महावीर हनुमान के बिना राम कथा पूरी नहीं होती. मर्यादा पुरुषोत्तम राम का तीनों लोकों में सबसे बड़ा भक्त हनुमान को माना जाता है. यही कारण है कि पृथ्वी लोक में हनुमान की पूजा होती रही है. राम मंदिर आंदोलन के 500 वर्षों का इतिहास महाबलि हनुमान की अदृश्य छाया से कभी मुक्त नहीं रहा. आज हम आपके साथ ऐसी 4 घटनाओं का जिक्र करेंगे जिसे देखकर कहा जा सकता है कि स्वयं हनुमान जी ने उपस्थित होकर राम मंदिर निर्माण के लिए रास्ता दिखाया. इंडिया टुडे के अभिलेखागार में मौजूद एक तस्वीर की कहानी सुनकर आपको ऐसा ही लगेगा कि बस हनुमान जी स्वयं उस दिन आ गए थे. यह तस्वीर 23 जुलाई 1992 की है और इसे प्रमोद पुष्करणा ने क्लिक किया था. कारसेवकों की नृशंस हत्याओं के बाद मंदिर के लिए 'कारसेवा' निलंबित कर दी गई और जुलाई 1992 में शुरू की गई. हालांकि कारसेवक अयोध्या पहुंच गए, लेकिन कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया.1992 की तस्वीर में बाबरी मस्जिद के केंद्रीय गुंबद पर एक बंदर बैठा हुआ भी दिखाया गया है. यह खास इसलिए हो जाता है क्योंकि 1990 में पहली कारसेवा में मस्जिद की गुंबद पर झंडा लिए एक बंदर की फोटो उस समय के सभी अखबारों में छपी थी. क्या वह वही बंदर था जो 1990 में गुंबद पर आया था.
1- जब 90 में कारसेवा में भगवा झंडा लेकर गुंबद पर चढ़ गया बंदर
30 अक्टूबर 1990 का दिन था, जिसे भारत कभी नहीं भूलेगा. राम मंदिर आंदोलन के उस ऐतिहासिक दिन विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित राम मंदिर 'कार सेवा' को विफल करने के लिए 30 अक्टूबर 1990 को पीएसी के लगभग 28,000 कर्मियों को अयोध्या में तैनात किया गया था.सुरक्षा व्यवस्था ऐसी थी कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने दावा किया था, "अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता".
विश्व हिंदू परिषद के संयुक्त महासचिव स्वामी विज्ञानानंद ने कहा, कारसेवकों और सुरक्षाकर्मियों के बीच संघर्ष के बीच, एक साधु जो बस चलाना जानता था, पुलिस बस की सीट पर कूद गया, जिसका इस्तेमाल कुछ कारसेवकों को हिरासत में लेने के लिए किया गया था.
स्वामी विज्ञानानंद IndiaToday.in को बताते हैं, कारसेवकों ने सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों का सामना किया और विवादित बाबरी मस्जिद की ओर बढ़े. उनमें से कुछ विवादित ढांचे के गुंबद पर चढकर 'भगवा ध्वज' लहरा दिए. वहां तैनात सुरक्षाकर्मियों ने जल्द ही कारसेवकों पर लाठीचार्ज और गोलीबारी शुरू कर दी. स्वामी विज्ञानानंद कहते हैं, सुरक्षाकर्मियों के हमले का सामना करते हुए कारसेवकों को शाम तक पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा.
अधिकारी चाहते थे कि गुंबदों से भगवा झंडे हटा दिए जाएं लेकिन उन्हें एक अनोखी स्थिति का सामना करना पड़ा. एक बंदर ने मस्जिद के मध्य गुंबद पर कब्जा कर लिया. पुलिस कर्मियों ने बंदर को भगवान हनुमान के अवतार के रूप में देखा जो ध्वज की रक्षा के लिए प्रकट हुए थे. स्वामी विज्ञानानंद कहते हैं, बंदर घंटों तक झंडे के पास बैठा रहा. देर रात बंदर के गुंबद से चले जाने के बाद तीन-चार जवान गुंबद पर चढ़ गए और झंडे को हटा दिया.

2-बाबरी मस्जिद के गुंबद पर 1992 में फिर दिखा बंदर
इंडिया टुडे की लाइब्रेरी में मौजूद एक तस्वीर कहानी को और आगे ले जाती है. इस तस्वीर में बाबरी मस्जिद के केंद्रीय गुंबद पर एक बंदर बैठा हुआ दिखता है. यह तस्वीर 23 जुलाई 1992 की है और इसे प्रमोद पुष्करणा ने क्लिक किया है.कारसेवकों की नृशंस हत्याओं के बाद मंदिर के लिए 'कारसेवा' निलंबित कर दी गई और जुलाई 1992 में शुरू की गई. हालांकि कारसेवक अयोध्या पहुंच गए, लेकिन कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया.
