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सेना में जातिगत भेदभाव की बात कहने वाले राहुल गांधी हकीकत के कितने करीब हैं?

'जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी' को लेकर राहुल गांधी अगर गंभीर हैं तो पहले उन्हें कर्नाटक और हिमाचल से कुछ शुरूआत करनी चाहिए. इन प्रदेश के पुलिस बलों में उन्हें वैसी ही व्यवस्था करनी चाहिए, जैसी वे सेना में चाहते हैं. वैसे, यह भी जानना जरूरी है कि राहुल ने जो सेना के बारे में कहा है उसमें कितनी सच्‍चाई है?

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Rahul Gandhi addressing a poll rally in Bihar.
Rahul Gandhi addressing a poll rally in Bihar.

भारतीय सेना हमेशा से राष्ट्रीय एकता की प्रतीक रही है. देश की राजनीति में कितनी भी कड़वाहट रही हो, कभी सेना को उसमें नहीं घसीटा गया. लेकिन, राहुल गांधी की रणनीति कुछ और है. जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने में वे इतना गहरे उतर गए हैं कि किसी भी संस्‍था को नहीं छोड़ रहे हैं. शुरुआत ये कहकर की थी कि भारत सरकार के किसी सेक्रेटरी ओबीसी हैं? और अब वही राहुल गांधी कह रहे हैं कि सेना पर 10 प्रतिशत आबादी का कंट्रोल है, 90 फीसदी आबादी कहीं नहीं है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी पिछले कुछ सालों से लगातार हर संस्था, हर घटना को जाति के आधार पर तौलने की कोशिश करते हैं. बिना यह सोचे कि 2014 से पहले देश पर 6 दशकों से अधिक उनका ही परिवार राज कर रहा था. देश में आज जो कुछ गलत या सही हुआ है उसमें कहीं न कहीं उनकी पार्टी और कांग्रेस सरकारों की भूमिका रही है. लेकिन, इस पृष्‍ठभूमि से बेपरवाह राहुल गांधी ने 4 नवंबर 2025 को बिहार के कुतुंबा में एक रैली के दौरान दावा किया कि सेना 10% आबादी (ऊंची जातियों) के कंट्रोल में है, और बाकी 90% (पिछड़े वर्ग, दलित, आदिवासी) को प्रतिनिधित्व नहीं मिलता.

राहुल गांधी को कभी देश की ब्यूरोक्रेसी में 90 प्रतिशत सवर्ण दिखते हैं तो कभी राम मंदिर के उद्घाटन में पहुंचने वालों में अंबानी-अडानी और बच्चन दिखते हैं. देश का बजट बनाने वालों में भी उन्हें 90 प्रतिशत लोगों की भागीदारी नहीं दिखती है. अब वही राहुल गांधी देश की सेना में भागीदारी पर सवाल उठा रहे हैं. देश की सेना के बारे में इस तरह की बात होनी चाहिए या नहीं यह अलग विषय हो सकता है पर राहुल गांधी ने जो कहा हम उसकी पड़ताल तो कर ही सकते हैं. 

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1-क्या राहुल का बयान बिहार विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर दिया गया है?

राहुल गांधी का यह बयान स्पष्ट रूप से बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को ध्यान में रखकर दिया गया है. यह न केवल चुनावी रणनीति का हिस्सा लगता है, बल्कि महागठबंधन (कांग्रेस-RJD) की जाति-आधारित वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश भी है . पहले चरण के मतदान के दो दिन पहले 4 नवंबर को राहुल गांधी अगर  इस तरह की बात कर रहे हैं तो इसका मतलब साफ नजर आता है. बिहार के औरंगाबाद जिले के कुतुंबा (Kutumba) में एक चुनावी रैली के दौरान यह बयान दिया गया. रैली में तेजस्वी यादव भी मौजूद थे और फोकस सामाजिक न्याय पर था.

