ऑपरेशन सिंदूर पर राजनीति तो बहुत पहले ही शुरू हो चुकी थी, अब उसके नये नये रंग दिखाई दे रहे हैं. करीब करीब वैसे ही जैसे उरी हमले के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर हुआ था, और 2019 के आम चुनाव से पहले पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक पर - और वही रवायत नये तरीके से बिहार चुनाव से पहले नजर आ रही है.
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो खुलकर खेलने लगे हैं, लेकिन बीजेपी में अभी वैसी आक्रामकता नहीं देखने को मिली है जैसी पुलवामा हमले के बाद देखी गई थी. विपक्ष को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश तो शुरू से ही है, लेकिन डर ये है कि कहीं लेने के देने न पड़ जायें.
अयोध्या आंदोलन के जरिये केंद्र की सत्ता तक पहुंच जाने वाली बीजेपी को राम मंदिर उद्घाटन के बाद अयोध्या की हार से बहुत बड़ा सबक मिला है. और, यही वजह है कि ऑपरेशन सिंदूर से पहले ही जाति जनगणना के लिए भी तैयार हो गई है.
बीजेपी अपनी तरफ से ऑपरेशन सिंदूर को पूरी तरह राजनीतिक रंग दिये जाने से रोकने का प्रयास तो कर रही है, लेकिन ऐन उसी वक्त विपक्ष के लिए प्रेरणास्रोत भी बन जाती है.
ऑपरेशन सिंदूर पर सियासत चल पड़ी है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पश्चिम बंगाल दौरे के कुछ ही देर बाद ममता बनर्जी ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर खूब खरी खोटी सुनाई थी - और टेलीप्रॉम्पटर के साथ बहस करने, और तत्काल प्रभाव से विधानसभा का चुनाव तक करा लेने की चुनौती दी थी.
भोपाल पहुंचे राहुल गांधी के भाषण में भी वही तेवर और अंदाज नजर आया. राहुल गांधी को गुस्सा तो मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेताओं पर भी था, लेकिन फूटा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ.
सीजफायर के प्रसंग में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का जिक्र करते हुए राहुल गांधी ने कहा, ‘ट्रंप का एक फोन आया और नरेंद्र जी तुरंत सरेंडर हो गए… इतिहास गवाह है यही बीजेपी-आरएसएस का कैरेक्टर है… ये हमेशा झुकते हैं.’
और प्रसंग को 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से जोड़कर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से तुलना करते हुए कहा, आपको वो समय याद होगा जब कोई फोन नहीं आया था, बल्कि सेवंथ फ्लीट आई थी, लेकिन इंदिरा जी ने साफ साफ बोल दिया, 'मुझे जो करना है, मैं करूंगी.'
फिर संघ और सावरकर से आजादी की कड़ियों को जोड़ते हुए बोले, यही फर्क है… इनका चरित्र ऐसा है… आजादी के समय से इनकी सरेंडर वाली चिट्ठी लिखने की आदत रही है... जरा-सा दबाव पड़ता है, तो ये लोग सरेंडर कर देते हैं… कांग्रेस पार्टी सरेंडर नहीं करती… गांधी जी, नेहरू जी, सरदार पटेल जैसे लोग सरेंडर करने वाले नहीं, बल्कि सुपरपावर से लड़ने वाले लोग थे.
पिछले हफ्ते पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार में प्रधानमंत्री मोदी ने केंद्र सरकार और बीजेपी की उपलब्धियों के बीच ऑपरेशन सिंदूर का भी जोरशोर से जिक्र किया, और ममता बनर्जी की सरकार में भ्रष्टाचार पर हमला भी बोला.
पलटवार में ममता बनर्जी ने ऑपरेशन सिंदूर की तर्ज पर ऑपरेशन बंगाल चलाये जाने की बात की और बोलीं, प्रधानमंत्री मोदी ऐसे बात कर रहे हैं, जैसे हर महिला के पति हों… वो अपनी पत्नी को सिंदूर क्यों नहीं देते?
लेकिन, लगे हाथ ममता बनर्जी ने एक छोटा सा डिस्क्लेमर भी दे दिया, मैं इस संबंध में बात नहीं करना चाहती, लेकिन आपने मुझे बोलने के लिए मजबूर कर दिया.
