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जब डीटीसी में दिल्ली घूमने वाले ताहिर राज भसीन ने सीपी में किया शूट, बोले 'लगा जिंदगी बदल गई'

ताहिर राज भसीन को इंडस्ट्री के दमदार यंग एक्टर्स में गिना जाता है. साहित्य आजतक 2025 के मंच पर पहुंचे ताहिर ने अपनी जिंदगी के बारे में खुलकर बात की. दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर चुके ताहिर ने बताया कि कैसे 'मर्दानी' के लिए यहां शूट करना उनकी लाइफ का सबसे बड़ा मोमेंट है.

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ताहिर राज भसीन ने बताया लाइफ चेंजिंग था 'मर्दानी' में रोल मिलना (Photo: Atul Kumar Yadav)
ताहिर राज भसीन ने बताया लाइफ चेंजिंग था 'मर्दानी' में रोल मिलना (Photo: Atul Kumar Yadav)

'मर्दानी' फिल्म से डेब्यू करने वाले एक्टर ताहिर राज भसीन को लोगों ने '83' और 'छिछोरे' जैसी फिल्मों में उन्हें खूब सराहा. फिल्मों में तो लोग उनका काम नोटिस कर ही रहे थे. मगर ओटीटी ने ताहिर को एक अलग पहचान दिलाई. 'ये काली काली आंखें', 'सुल्तान ऑफ दिल्ली' और 'स्पेशल ऑप्स' जैसे शोज ने ताहिर के काम का दम लोगों और इंडस्ट्री दोनों को दिखाया. शुरू से ही हीरो वाले रोल के पीछे ना भागकर, कहानी के लिए जरूरी किरदारों को चुनकर ताहिर ने दिखाया था कि वो कुछ अलग करना चाहते हैं. 

मगर ओटीटी केकाम ने दिखाया कि वो किस तरह एक दमदार परफॉरमेंस वाले किरदार हैंडल कर सकते हैं. शनिवार को साहित्य आजतक 2025 में ताहिर 'ओटीटी का डिसरप्टर' बनकर मंच पर पहुंचे. उन्होंने अपनी लाइफ, फिल्मों और एक बागी तेवर के साथ करियर बनाने को लेकर बात की. 

ताहिर को पहला ब्रेक मिलने में लगी मेहनत 
'मर्दानी' फिल्म में विलेन का रोल निभाकर इंडस्ट्री में आने वाले ताहिर को बड़ी म्हणत लगी थी. उन्होंने बताया, 'मैं दिल्ली का हूं. जब आप यहां से जाते हैं तो लगता है कि दो-तीन महीने में मेरे हाथ अच्छा सा रोल लग जाएगा. मैंने 150-200 ऑडिशन दिए, 4 साल लगे तब जाकर काम मिला. लेकिन वो 3 साल मुझे तैयार कर रहे थे एक बड़े मोमेंट के लिए. फाइनली जब 'मर्दानी' मिली, तो कोई शक ही नहीं लगा कि करनी है या नहीं. उसका ट्रीटमेंट भी विलेन जैसा नहीं बल्कि एंटी-हीरो जैसा है. जब पहली फिल्म बनी थी तो लगा नहीं था कि ये एक ऐसी फ्रैंचाइजी बनेगी.'

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ताहिर ने बताया कि 'बाजीगर' में शाहरुख ने जो एंटी-हीरो का किरदार निभाया था वो 'ये काली काली आंखें' में उनके किरदार के लिए प्रेरणा बना. उन्होंने ये भी कहा कि दिल्ली से मुंबई जाकर एक्टर बनने वालों के लिए शाहरुख उनके 'मुंबई ड्रीम' का चेहरा हैं. उन्होंने जिस तरह बाहर से जाकर इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई वो नए एक्टर्स के लिए एक बहुत बड़ा इंस्पिरेशन है.

सुनील गावस्कर का किरदार निभाना था चैलेंजिंग
'83' में ताहिर ने जिस तरह क्रिकेटिंग लेजेंड सुनील गावस्कर का किरदार निभाया, उसकी बहुत तारीफ हुई थी. मगर ये किरदार उनके लिए एक बड़ा चैलेन्ज था. ताहिर बोले, 'मैं कभी स्पोर्ट्स पर्सन नहीं था. रुचि एक्टिंग में थी. बहुत इंटरेस्टिंग और चैलेंजिंग किरदार था. मैंने तो दिल्ली की गलियों में क्रिकेट खेला था. क्रिकेट कोचिंग में पहुंचकर पहली बार पता लगा कि मेरे बैट पकड़ने का तरीका भी ठीक नहीं है. सुनील गावस्कर के सामने उनके तरीके की क्रिकेट खेलना बहुत भारी काम था. उन्होंने कहा कि जब पिच की तरफ वॉक करना तो उस कॉन्फिडेंस के साथ चलना कि वेस्टइंडीज के तगड़े क्रिकेटर्स के सामने आप अपने देश को रिप्रेजेंट करने जा रहे हैं.' 

ताहिर की लाइफ का सबसे बड़ा मोमेंट 
ताहिर ने बताया कि 'मर्दानी' का पहले दिन का, पहला शॉट उनके जीवन का सबसे बड़ा मोमेंट था. 'प्रदीप सरकार डायरेक्टर थे, यश राज फिल्म्स की फिल्म थी, 200 एक्स्ट्राज थे. शॉट के लिए पूरा सीपी लॉक कर दिया गया था. मेरे लिए ये बहुत बड़ा मोमेंट था क्योंकि जिन गलियों में आप घूमे हैं वहां आप अपनी लाइफ का पहला फिल्म शॉट दे रहे हैं. शायद ये यूनिवर्स की तरफ से एक इशारा था.'

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पहली फिल्म से मिले सबक बताते हुए ताहिर ने कहा, 'सबसे बड़ा चैलेन्ज ये सोचना था कि मैं रानी मुखर्जी के सामने खड़ा हूँ. क्योंकि जिन्हें आप स्क्रीन पर देख चुके होते हैं, उन्हें स्टार्स के तौर पर देखने लगते हैं. कमाठीपुरा में शूट करते हुए मैंने सीखा कि हम लोग सेक्स वर्कर्स को एक अलग तरह से देखते हैं. लेकिन वो खुद को ऐसे नहीं देखते. उनके लिए वो बस काम कर रहे हैं. मैंने सीखा कि किरदार को कभी खुद जज नहीं करना.'

ओटीटी से बदला जीवन 
'ये काली काली आंखें' वेब सीरीज से ताहिर बहुत पॉपुलर हुए. उन्होंने बताया कि असल में इस शो से बदला क्या था— 'ओटीटी पर मेरा पहला बड़ा काम था 'ये काली काली आंखें'. उससे पहले मैंने जो रोल किए थे वो अल्फा-मेल थे. मगर 'ये काली काली आंखें' में मुझे वल्नरेबल दिखना था. इसका बाद फिल्ममेकर्स का, स्टूडियोज का मुझे देखने का तरीका बदल गया. आप लड़की के नजरिए से देख रहे हैं कि अगर वो लड़कों की तरह सनक के साथ प्यार करने लगे तो कैसा होगा.' 

उन्होंने आगे कहा, 'ओटीटी ने मुझे 'ये काली काली आंखें' और 'सुलतान इन डेल्ही' जैसे शोज से वो मौके दिए हैं जिनमें लोग आपको नोटिस करते हैं. यहीं से मुझे पहचान मिली है. जब आप एक्टर बनने का फैसला करते हो, तो ये अपने आप में ट्रेडिशनल 9-5 नौकरी के खिलाफ आपका विरोध बन जाता है.'

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