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ईरान-इजरायल युद्ध से ड्राई-फ्रूट की कीमतों पर असर, सावन का महीना शुरू होने से पहले कीमतें बढ़ना शुरू

ईरान और इजरायल के बीच हाल ही हुई सीजफायर के बावजूद उनके युद्ध का असर मध्य प्रदेश के ड्राई-फ्रूट बाजार पर दिखने लगा है. सावन में व्रत के चलते ड्राई-फ्रूट और सेंधा नमक की मांग बढ़ती है, लेकिन ईरान और अफगानिस्तान से सप्लाई बाधित होने से भोपाल में इन वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ गई हैं.

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मध्य पूर्व युद्ध का असर भारत के बाजार पर
मध्य पूर्व युद्ध का असर भारत के बाजार पर

ईरान और इजरायल के बीच भले ही सीजफायर हो गया हो लेकिन इन दोनों देशों के बीच युद्ध का असर मध्य प्रदेश के ड्राई-फ्रूट मार्केट पर दिखने लगा है. सावन का महीना आने वाला है और उससे ठीक पहले ईरान पोर्ट से आने वाले ड्राई-फ्रूट की सप्लाई पर असर के चलते भोपाल में इनकी कीमत बढ़ना शुरु हो गई है.

सावन का पवित्र महीना शुरू होने वाला है और इस दौरान करीब एक महीने तक लोग व्रत रखते हैं और फल, ड्राई-फ्रूट या सेंधा नमक का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं. लेकिन ईरान और इजरायल के बीच छिड़े युद्ध ने इनकी कीमतों पर बड़ा असर डाला है और अब इनका स्वाद आपकी जेब ढीली कर सकता है. 

भारत में ज्यादातर ड्राई-फ्रूट विदेश खासतौर से ईरान और अफगानिस्तान से आते हैं, लेकिन इन दिनों ईरान-इजरायल युद्ध का बड़ा असर ईरान और अफगानिस्तान से आने वाले ड्राई-फ्रूट की सप्लाई पर पड़ा है जिससे उनकी कीमतें बढ़ने लगी है.

भोपाल किराना व्यापारी महासंघ के महामंत्री और अखिल भारतीय व्यापारी परिसंघ (CAIT) के पूर्व प्रवक्ता विवेक साहू का कहना है कि अटारी-वाघा बॉर्डर बंद होने से अफगानिस्तान से आने वाले ड्राई-फ्रूट समेत ईरानी पिस्ता और सेंधा नमक जो ईरान के पोर्ट से भारत आता था वो युद्ध की वजह से रुका पड़ा है. व्यापारियों के मुताबिक युद्ध शुरू होने से पहले और अब की स्थिति में सावन के महीने में इस्तेमाल होने वाली चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी साफ देखी जा सकती है. 

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यह भी पढ़ें: ‘ईरान का परमाणु हथियार बनाने का सपना चकनाचूर’, इजरायली PM नेतन्याहू ने खामेनेई के खिलाफ किया ऐतिहासिक जीत का दावा

12 दिन की जंग में किसे क्या मिला? इजरायल-ईरान युद्ध का पूरा हिसाब

युद्ध मतलब तबाही युद्ध का मतलब ही होता है तबाही, जिसमें बेगुनाहों लोगों की जान जाती है, अर्थव्यवस्था चरमरा जाती है और होता है तो सिर्फ नुकसान ही नुकसान जैसे अली ख़ामेनेई को हुआ.

12 दिनों के युद्ध की वजह से ईरान और इजरायल को काफी नुकसान हुआ. लेकिन युद्ध से ये भी तय होता है की इसके बदले में देश ने क्या प्राप्त किया.

आखिर इन 12 दिनों में किसे क्या मिला? आखिर 12 दिन की इस जंग से किसे क्या मिला? क्या ये जंग अमेरिका ने फिक्स की थी?

अगर हां तो उसे कितनी कामयाबी मिली? आखिर इजरायल को इस जंग से क्या हासिल हुआ? क्या वो अपने मकसद में कामयाब हुआ या फिर उसे भारी नुकसान हुआ? ईरान को इस जंग से क्या मिला?

ऐसे कई सवाल हैं जो युद्ध विराम के ऐलान के बाद खड़े होते हैं, जिसे एक-एक करके समझने की कोशिश करते हैं.