बीजेपी भी खुल कर खेलने से डर रही है.
मोदी के बाद बंगाल पहुंचे केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने भी पहलगाम अटैक और ऑपरेशन सिंदूर की तरफ ध्यान खींचते हुए लोगों से कहा, जब भारतीय सेना ने हमले का बदला लिया, तो ममता बनर्जी और उनके नेताओं ने फर्जी टिप्पणियां कर ऑपरेशन सिंदूर का अपमान किया. और अपील की, बंगाल की जनता को ममता बनर्जी को सिंदूर की ताकत दिखानी चाहिये.
सवाल ये है कि क्या ऑपरेशन सिंदूर पर राजनीति के लिए राहुल गांधी और ममता बनर्जी जैसे नेता ही जिम्मेदार हैं - क्या बीजेपी खुद विपक्षी नेताओं को राजनीति की ऐसी राह नहीं दिखा रही है.
1. पहलगाम आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी सीधे बिहार पहुंचते हैं, आतंकवादियों को कल्पना से भी बड़ी सजा देने और मिट्टी में मिला देने की घोषणा करते हैं.
जब बिहार में चुनाव होने वाले हों, तो सवाल क्यों नहीं उठेंगे? जब विपक्ष सवाल उठाता है, तो अगला दौरा नये तरीके से प्लान किया जाता है.
2. दोबारा सीधे बिहार जाने से पहले प्रधानमंत्री मोदी का दौरा राजस्थान, गुजरात और बंगाल में होता है, जहां केंद्र की बीजेपी सरकार की तमाम उपलब्धियों के बीच ऑपरेशन सिंदूर का जोर देकर जिक्र किया जाता है.
बीजेपी को क्यों लगता है कि ममता बनर्जी ये सब सुनकर चुपचाप बैठी रहेंगी.
3. बीजेपी की तरफ से ये कोशिश जरूर होती है कि विपक्ष को खुली छूट न मिले, और इसके लिए सर्वदलीय बैठकें बुलाई जाती हैं, सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल विदेश दौरे पर भेजे जाते हैं - विपक्ष थोड़ी नाराजगी के बाद मान जाता है, और शिद्दत से शामिल भी होता है.
4. विपक्ष की तरफ से जल्दी ही साफ भी कर दिया जाता है कि वो पाकिस्तान के खिलाफ सरकार का साथ देगा, लेकिन बीजेपी को सेना के शौर्य का क्रेडिट नहीं लेने देगा.
5. बीजेपी विजय शाह जैसे नेताओं से भी परेशान तो होती है, लेकिन कर्नल सोफिया कुरैशी पर टिप्पणी से मचे बवाल के बावजूद कार्रवाई करने से परहेज करती है.
विपक्ष अब संसद में आर-पार की लड़ाई चाहता है
ऑपरेशन सिंदूर पर शुरू हुई राजनीति का अगला पड़ाव संसद है. विपक्ष चाहता है कि बिहार चुनाव से पहले बीजेपी सरकार को संसद में घेरा जाये - और इसी मकसद से संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने की मांग भी जोर पकड़ रही है.
बीच में लगा था कि कांग्रेस इस मुद्दे पर अकेले पड़ रही है, क्योंकि तब एनसीपी-एसपी नेता शरद पवार ने राष्ट्रीय हित से जुड़े नाजुक मुद्दे पर संसद में बहस से परहेज की सलाह दी थी. तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे दलों ने हाथ पीछे खींच लिये थे.
समाजवादी पार्टी और टीएमसी तो इस मुद्दे पर कांग्रेस के साथ खड़े हो गये हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी कांग्रेस के खफा होने के कारण अलग हो गई है. इंडिया ब्लॉक की दिल्ली में हुई एक बैठक में विपक्षी दलों के 16 नेताओं ने संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गये पत्र पर हस्ताक्षर किया है - अब लगता है, विपक्ष ऑपरेशन सिंदूर पर चल रही राजनीति पर आर-पार की लड़ाई की तैयारी कर रहा है.