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बांग्लादेश में हिंसा और तख्तापलट से ये 4 सबक जरूर सीख सकता भारत 

बांग्लादेश और भारत की सामाजिक पृष्ठभूमि लगभग एक जैसी है. शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश भी तेजी से तरक्की कर रहा था. पर देश के लोग बहकावे में आकर क्रांति कर दिए. भारत उन परिस्थितियों से बहुत कुछ सीख सकता है.

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शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद क्यों नहीं रुक रही हिंसा
शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद क्यों नहीं रुक रही हिंसा

भारतीय उपमहाद्वीप और आसपास के देशों की तुलना में बांग्लादेश बहुत तेजी से तरक्की कर रहा था. पाकिस्तान , अफगानिस्तान, श्रीलंका आदि की तुलना में राजनीतिक स्थिरता, लोकतांत्रिक मूल्यों और आर्थिक प्रगति आदि के दृष्टिकोण से यह देश अपने पड़ोसियों के लिए ईर्श्या का कारण बन रहा था. लेकिन बांग्लादेश को नजर लग गई. इस देश में चीजें देखते ही देखते इतनी बिगड़ गईं कि बांग्लादेश की वर्षों की मेहनत से बनाई गई छवि 24 घंटे में बरबाद हो गई. आज भारत का आम आदमी भी बांग्लादेश की स्थिति को देखकर यही सोच रहा है कि किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए भारत सरकार ने जो हाइवे ब्लॉक करने के लिए मोटी कीलें लगाईं थीं, बड़े बड़े कंटेनर रखे थे, वो कितने जरूरी थे. बांग्लादेश लगातार आर्थिक प्रगति कर रहा था. पाकिस्तान ही नहीं इंडिया से भी बेहतर वहां की सरकार काम कर रही थी. पर जनता कब किसके बहकावे में आ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. आइये देखते हैं कि बांग्लादेश बवाल से भारत क्या सबक सीख सकता है?

1-डिवेलपमेंट के बावजूद भी विपक्ष के बहकावे में आ सकती है जनता

1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मिली.बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि बावन साल के बाद 30 जून 2023 में ख़त्म होने वाले वित्तीय वर्ष में आर्थिक सर्वे के अनुसार, पाकिस्तान की विकास दर एक प्रतिशत से भी कम यानी 0.29 प्रतिशत रही. दूसरी और इसी वित्तीय वर्ष में बांग्लादेश इकोनॉमिक रिव्यू के अनुसार, वहां की आर्थिक विकास दर छह प्रतिशत रही. इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बांग्लादेश की आर्थिक विकास की दर लगातार बारह- तेरह वर्षों से छह प्रतिशत से अधिक पर रह रही है.यानि कि जब से शेख हसीना देश की पीएम रहीं तबसे वहां तरक्की रफ्तार तेज हो गई है. दूसरी और पाकिस्तान की आर्थिक विकास दर पिछले दस- बारह सालों में तीन से चार प्रतिशत के बीच रही, जिसमें दो साल तो यह एक प्रतिशत से भी कम रही.

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कोविड-19 महामारी के बाद बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था संघर्ष से गुजर रही है. बेरोजगारी बढ़ी है. पर ये कोई अकेले बांग्लादेश की समस्या नहीं है. पूरी दुनिया इस समस्या से ग्रस्त है. भारत में भी यही हाल है. भारत भी लगातार तरक्की कर रहा है. ग्रोथ रेट के मामले में चीन की अर्थव्यवस्था को भी भारत मात दे रहा है. चीन की तमाम बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों ने इस दौर में भारत की राह पकड़ ली है. देश में रक्षा सामग्री के निर्माण से लेकर भारत तमाम उपभोक्ता सामानों जैसे कार, मोबाइल आदि का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक बन रहा है. पर जनता को इतने से संतोष नहीं है. पिछले 10 साल से सत्ताधारी पार्टी को इस साल हुए आम चुनावों में जनता का कम समर्थन मिला है. मतलब साफ है जनता को तरक्की से ज्यादा धार्मिक और जातीय रूप से संतुष्ट करने की जरूरत है. क्योंकि जनता को बहकाने के लिए बांग्लादेश में धर्म मुद्दा बना है, तो भारत में जाति मुद्दा बन रहा है.

2-जनता के मामलों से सुप्रीम कोर्ट दूर रहे

बांग्लादेश में हिंसा के पीछे आरक्षण विरोधी आंदोलन का प्रमुख हाथ माना जा रहा है. बांग्लादेश की स्वतंत्रता में शामिल लोगों के परिवारों को वहां करीब 30 परसेंट आरक्षण मिल रहा था. जिसे शेख हसीना सरकार ने 2018 में जनता के विरोध के बाद खत्म कर दिया था. पर कुछ लोग कोर्ट चले गए. बाद में वहां की सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को बहाल कर दिया. फिर आंदोलन और हिंसा को देखते हुए अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सभी तरह के आरक्षण की समाप्ति कर दी. यानि कि जो काम जनता के द्वारा चुनी गई सरकारों को करना चाहिए था वह काम सुप्रीम कोर्ट करने लगा था. जाहिर है कि असंतोष बढ़ने का एक बहुत बड़ा यह भी रहा होगा.  

