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एकनाथ शिंदे क्‍यों मान गए? किसी बात का डर था या बीजेपी की समझदारी | Opinion

महाराष्ट्र में मुख्य्मंत्री पद का मामला एक बार फिर 2019 की तरह फंस गया था, लेकिन बीजेपी पहले से ही अलर्ट थी. एकनाथ शिंदे ने भी उद्धव ठाकरे से सबक लिया ही होगा - और अमित शाह की सलाहियत पर अमल करते हुए देवेंद्र फडणवीस ने एकनाथ शिंदे को समझा भी दिया.

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आखिरकार देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने पर मान ही गये एकनाथ शिंदे - और कोई चारा भी तो नहीं था.
आखिरकार देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने पर मान ही गये एकनाथ शिंदे - और कोई चारा भी तो नहीं था.

एकनाथ शिंदे का मान जाना जितना मुश्किल था, उतना ही आसान भी था. बीजेपी आलाकमान और देवेंद्र फडणवीस दोनो ही इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे, लेकिन 2019 में दूध के जले वे लोग 2024 के छाछ को भी फूंक फूंक कर पी रहे थे - और देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो जाने के बाद तो लगता है, पूरी छाछ पी भी लिये. 

एकनाथ शिंदे को भी मालूम था कि मोलभाव का मौका बहुत कम समय तक ही रहता है. जब तक संभव हो सका, अलग अलग तरीके से दावेदारी जताते रहे. कभी रूठ कर, कभी मेडिकल लेकर - और कभी खुद तो कभी अपने नेताओं से बयान दिलवाकर. 

पहले जरूर बोल दिया था कि जो बीजेपी नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह को मंजूर होगा, वो सहर्ष स्वीकार करेंगे - लेकिन, बाद में ये भी बोल दिया था कि जनता चाहती है कि वही मुख्यमंत्री बनें, जिसे बीजेपी ने सिरे से खारिज कर दिया. 

फडणवीस ने शिंदे को कैसे मनाया

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महायुति की ऐतिहासिक जीत बड़ी हिस्सेदार तो बीजेपी ही है, लेकिन किसी भी नतीजे तक पहुंचने के लिए 10 दिन तक बैठकें होती रहीं. आखिरकार एकनाथ शिंदे और बीजेपी में डील पक्की भी हो ही गई - बीजेपी विधायक दल का नेता चुन लिये जाने के बाद तय हो गया कि देवेंद्र फडणवीस ही महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री होंगे. 

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बीजेपी नेता चंद्रकांत पाटिल ने देवेंद्र फडणवीस के नाम का प्रस्ताव रखा, और खास बात ये रही कि पंकजा मुंडे ने प्रस्ताव का समर्थन किया. लोकसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन देवेंद्र फडणवीस की ताकत पर सवालिया निशान लगा रहा था, लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे की 57 सीटों को काफी पीछे छोड़ते हुए देवेंद्र फडणवीस ने अकेले बीजेपी की झोली में 132 विधानसभा सीटें भर दीं - फिर भी मुख्यमंत्री बनने के लिए देवेंद्र फडणवीस को खासी मशक्कत करनी पड़ी.  

मुश्किल ये था कि एकनाथ शिंदे आखिर तक पीछे हटने को तैयार नहीं थे. बैठकें होती रहीं, बात नहीं अटक जा रही थी. एकनाथ शिंदे अपनी दावेदारी जता रहे थे, बीजेपी बार बार यही दोहराती रही कि मुख्मंत्री तो बीजेपी का ही बनेगा. 28 नवंबर को दिल्ली में हुई एक मीटिंग को लेकर सुनने में आ रहा है कि एकनाथ शिंदे यहां तक बोल दिये थे कि छह महीने के लिए ही सही, लेकिन उनको मुख्यमंत्री बनने दिया जाये, बीजेपी ने ये मांग भी नामंजूर कर दी. बीजेपी की तरफ से कहा गया, 'छह महीने के लिए मुख्यमंत्री बनाने की कोई व्यवस्था नहीं है... ये एक गलत फैसला होगा और शासन-प्रशासन पर भी गलत असर पड़ेगा. 

