटक दलों RJD, कांग्रेस, CPI(ML), और दूसरे छोटे दलों के बीच सहमति बनाना एक बड़ी चुनौती है. पप्पू यादव ने पहले ही RJD पर कांग्रेस को कम आंकने का आरोप लगाया है. इसके साथ ही महागठबंधन के भीतर कई नेता अपनी स्थिति को लेकर असंतुष्ट हैं. उदाहरण के लिए, मुकेश सहनी ने कहा है कि अगर उन्हें डिप्टी सीएम नहीं बनाया गया, तो तेजस्वी भी सीएम नहीं बनेंगे. हाल के बिहार बंद के दौरान, विपक्ष ने मतदाता सूची पुनरीक्षण के खिलाफ एकजुटता दिखाने की कोशिश की, लेकिन पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को राहुल गांधी के रथ पर चढ़ने से रोकने की घटना ने दिखा दिया था कि महागठबंधन में बहुत दरार है.