इजरायल को काफी वक्त से ईरान के न्यूक्लियर हथियारों का डर सता रहा था और इस जंग की नींव भी इजरायल के इस मकसद के साथ शुरू हुई. 13 जून को इजराइल ने राइजिंग लायन के नाम से सीक्रेट ऑपरेशन के तहत ईरान के कई अहम सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया. वहीं ईरान के टॉप परमाणु वैज्ञानिक भी मारे गए।

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सेटेलाइट तस्वीरों और अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को कई साल पीछे धकेल दिया जिसे आखिरी झटका अमेरिका की ओर से दिया गया,

फ़ोर्डो, नतांज और इस्फहान परमाणु केंद्रों पर अमेरिकी बी टू विमानों से बंकर बस्तर के हमलों ने इन परमाणु केंद्रों के इन्फ्रास्ट्रक्चर को और भी तहस नहस कर दिया.

अराउंड विल नेवर रिबिल्ड इट फ्रॉम देर एक्सेलेंटली नाइट दैट प्लेस इज़ अंडर रॉक दैट प्लेस इज़ डेमोलिश दी, बीट टू पायलट्स डिड देयर जॉब दे डिड इट बेटर दैन एनीबडी कुड इवन इमेजिन दी हिट.

अब सवाल यह है कि क्या वाकई ईरान के परमाणु केंद्र पूरी तरह से तबाह हुए हैं? क्या ईरान अब परमाणु हथियार नहीं बना पाएगा?

कई एक्सपर्ट्स इससे इनकार कर रहे हैं, जिनका दावा है कि ईरान के परमाणु केंद्र को भले ही नुकसान हुआ हो, लेकिन ईरान की न्यूक्लियर फैसिलिटीज पूरी तरह से तबाह नहीं हुई है. ईरानी परमाणु ऊर्जा संगठन के प्रमुख मोहम्मद इस्लामी ने कहा है कि देश अपने परमाणु कार्यक्रम को इजरायल और अमेरिका के हमले में पहुंचे नुकसान का आकलन कर रहा है और इसे ठीक करने की योजना बना रहा है, दावे भले दोनों तरफ से कुछ भी किया जाए, लेकिन यहां कहीं ना कहीं इजरायल सफल होता दिखा.

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वहीं ईरान को भारी नुकसान होता नजर आ रहा है. इजराइल ने लड़ाई शुरू होने के 1 दिन बाद ही अपने युद्ध के टारगेट में तेहरान में सत्ता परिवर्तन की बात जोड़ दी.

इजरायली पीएम नेतन्याहू ने ईरानी लोगों से अपनी सरकार के खिलाफ़ सड़कों पर आने की बात कही तो डोनाल्ड ट्रंप ने भी ये संकेत दिए कि अमेरिका तेहरान से अली खामिनी की सत्ता को उखाड़ना चाहता है, लेकिन अमेरिका और इजरायल की तमाम कोशिशों के बावजूद ख़ामेनेई सत्ता में बैठे हुए हैं.

इतना ही नहीं, ख़ामेनेई ने संदेश दिया कि ईरान झुकेने वाला नहीं है. फिर इजरायल के शहरों में ताबड़तोड़ मिसाइल से हमले हो या फिर कतर में अमेरिकी बेस कैंप पर हमला करने का दम.

वहीं ख़ामेनेई ने साबित कर दिया कि इस बुरे दौर में जनता उसके साथ खड़ी रही. चारों तरफ से दुश्मन देशों से घिरे इजराइल पर हमला करने की जरूरत करना किसी खौफनाक सपने से कम नहीं था.

यह भी पढ़ें: 'हर मंच पर हम ईरान के साथ', शहबाज शरीफ ने ईरान के राष्ट्रपति को किया फोन, समर्थन देने का वादा

इजरायल के शहरों में इस बार ईरान की मिसाइलें कहर बनकर बरपी, ऐसी तबाही पहले कभी नहीं देखी गई थी. अपने डिफेंस सिस्टम पर दम भरने वाले इजरायल की पोल ईरान के मिसाइलों ने खोल दी तो वही एक संदेश ये भी गया कि इजरा.ल का सुरक्षा कवच भले ही मजबूत हो, लेकिन यहां सेंध की पूरी गुंजाइश है.

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इस जंग में एक बार फिर इजरायल की खुफिया एजेंसी मुसाद की ताकत पूरी दुनिया ने देखी जिसने ईरान के टॉप 13 सैन्य कमांडरों को चुन-चुन कर मार गिराया.

खौफ का आलम ये था की जंग के दौरान खामिनी भी कहीं नजर नहीं आए, जिनके छिपे होने को लेकर लगातार सवाल खड़े किए गए. ऐसे में मोसाद ने फिर साबित किया कि वो कैसे अपने दुश्मनों के घरों के अंदर तक घुसा हुआ है. वहीं ईरान के सामने चुनौती है कि अपने घर को मोसाद के जासूसों से कैसे बचाए.

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