राहुल गांधी के बयान का सार इस तरह है. देश की 10% आबादी (ऊंची जातियां) सेना, न्यायपालिका, मीडिया और अन्य प्रमुख संस्थाओं पर कंट्रोल करती है, जबकि बाकी 90% (दलित, EBC, OBC, आदिवासी) को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिलता. राहुल ने जाति जनगणना की मांग दोहराई, कहा कि बिना डेटा के न्याय संभव नहीं. कुतुंबा रैली में उन्होंने PM मोदी और नीतीश कुमार पर दो भारत बनाने का आरोप लगाया.

दरअसल महागठबंधन  EBC/OBC /SC वोटर्स (कुल 80%+) को लक्ष्य बनाकर काम कर रहा है. यही RJD का कोर बेस भी है.राहुल गांधी का बयान सेना जैसे राष्ट्रीय प्रतीक को जाति से जोड़कर ऊंची जातियों (NDA का बेस) को डिफेंडिव बनाता है, जबकि 90% को पीड़ित दिखाता है.  जाहिर है कि इसका फायदा बिहार विधानसभा चुनावों में उठाने की कोशिश हो रही है.

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2- राहुल के इस फार्मूले के आधार पर तो गुजरात-तमिलनाडु के साथ अन्याय  हो रहा है

दरअसल राहुल गांधी के मुताबिक जिन वर्गों को सेना में कम प्रतिनिधित्व मिला है यह उस जाति और वर्ग के साथ अत्याचार है. इस हिसाब से तो गुजरात को भी भेदभाव करने का आरोप लगाते हुए अपने साथ अन्याय होने की बात करनी चाहिए. उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल की आबादी उत्तराखंड से आठ गुना अधिक है, लेकिन दोनों से सेना में भर्ती की संख्या लगभग समान है. इसी तरह पंजाब की जनसंख्या गुजरात की आधी है, लेकिन सेना में पंजाब से भर्ती की संख्या गुजरात से चार गुना ज़्यादा है. इसी तरह राजस्थान से तमिलनाडु की तुलना में अधिक भर्ती होती है, जबकि तमिलनाडु की आबादी ज़्यादा है.

अगर सेना को क्षेत्रीय भर्ती के लेंस से देखें तो पता चलता है कि हकीकत में उत्तर भारत (पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड) को ओवर-रिप्रेजेंटेशन मिल रहा है जबकि गुजरात और बंगाल जैसे राज्यों से भर्ती कम है. भारतीय सेना की भर्ती मेरिट-बेस्ड है. लेकिन क्लास रेजिमेंट्स (जैसे जाट, सिख, राजपूत) और क्षेत्रीय कोटा से प्रभावित होता है. कुल 14.5 लाख सैनिकों में ~1 लाख सालाना भर्ती इस समय हो रही है.

पंजाब-हरियाणा-हिमाचल-उत्तराखंड से 25% से अधिक रिक्रूट्स आते हैं. इसका कारण यह है कि यहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था, सैन्य परंपरा, और क्लास रेजिमेंट्स (जाट रेजिमेंट हरियाणा से, गोरखा/राजपूत उत्तराखंड से).दक्षिण/पूर्व कम: गुजरात (पटेल/कोली कम्युनिटी) और बंगाल (बंगाली हिंदू/मुस्लिम) से भर्ती न्यूनतम कुल 5-7%. लेकिन कभी भी गुजरात , तमिलनाडु , बंगाल आदि ने यह डिमांड नहीं की कि उन्हें भी सेना की भर्तियो में बराबर हिस्सेदारी दी जाए.

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3-अखिलेश यादव के बयान से उलटा बोल रहे हैं राहुल

2019 में लोकसभा चुनावों के दौरान उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि बीजेपी कुछ भी कर सकती है. बीजेपी नफरत फैलाने के लिए जानी जाती है. गरीबों और किसानों के बेटे सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं, और बीजेपी नेता सिर्फ वोट लेने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि उनके कहने का मकसद यही था कि पिछड़ी जातियों के लोग सेना में देश की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान करने में पीछे नहीं हटते हैं.

