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नेटफ्लिक्स की 'एडोलसेंस' सीरीज और बढ़ते बच्चों पर माता-पिता के ध्यान की कमी

13 साल के लड़के के लिए जब कोई लड़की उसके करीब आती है और शरीर प्रतिक्रिया करता है तो उसके दिमाग में वह उसकी है. आप इसे फिल्मों में भी देखते हैं. वे कहते हैं, "वह मेरी है." जब ऐसा होता है, अगर किसी कारण से वह उससे छिन जाती है तो वह पागल हो जाता है. वयस्कों के लिए भी जब वे ऐसी स्थितियों में निराश हो जाते हैं तो उनके मन में विचार आ सकता है कि "मुझे उन्हें बर्बाद कर देना चाहिए."

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सोशल मीडिया और ऑनलाइन स्रोतों के अलावा किसी के पास बच्चे के लिए समय नहीं है.
सोशल मीडिया और ऑनलाइन स्रोतों के अलावा किसी के पास बच्चे के लिए समय नहीं है.

सवाल: नेटफ्लिक्स की नवीनतम श्रृंखला 'ऐडोलेसन्स' ने हमारे किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को एक कठोर आईना दिखाया है. आपको क्यों लगता है कि हिंसा और मानसिक बीमारी उनके जीवन में इतनी कम उम्र में प्रवेश कर रही है?

सद्गुरु: आज पश्चिम में हर जगह और यहां तक कि शहरी भारत में भी यह आम बात हो गई है कि 12-13 साल की उम्र तक आपका कोई बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड होना चाहिए. इसे आजादी के नाम पर बढ़ावा दिया जा रहा है. वे किस हद तक जा सकते हैं, यह अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकता है, लेकिन उस उम्र का बच्चा शरीर-आधारित भावनाओं को परिपक्व तरीके से संभाल नहीं सकता. हो सकता है कि उनका शरीर काफी हद तक परिपक्व हो, लेकिन आप उनकी मानसिक और भावनात्मक स्थिरता या दूसरों के साथ बर्ताव करने की उनकी परिपक्वता के बारे में ऐसा नहीं कह सकते.

13 साल के लड़के के लिए जब कोई लड़की उसके करीब आती है और शरीर प्रतिक्रिया करता है तो उसके दिमाग में वह उसकी है. आप इसे फिल्मों में भी देखते हैं. वे कहते हैं, "वह मेरी है." जब ऐसा होता है, अगर किसी कारण से वह उससे छिन जाती है तो वह पागल हो जाता है. वयस्कों के लिए भी जब वे ऐसी स्थितियों में निराश हो जाते हैं तो उनके मन में विचार आ सकता है कि "मुझे उन्हें बर्बाद कर देना चाहिए." 15 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ यह कई गुना बढ़ जाता है और एक लड़के के पास इसे रोकने पर कोई काबू नहीं हो सकता है.

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सबसे बढ़कर, बच्चे माता-पिता के जरूरी ध्यान के बिना बड़े हो रहे हैं. इंसान जो कुछ भी है, उसका 90 प्रतिशत हिस्सा सीखा हुआ व्यवहार है. पहले वे अपने माता-पिता, गुरु या वैसे किसी व्यक्ति से सबसे ज़्यादा सीखते थे. आज, माता-पिता के पास समय नहीं है क्योंकि दिन में उन्हें काम करना होता है और शाम को उन्हें पार्टी करनी होती है. स्कूल में घंटी बजने से पहले शिक्षक सिर्फ 45 मिनट के लिए आपके साथ होता है. उन्हें आपसे जुड़ने और आपका मार्गदर्शन करने का मौक़ा शायद ही कभी मिलता है.

सोशल मीडिया और ऑनलाइन स्रोतों के अलावा किसी के पास बच्चे के लिए समय नहीं है. तो उन पर सबसे बड़ा असर व्यावसायिक ताकतों का होता है, जिन्हें इसकी परवाह नहीं है कि बच्चों के साथ क्या होता है. बच्चे ऐसे लोगों के संपर्क में नहीं हैं जिनमें उनके लिए किसी तरह का प्रेम हो. अगर आप उन्हें लाड़-प्यार से वंचित छोड़ देते हैं तो आपको नतीजों से हैरान नहीं होना चाहिए.

