पिछले कुछ सालों से भारत-पाकिस्तान के बजाए वैश्विक स्तर पर भारत की चर्चा चीन के साथ होने लगी थी. दरअसल बदली वैश्विक परिस्थितियों में दुनिया की फैक्ट्री चीन से वेस्ट नाराज दिख रहा था. ऐसे में चीन के लिए दुनिया भर को सप्लायर की भूमिका को बचाए रखना मुश्किल हो रहा था. ऐसा लगने लगा था बहुत जल्द ही चीन की जगह भारत दुनिया के आपूर्तिकर्ता के रूप में शुमार होने लगेगा. आईफोन, मोबाइल और कार की सप्लाई में भारत नंबर एक बनने की ओर अग्रसर था. इसी बीच खबर आती है कि भारत ने जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में चौथी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने में कामयाबी हासिल की है.
तमाम वैश्विक संस्थानों का कहना है कि भारत 2027 तक जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में शुमार होने लगेगा. पर अचानक परिस्थितियां पलटी खाती हैं और दुनिया में एक बार फिर भारत-चीन की जगह भारत-पाकिस्तान की चर्चा होने लगती है.यह सब हुआ पहलगाम हमले के बाद जब भारत ने पाकिस्तान से बदला लेने के लिए 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया. तो क्या समझा जाए पाकिस्तान जो कुछ भी कर रहा है उसके पीछे चीन की कही न कहीं भूमिका हो सकती है?
यह शक यूं ही नहीं है. जिस तरह चीन भारत को चौतरफा घेरने की कोशिश कर रहा है उसे देखकर तो ऐसा ही लग रहा है. आइये देखते हैं कि किस तरह चीन भारत को चहुंओर घेरने का प्रयास कर रहा है.
1-ऑपरेशन सिंदूर और चीन
चीन और पाकिस्तान एक दूसरे के पुराने साथी रहे है. चीनी समाचार एजेंसी ने अभी बुधवार को ही चीन-पाकिस्तान की दोस्ती की 74वें साल को सेलिब्रेट करते हुए एक पोस्ट की थी. जाहिर है कि ये दोस्ती बहुत पुरानी है. 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में चीन खुलकर पाकिस्तान के साथ था. यहां तक कि चीन ने पूर्वी मोर्चे पर कभी भी युद्ध शुरू करने की धमकी दे रखी थी. यही कारण रहा कि भारतीय सेना आधा फोकस ही पश्चिमी सीमाओं पर लगा पा रही थी.इसके बावजूद पाकिस्तान 65 की लड़ाई बुरी तरह हारा था.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान से ज्यादा चीन परेशान है. इसकी वजह ये है कि ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के चीनी हथियार काम नहीं आए. चीन के मिसाइल और एयर डिफेंस सिस्टम दोनों ही फेल हो गए. पाकिस्तान अगर कमजोर हुआ तो चीन की ताकत कमजोर होगी. चीन चाहकर भी पाकिस्तान को खुलकर सपोर्ट भी नहीं कर पाया. हालांकि सैनिका साजो सामान और संयुक्त राष्ट्र में वह पाकिस्तान को संबल देता रहा.
2-क्या तालिबान, पाकिस्तान और चीन की निकटता भारत के लिए खतरे की घंटी है?
भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर हुए अभी जुमा जुमा हफ्ता भी नहीं हुआ कि 21 मई 2025 को बीजिंग में हुई एक त्रिपक्षीय बैठक में चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच CPEC को अफगानिस्तान तक विस्तार देने पर सहमति जताई गई है. इस बैठक में पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार, चीनी विदेश मंत्री वांग यी, और तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी शामिल हुए.
जाहिर है कि चीन का यह प्रयास पाकिस्तान को मॉरल सपोर्ट के साथ आर्थिक सपोर्ट देने जैसा है. कहने को तो यह कदम तालिबान शासित अफगानिस्तान को क्षेत्रीय व्यापार और बुनियादी ढांचे के नेटवर्क में जोड़ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है. पर इसका असली मकसद भारत को घेरना अधिक है.
चीन ने तालिबान के साथ अपने संबंधों को 2021 में अमेरिकी सैन्य वापसी के बाद से तेजी से मजबूत किया है. उदाहरण के लिए, जनवरी 2024 में चीन ने तालिबान के दूत बिलाल करीमी को अफगानिस्तान के राजदूत के रूप में स्वीकार किया, जिसे तालिबान शासन की मान्यता की दिशा में एक कदम माना गया.
3- चिकेन नेक के पास बना रहा बांग्लादेश का एयर बेस
हिंदुस्तान को घेरने की साजिश के तहत ही भारत के चिकेन नेक के पास बांग्लादेश में एयफील्ड बनाना भी है. पाकिस्तान की तरह मोहम्मद यूनुस भी उसके इशारे पर चल रहे हैं. भारतीय सीमा के नजदीक लालमोनिहराट एयरबेस को विकसित करने की चीन तैयारी कर रहा है, जो चिकन नेक के बहुत करीब है.
यह हवाई अड्डा भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे चिकन नेक के नाम से जाना जाता है, से मात्र 12-15 किमी और 135 किमी की दूरी पर है. यह कॉरिडोर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को मुख्यभूमि से जोड़ता है और सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है.
मई 2025 में, चीनी अधिकारियों ने लालमोनिरहाट हवाई अड्डे का दौरा किया, जिसे बांग्लादेश वायुसेना नियंत्रित करती है. भारतीय रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह हवाई अड्डा, यदि सैन्य उपयोग में लाया गया, तो भारत की सैन्य गतिविधियों की निगरानी और खुफिया जानकारी एकत्र करने का केंद्र बन सकता है. चीन की यह रणनीति भारत को घेरने और क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने का हिस्सा हो सकती है. भारत ने इस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाई है, जिसमें हासीमारा में राफेल स्क्वाड्रन और त्रिशक्ति कोर शामिल हैं.
4-दक्षिण एशिया में भारत को अलग-थलग करने का मंसूबा
चीन की यह रणनीति भारत को दक्षिण एशिया में अलग-थलग करने और क्षेत्रीय भू-राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करने की हो सकती है. पहले नेपाल फिर बांग्लादेष, श्रीलंका सभी देशों में चीन के जासूस पुहुंचकर भारत के खिलाउ माहौवबनका है, CPEC का विस्तार और तालिबान के साथ गहरे संबंध भारत के लिए रणनीतिक चुनौती पैदा कर सकते हैं, खासकर कश्मीर और PoK के संदर्भ में. भारत ने क्वाड और अन्य वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति मजबूत की है और अफगानिस्तान में तालिबान के साथ सीमित लेकिन रणनीतिक संपर्क बनाए रखा है. भारत की कूटनीतिक और सैन्य ताकत उसे चीन के इस जाल से निपटने में सक्षम बनाती है. हालांकि जिस तरह तालिबान ने भी भारत के साथ संबंधों को पूरी तरह नकारा नहीं है, और भारत की क्षेत्रीय प्रभावशीलता को कम करना इतना आसान नहीं है.