दूसरी तरफ राहुल गांधी का कहना है कि राहुल गांधी ने कहा, अगर आप ध्यान से देखेंगे तो देश की 90 प्रतिशत आबादी दलित, महादलित, पिछड़ा, अत्यंत पिछड़ा या अल्पसंख्यक समुदाय से आती है. नब्बे प्रतिशत लोग समाज के सबसे पिछड़े और आदिवासी वर्गों से हैं. अगर आप भारत की 500 सबसे बड़ी कंपनियों की सूची निकालेंगे तो उसमें पिछड़े या दलित समुदाय का कोई व्यक्ति नहीं मिलेगा. सभी उसी शीर्ष 10 प्रतिशत आबादी से आते हैं. सारी नौकरियां उन्हीं के पास जाती हैं. उनके हाथ में सेना का नियंत्रण है. देश की बाकी 90 प्रतिशत आबादी का कहीं प्रतिनिधित्व नहीं दिखेगा. राहुल गांधी ने कहा, हम ऐसा भारत चाहते हैं जिसमें देश की 90 प्रतिशत आबादी के लिए जगह हो, जहां लोग सम्मान और खुशी से जी सकें. कांग्रेस पार्टी हमेशा से पिछड़ों के अधिकारों की लड़ाई लड़ती रही है.

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4-सेना में किस जाति का कितना प्रतिनिधित्व

भारतीय सेना में इस तरह का कोई जाति सर्वे तो नहीं हुआ है पर तमाम अन्य स्रोतों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कम से कम सेना के 60 प्रतिशत हिस्से में देश के 90 प्रतिशत लोगों को प्रतिनिधित्व मिला हुआ है. द ट्रिब्यून में छपे एक लेख की माने तो सेना में मुसलमानों की कम भागीदारी और सिखों की अधिक प्रतिनिधित्व मिला हुआ है. सिख भारत की जनसंख्या का केवल 1.86% हैं, परंतु सेना में उनका प्रतिनिधित्व लगभग 8% है. वहीं मुसलमान भारत की आबादी का लगभग 13% हैं, पर सेना में उनका अनुपात लगभग 2% के आसपास है.

सेना में जाट , महार, मराठा, राजपूत आदि की भर्ती बड़े पैमाने पर होती रही है. इनके आधार पर कई रिपोर्ट्स में अनुमान लगाया गया है कि भारतीय सेना में 40 से 50 प्रतिशत के करीब सवर्ण जातियां हैं . जबकि ओबीसी 25 से 30 प्रतिशत के करीब हैं. इसी तरह एससी (10-15 प्रतिशत) और एसटी (5-8 प्रतिशत ) के करीब हैं. जाहिर है कि ये अंतर शिक्षा, आर्थिक पहुंच और जागरूकता के चलते हैं.

5-राहुल गांधी को पहले अपनी पार्टी और कांग्रेस सरकारों में सुधार कर मिसाल स्थापित करना चाहिए

राहुल गांधी जिस तरह आबादी के हिसाब से भागीदारी की बातें करते हैं. सबसे पहले उन्हें इसकी शुरूआत अपनी पार्टी और जिन राज्यों में कांग्रेस सरकारें हैं वहां से शुरू करना चाहिए. पर जब अपनी पार्टी में टिकट देने की बात आती है तो राहुल गांधी सामाजिक न्याय की बातें भूलकर जिताऊ कैंडिडेट के नाम पर सवर्णों और मजबूत लोगों को मलाई बांटने लगते हैं. बिहार विधानसभा चुनावों में सवर्णों को टिकट उनकी जनसंख्या के हिसाब से ज्यादा मात्रा में मिले हैं. जाहिर है कि अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो उन्हीं लोगों की चलेगी. राहुल गांधी को हिमाचल और कर्नाटक में बजट बनाने और सरकार से संबंधित निर्णायक फैसले लेने के लिए दलित, ओबीसी, ईबीसी जातियों को आगे लाना चाहिए. जब तक राहुल गांधी ऐसा नहीं करेंगे कांग्रेस के प्रति लोगों का विश्वास नहीं जागेगा. अगर राहुल गांधी देश के कमजोर तबके के लिए वास्तव में कुछ करना चाहते हैं तो उन्हें कुछ ऐसा ही करना होगा, अन्यथा बहुत जल्दी उनकी बातें भुला दी जाएंगी.

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