भारत में हर 40 मिनट में 18 साल से कम उम्र का एक बच्चा आत्महत्या करता है, यह अभी भी ऐसा देश है जहां बच्चों की आम तौर पर अच्छी तरह देखभाल की जाती है. भले ही माता-पिता कभी-कभी कठोर हो सकते हैं, लेकिन बच्चों को पता है कि उनकी परवाह की जाती है, लेकिन यह खत्म हो रहा है क्योंकि समाज का पूरा ताना-बाना बदल रहा है. आज भारत में जो हो रहा है, वह पश्चिम में 2-3 पीढ़ी पहले हुआ था. तो, वहां हिंसा अधिक स्पष्ट है. लेकिन यहां भी ऐसा होने लगा है.

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बच्चा 20 साल की परियोजना होता है. यदि आप इसके लिए तैयार नहीं हैं, तो आपको बच्चे की जरुरत नहीं है. लेकिन कई धार्मिक लोग, राजनेता और सामाजिक वैज्ञानिक कह रहे हैं कि सभी को अधिक बच्चे पैदा करने चाहिए. उद्योग और बाजार विशेषज्ञ भी ऐसा कह रहे हैं क्योंकि अगर युवा आबादी नहीं होगी, तो उद्योग का क्या होगा? 20वीं सदी की शुरुआत में, हम 1.6 बिलियन लोग थे. आज, हम लगभग 8.5 बिलियन लोग हैं. फिर भी, कुछ लोग उद्योग चलाने के लिए अधिक बच्चे चाहते हैं. यदि आप जनसंख्या कम करते हैं, तो आप उद्योग को भी कम कर सकते हैं. लेकिन लोगों की सोच यह है कि, "अभी मेरी कंपनी की कीमत 500 बिलियन डॉलर है. यदि जनसंख्या कम हो जाती है, तो यह 200 बिलियन डॉलर हो जाएगी."

अर्थशास्त्र के आधार पर मानव जीवन का ढांचा बनाने के बारे में सोचना पागलपन है. हम अर्थशास्त्र को इसलिए चलाते हैं ताकि मनुष्य आराम से रह सकें. हम अर्थशास्त्र को आराम से चलाने के लिए मनुष्यों को नहीं चलाते. मुनाफ़ा कमाने की इस चाहत में मनुष्य की अगली पीढ़ी को बुरा सौदा मिल रहा है. तो वे अपनी ही चीजें करेंगे. वे जो करते हैं, उससे आपको झटका लग सकता है, आश्चर्य हो सकता है या घृणा हो सकती है, लेकिन वे ऐसा इसलिए करेंगे क्योंकि आप उन्हें अनदेखा कर रहे हैं. इसे बदलना होगा.

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ऑस्ट्रेलिया ने एक साहसिक कदम उठाया है कि 16 साल से कम उम्र के बच्चों के पास सोशल मीडिया अकाउंट नहीं हो सकते. लेकिन लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे 12 साल की उम्र तक सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बन जाएं. एक समाज के रूप में, हम अभी भी अपरिपक्व हैं, हर छोटे तकनीकी कदम के बारे में उत्साहित हो जाते हैं, और हम अपना पूरा जीवन इसी के इर्द-गिर्द बनाते हैं. मेरा मानना है कि अगले 30-40 सालों में, लोग परिपक्व हो जाएंगे और चुनेंगे कि क्या उपयोग करना है और क्या नहीं. लेकिन इन 30-40 सालों में, कितना नुकसान होगा और कितने लोगों की जान जाएगी, वह एक भयानक संभावना है.

मानवता को जो बुनियादी जिम्मेदारी निभानी होगी वह यह सुनिश्चित करना है कि इंसान की अगली पीढ़ी हमसे कम से कम एक कदम आगे हो. उन्हें थोड़ा ज्यादा आनंद से जीना चाहिए, कम डर, उलझाव और क्लेश के साथ. इसे हमें अपना लक्ष्य बनाना चाहिए.

 

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