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दलित विचारक और पत्रकार प्रोफेसर दिलीप मंडल एक्स पर लिखते हैं कि बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने दो बड़ी ग़लतियां कीं वहाँ आज़ादी के बाद से ही स्वतंत्रता सेनानी परिवारों के लिए 30% कोटा था. चूँकि दो पीढ़ी इसका लाभ उठा चुकी थी, इसलिए जनता की माँग पर सरकार ने 2018 मैं इसे ख़त्म कर दिया. कोई विवाद नहीं था. 

ये कोटा मुख्य रूप से सत्ताधारी आवामी लीग के परिवारों को मिलता था क्योंकि आज़ादी की लड़ाई इसी पार्टी ने लड़ी थी. पर बांग्लादेश के जजों को चोर रास्ते से पार्टी नेताओं को खुश करने का ख़्याल आया. और इस साल कोर्ट ने पुराना 30% कोटा फिर बहाल कर दिया. जबकि ये सरकार का अधिकार क्षेत्र था. जनता ने विद्रोह कर दिया. अब कोर्ट को फिर पुराना फैसला वापस लेना पड़ा. पर ग़ुस्से में जजों ने लगभग हर तरह के कोटे ख़त्म कर दिए.फिर क्या. आग लग गई देश में और सरकार चली गई.

सबक - कोर्ट के चोर दरवाज़े से कभी नहीं जाना चाहिए. नीतिगत फ़ैसले सरकार और संसद को करने चाहिए. वरना नुक़सान हो जाता है.

दरअसल भारत में संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ के नाम पर दलितो को भ्रमित करने की कोशिश की जा रही है. इस बीच दलित सब कोटे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है उस पर देश के तमाम दल और दलित बुद्धिजीवी उसे सही नहीं मान रहे हैं. 

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3-छात्र आंदोलन ही नहीं किसी भी आंदोलन के हिंसक होते देर नहीं लगती

इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि बांग्लादेश में छात्रों आंदोलन को हिंसक बनाने में पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई और जमात-ए-इस्लामी द्वारा हिंसा भड़काने और विरोध प्रदर्शनों को राजनीतिक रंग देने में भूमिका की अवामी लीग सरकार जांच रही थी. दरअसल तख्तापलट के पहले ही सरकार को लग रहा था कि  पाकिस्तानी सेना और आईएसआई शेख हसीना सरकार को गिराने के लिए विपक्षी बीएनपी को सत्ता में वापस लाना चाहती थी. बांग्लादेश में आईएसआई पहले भी हसीना सरकार को कमजोर करने की कोशिश कर चुकी थी. भारत में भी इस प्रकार की कोशिश की गई थी. किसान आंदोलन को विदेशों से मिलने वाली फंडिंग की बात सामने आई थी. इसी तरह किसान आंदोलन को भड़काने में लगातार विपक्ष का साथ मिल रहा था. कांग्रेस और लेफ्ट के तमाम लीडर किसान संगठनों के साथ सीधे-सीधे इन्वॉल्व देखे जा चुके हैं. भारत सरकार के उदारवादी रवैये और लगातार चौकसी के चलते किसान आंदोलन कभी हिंसक नहीं हो सका. दिल्ली को सील करने के चलते दिल्लीवासियों को बहुत दिक्कते हुईं और अभी भी बॉर्डर पर कई रास्ते सील होने के चलते तमाम तरह की असुविधाएं हो रही हैं पर सरकार चौकस बनी हुई है. एक बार थोड़ी सी लापरवाही हुई तो आंदोलनकारियों ने लाल किले में घुसकर वैसा ही अराजकता फैलाने की कोशिश की थी जैसी बांग्लादेश पीएम हाउस में पहुंचकर कथित छात्रों ने किया. 

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4-विदेशी एजेंसियों से बांग्लादेश ही नहीं भारत भी परेशान है

बांग्लादेश में हिंसा शुरू होने के कुछ दिनों बाद पूर्व विदेश सचिव और ढाका में उच्चायुक्त रहे हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा था कि ऐसी खबरें हैं कि बांग्लादेश के मौजूदा हालात के पीछे कट्टरपंथी तत्व हैं. इसमें एक छात्र संगठन का नाम सामने आ रहा है, जो पाकिस्तान समर्थक जमात-ए-इस्लामी की स्टूडेंट विंग है. इसके अलावा वहां की विपक्षी पार्टी बीएनपी भी विरोध प्रदर्शनों और आंदोलनों में शामिल है. इसने आंदोलन को एक राजनीतिक रंग दिया है. सिंगला के कहने का मतलब सीधा था कि वो बंग्लादेश में जो छात्र हिंसा कर रहे हैं उसमें विपक्षी पार्टी बीएनपी के कार्यकर्ता भी शामिल हैं.हिंसा में ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो बांग्लादेश के हितों के खिलाफ हैं. जैसे कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई जो अपना एजेंडा सेट करने की कोशिश कर रही है.

पूरी दुनिया जानती है कि भारत के खिलाफ पाकिस्तान कैसे आतंकियों को पनाह भी देता है और ट्रेनिंग भी देता रहा है. पिछले दिनों एक वीडियो वायरल हुआ था जिससे पता चलता है कि जम्मू-कश्मीर में चुनावों में तबाही मचाने के लिए आतंकियों को ट्रेन किया जा रहा है. इन आतंकियों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई खुद ट्रेनिंग दे रही थी. कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि विदेशी एजेंसियों से अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है.

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