जब प्रमोद पुष्करणा से पूछा गया कि उन्होंने वह तस्वीर क्यों खींची, तो उन्होंने IndiaToday.in को बताया, मुझे इस बात पर आश्चर्य हुआ कि जब सुरक्षाकर्मियों और बैरिकेड्स ने लोगों को विवादित स्थान तक पहुंचने से रोक दिया था, तब एक बंदर गुंबद के शीर्ष तक पहुंच गया था. फोटो जर्नलिस्ट प्रमोद पुष्करणा, जो अब 76 वर्ष के हो चुके हैं, कहते हैं कि उस दिन अयोध्या में लोग बंदर को "हनुमान का अवतार" कह रहे थे. पुष्करणा बताते हैं कि अयोध्या में बहुत सारे प्रतिबंध थे. हम तस्वीरें लेने के लिए इमारतों के पीछे छुप जाते थे या छतों पर चढ़ जाते थे, वह समय था जब अयोध्या आंदोलन पूरे जोरों पर था. वह उस समय को भी याद करते हैं जब पत्रकारों के एक समूह ने विहिप के तत्कालीन कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल को खून से लथपथ हालत में बचाया और अस्पताल ले गए. कारसेवकों पर पुलिस लाठीचार्ज में सिंघल बुरी तरह घायल हो गए.
3-मंदिर के दरवाजे खोलने की प्रेरणा बंदर ने दी
अयोध्या मंदिर मामले में एक बंदर का संदर्भ 1986 में राम मंदिर का ताला खुलवाने में भी रहा है. फैजाबाद जिले के तत्कालीन न्यायाधीश केएम पांडे ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि 1 फरवरी, 1986 को फैजाबाद जिला न्यायाधीश के रूप में उन्होंने जो फैसला दिया था उसके एक "दैवीय शक्ति" का हाथ था. इस आदेश में कहा गया था कि बाबरी मस्जिद के दरवाजे भक्तों के दर्शन के लिए खोले जाएं.
पांडे लिखते हैं कि, जिस दिन ताले खोलने के आदेश पारित किए गए थे, एक काला बंदर पूरे दिन कोर्ट रूम की छत पर, जिसमें सुनवाई चल रही थी, झंडा-स्तंभ पकड़े बैठा था. अदालत का अंतिम आदेश सुनने के लिए मौजूद फैजाबाद और अयोध्या के हजारों लोगों ने उन्हें मूंगफली और विभिन्न फल पेश किए थे.
अजीब बात है कि उक्त बंदर ने किसी भी प्रसाद को नहीं छुआ और शाम 4.40 बजे जब अंतिम आदेश पारित हुआ तो वह वहां से चला गया. पांडे लिखते हैं कि जिला मजिस्ट्रेट और एसएसपी मुझे मेरे बंगले तक ले गए. उक्त बंदर मेरे बंगले के बरामदे में मौजूद था. मैं उसे देखकर हैरान रह गया. मैंने बस उसे कोई दैवीय शक्ति मानते हुए प्रणाम किया.बाद में बाबरी मस्जिद के दरवाजे खोलने के केएम पांडे के आदेश को हाई कोर्ट ने पलट दिया था. यह एक लंबी कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा था जो 1858 में निहंग सिखों द्वारा विवादित मस्जिद में घुसकर 'हवन' करने के बाद एक एफआईआर के साथ शुरू हुई थी.
4-बंदर और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
वरिष्ठ वकील और पूर्व अटॉर्नी जनरल के परासरन, जिन्होंने राम लला विराजमान के मामले में सफलतापूर्वक बहस की, ने भी राम जन्मभूमि मामले के संदर्भ में एक वीडियो में बंदरों के बारे में बात की. सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने 9 नवंबर, 2019 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें राम मंदिर के निर्माण के लिए 2.77 एकड़ जमीन राम जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया गया.के परासरन ने कहा कि फैसला शनिवार को सुनाया गया और अगले सोमवार को दिल्ली में उनके आवास की छत पर 30-40 बंदर कहीं से आ गए. परासरन लिखते हैं कि, मैं दूसरी मंजिल पर खुली छत पर था, लगभग 30 या 40 बंदर आए. परासरन कहते हैं कि इतने सारे बंदरों की कल्पना नहीं कर सकते, और वह भी रात 8.45 पर जब आम तौर पर बंदर अपने ठिकानों पर चले जाते हैं. परासरन कहते हैं, 'और वे खेल रहे थे, कूद रहे थे, लात मार रहे थे... भगवान राम ने इसकी देखभाल की... 69 साल तक उन्होंने इसका इंतजार किया'.