और इसी बीच 3 नवंबर को देवेंद्र फडणवीस वर्षा बंगले पर अचानक शाम को पहुंच गये. मुख्यमंत्री पद पर चल रहे टकराव के बाद ये पहली मुलाकात थी. देवेंद्र फडणवीस ने अपनी बात तो कही ही, आलाकमान का मैसेज देते हुए सारी बातें साफ कर दीं. जाहिर है, समझाने का तरीका उनका अपना ही होगा. 

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सूत्रों के हवाले से खबर आई है कि एकनाथ शिंदे ने डिप्टी सीएम के तौर पर नई सरकार में शामिल होने को लेकर हामी भर दी है. मान कर चलना चाहिये कि उसके बाद ही देवेंद्र फडणवीस आगे बढ़े होंगे, और मंजिल के रास्ते का ग्रीन कॉरिडोर पक्का हुआ होगा. अजित पवार का डिप्टी सीएम बनना तो पहले से ही पक्का था, अब तो बात सामने भी आ गई है. 

कहते हैं कि सब कुछ करीब करीब फाइनल तो बीजेपी नेतृत्व के साथ एकनाथ शिंदे की मीटिंग में ही हो गया था. असल में, बताते हैं, बीजेपी आलाकमान के एक सवाल पर एकनाथ शिंदे को कोई जवाब नहीं सूझा. जब एकनाथ शिंदे से पूछा गया, 'क्या आप स्पष्ट बहुमत मिलने पर मुख्यमंत्री पद का दावा छोड़ देंगे?' अव्वल तो एकनाथ शिंदे कैंप की तरफ से बीजेपी के सामने बिहार मॉजल की मिसाल भी दी गई थी, लेकिन आमने सामने की बातचीत में एकनाथ शिंदे चुप हो गये, और बात वहीं खत्म भी हो गई थी. 

आजतक को सूत्रों के हवाले से मिली खबर के मुताबिक, एकनाथ शिंदे 5 दिसंबर को मुंबई के आजाद मैदान में शपथग्रहण समारोह में देवेंद्र फडणवीस और एनसीपी नेता अजित पवार के साथ शपथ लेंगे, क्योंकि बीजेपी की तरफ से मिले आश्वासन के बाद एकनाथ शिंदे ने डिप्टी सीएम बनने पर सहमति जता दी है.

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बीजेपी ने संयम बरता, शिंदे के पास भी ऑप्शन नहीं था

देखा जाये तो एकनाथ शिंदे के पास भी कम ही विकल्प बचे थे. मजबूर तो बीजेपी भी थी, अभी नहीं तो भविष्य के लिए ही सही. अभी तो बीजेपी के पास इतने नंबर हैं कि जिधर भी नजर उठाकर देखे, सपोर्ट करने वाली विधायकों की लाइन लग जाएगी - लेकिन, क्या बीजेपी को महाराष्ट्र में बस इतना ही चाहिये? 

बीजेपी को भले ही महाराष्ट्र में बड़ी जीत हासिल हुई हो, लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में मजबूती से पांव जमाने के लिए अभी बहुत सारे पापड़ बेलने हैं, और शिवसेना की मदद के बगैर ये मुमकिन भी नहीं है. 

1. मुख्यमंत्री की कुर्सी एकनाथ शिंदे को बेशक प्यारी थी, लेकिन अब तो उनके उद्धव ठाकरे जैसी गलती दोहराने का कोई मतलब भी नहीं था. उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के लिए बीजेपी का साथ छोड़ा, और एकनाथ शिंदे से सब कुछ छुड़ा दिया. 

2. जाहिर है, शिवसेना विधायकों की तरफ से भी भारी दबाव था. और, ऐसा दबाव महसूस न करना या उस पर गंभीर नहीं होना तो एक और एकनाथ शिंदे को पैदा होने देने जैसा ही होगा. 

3. जैसे एकनाथ शिंदे दावेदारी बीजेपी के लिए अपनी अहमियत समझते हुए पेश कर रहे थे, बीजेपी ने चुनावों में हासिल नंबर के बल पर ही मुख्यमंत्री के लिए मोलभाव कर रही थी.

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4. ध्यान देने वाली बात ये है कि बीजेपी की ओर से एकनाथ शिंदे के खिलाफ कोई बयान नहीं आया. हर कदम पर संयम बरतते देखा गया - और ये बाद तो एकनाथ शिंदे ने भी महसूस की ही होगी. 

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