
मध्य प्रदेश चुनाव से पहले गृह मंत्री अमित शाह एक्टिव मोड में हैं. एक महीने के भीतर तीन बार मध्य प्रदेश का दौरा कर अमित शाह ने नेताओं के साथ बैठक कर चुनावी तैयारियों की जानकारी ली. अमित शाह ने अब खामियों को दूर करने के लिए भी कमान अपने हाथ में ले ली है. अमित शाह रविवार को इंदौर के जानापाव पहुंचे और भगवान परशुराम की जन्मस्थली पर पूजा-अर्चना की.
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अमित शाह, परशुराम की जन्मस्थली पर पहुंचने वाले देश के पहले गृह मंत्री हैं. सीएम शिवराज सिंह चौहान ने 10 करोड़ की लागत से जानापाव में परशुराम लोक के निर्माण का भी ऐलान किया. चुनावी साल में अमित शाह का जानापाव जाना और सीएम शिवराज की ओर से परशुराम लोक के विकास का ऐलान, दोनों के राजनीतिय मायने क्या हैं?
परशुराम की जन्मस्थली पर अमित शाह का जाना क्यों खास?
ब्राह्मण परंपरागत रूप से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वोटर माने जाते हैं. सीधी पेशाब कांड के आरोपी प्रवेश शुक्ला के घर पर प्रशासन ने बुलडोजर चलवा दिया था. इस कार्रवाई को लेकर ब्राह्मण, बीजेपी और सरकार से नाराज बताए जा रहे हैं. इस कार्रवाई के खिलाफ ब्राह्मण समाज के लोगों ने ब्राह्मण महासंघ के बैनर तले सीधी कलेक्टर के दफ्तर पर विरोध प्रदर्शन किया था.

ब्राह्मण महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष राकेश दुबे ने चेतावनी दी थी कि प्रदेश सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. अमित शाह का जानापाव जाकर परशुराम की जन्मस्थली पर पूजा-पाठ करना और सीएम शिवराज की ओर से परशुराम लोक का ऐलान किया जाना इसलिए भी खास माना जा रहा है. बीजेपी चुनावी साल में किसी समाज को नाराज करने का रिस्क नहीं लेना चाहती.
शाह ने क्यों किया राम मंदिर, अनुच्छेद 370 का जिक्र
अमित शाह ने परशुराम जन्मस्थली पर पूजा-अर्चना के बाद बीजेपी के बूथ लेवल कार्यकर्ताओं और कोर कमेटी की बैठक को भी संबोधित किया. अमित शाह ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का भी जिक्र किया. अमित शाह ने इन दोनों मुद्दों का जिक्र कर एक तरह से ये साफ कर दिया है कि बीजेपी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी.
कांग्रेस के नेता घोषणाओं को लेकर सीएम शिवराज को घेर रहे हैं, घोषणावीर सीएम बता रहे हैं. अब अमित शाह का राम मंदिर और अनुच्छेद 370 का जिक्र करना विपक्ष के हमलों की काट के रूप में देखा जा रहा है. अमित शाह की रणनीति इन जटिल मुद्दों का जिक्र कर ये संदेश देने की है कि बीजेपी जो कहती है, वो करती है. हिंदू आस्था से जुड़े राम मंदिर के मुद्दे को कैश कराने और नया समीकरण गढ़ने की भी रणनीति है.
अमित शाह ने दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की सरकार के कार्यकाल की भी याद दिलाई और भ्रष्टाचार को लेकर निशाना साधा. उन्होंने कमलनाथ को करप्शन नाथ और दिग्विजय सिंह को बंटाधार बताया.
महापुरुषों, प्रतीकों के सहारे जातीय गणित साधने की कवायद
मध्य प्रदेश की सत्ता से 15 महीने का वनवास समाप्त कर वापसी के बाद से ही बीजेपी की रणनीति अलग नजर आई है. पार्टी और सरकार, दोनों ही स्तर पर अलग-अलग जाति-समुदाय के महापुरुषों और प्रतीकों के सहारे पैठ बनाने की कवायद नजर आई है. मध्य प्रदेश में रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर रखा जाना हो या मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने पर रानी दुर्गावती गौरव यात्रा, महापुरुषों के सहारे आदिवासी समाज को साधने की कवायद साफ नजर आई. बीजेपी अब ब्राह्मणों को साधने के लिए भी इसी राह पर है.

ब्राह्मणों को साधने के लिए सरकार ने क्या-क्या किए
ब्राह्मणों की नाराजगी दूर करने के लिए सरकार एक्टिव मोड में है. शिवराज सरकार ने इसी साल के बजट में बालाघाट रामपायली में हेडगेवार की स्मृति में शूरवीर संग्रहालय बनाने का ऐलान किया था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के नाम संग्रहालय के बाद सीएम शिवराज ब्राह्मण कल्याण बोर्ड के गठन का भी ऐलान कर चुके हैं.
मध्य प्रदेश में ब्राह्मण वोट की ताकत कितनी
मध्य प्रदेश में ब्राह्मण वोट की बात करें तो सूबे की करीब 60 सीटों पर ये जीत-हार निर्धारित करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. सूबे के कुल वोट में ब्राह्मण वोट की भागीदारी करीब 10 फीसदी है. ब्राह्मणों को बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है लेकिन सिंगरौली नगर पंचायत के अध्यक्ष चुनाव और 2018 के विधानसभा चुनाव में इनकी नाराजगी साफ झलकी.
2018 चुनाव में भारी पड़ी थी सवर्णों की नाराजगी
ब्राह्मण बहुल सिंगरौली में बीजेपी उम्मीदवार को नगर पंचायत अध्यक्ष चुनाव में मात मिली. 2018 के चुनाव में सवर्ण सीएम शिवराज के माई के लाल वाले बयान को लेकर नाराज थे. राजधानी भोपाल समेत कई जगह सवर्णों ने 'हम हैं माई के लाल' की तख्तियां लेकर विरोध-प्रदर्शन किया था. नतीजा ये रहा कि बीजेपी सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़े से पीछे रह गई और 15 साल बाद सत्ता से बेदखल होना पड़ा.
हालत ये थी कि बीजेपी अपना गढ़ मानी जाने वाली इंदौर-1 विधानसभा सीट भी नहीं बचा पाई. इंदौर-1 से कांग्रेस के संजय शुक्ला चुनाव जीत गए थे. कई विधानसभा सीटों पर बीजेपी को बहुत करीबी अंतर से हार का सामना करना पड़ा था. दरअसल, सीएम शिवराज ने साल 2016 में अनुसूचित जाति-जनजाति के कर्मचारियों अधिकारियों के सम्मेलन में कहा था कि मेरे होते हुए कोई भी माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं करा सकता.