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'नौकरानियों को गले लगा रहे बच्चे..' प्रेमानंद महाराज के बाद एक्टर ने भारतीय पेरेंट्स को दी ये नसीहत

आजकल के व्यस्त जीवन में माता-पिता अपने बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं, जिससे बच्चे नौकरानियों पर पूरी तरह से निर्भर हो रहे हैं. सुधांशु पांडे और आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज ने इस समस्या पर चिंता जताई है, आइए जानते हैं कि इनका क्या कहना है.

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मॉर्डन पेरेंटिंग कल्चर पर अनुपमा एक्टर ने अपनी राय दी.(Photo: Instagram@dadsensepod/bhajanmarg_official)
मॉर्डन पेरेंटिंग कल्चर पर अनुपमा एक्टर ने अपनी राय दी.(Photo: Instagram@dadsensepod/bhajanmarg_official)

आजकल की बिजी लाइफ में माता-पिता के पास अपने बच्चों के लिए भी समय नहीं रह गया है. अपने काम की वजह से वो बच्चों को नौकर-नौकरानियों के हवाले छोड़ जाते हैं. यह अब हर दूसरे घर की कहानी बन गया है, आलम यह है कि बच्चे अब नौकरानियों की गोद में महफूज महसूस कर रहे हैं.

इसे लेकर कुछ दिनों पहले ही प्रेमानंद महाराज ने बात की थी, उनका वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल भी हुआ था. उनके वायरल वीडियो ने बच्चों के पालन-पोषण और उनके शुरुआती सालों को महत्व देने की जरूरत पर बहस छेड़ दी थी. 

मॉडर्न पेरेंटिंग पर सुधांशु की राय

अब प्रेमानंद महाराज के बाद टीवी सीरियल 'अनुपमा' में 'वनराज' का किरदार निभाकर फेम पाने वाले एक्टर सुधांशु पांडे ने इस मुद्दे पर राय दी है. उन्होंने इसे लेकर एक ऐसा सच बोल दिया है, जिसे लोग स्वीकारने में भी हिचकिचा रहे हैं.

सुधांशु ने हाल ही में डैड-सेंस पॉडकास्ट में बताया कि यह सीन आजकल लगभग हर हाई-राइज बिल्डिंग, हर अपार्टमेंट और हर घर में देखने को मिलता है. बच्चे डर लगने पर, सुकून के पल में या प्यार पाने के लिए मां-बाप के पास नहीं बल्कि सीधा नौकरानी के पास पहुंचते हैं.

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एक्टर ने कहा, 'अगर बिल्डिंग में 100 बच्चे हैं, तो 95 बच्चों को मैं नौकरानियों के साथ देखता हूं. बच्चे उनसे लिपटते हैं, डर लगने पर उन्हीं के पास जाते हैं और इसे देखकर बहुत दुख होता है.माता-पिता को यह एहसास भी नहीं होता कि वे क्या खो रहे हैं और इससे बड़ा नुकसान यह है कि उनका बच्चा क्या खो रहा है. आप उसे यूं ही जाने दे रहे हैं.' 

जिंदगी भर रहता है असर

सुधांशु कहते हैं कि यह इमोशनल दूरी सिर्फ अभी के लिए नहीं है, यह सिर्फ आज का दर्द नहीं बनती है. बल्कि यह बच्चे की पूरी लाइफ पर असर करती है. ऐसे बच्चे धीरे-धीरे फोन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर निर्भर होने लगते हैं, क्योंकि उन्हें इमोशनल कनेक्शन वहीं मिलता है जहां वो कंफर्टेबल फील करने लगते हैं. 

मॉडर्न पेरेंटिंग के नतीजे

मॉर्डन पेरेंटिंग के रिजल्ट बताते हुए उन्होंने कहा कि यह हालात बच्चों को ऐसी दिशा में धकेल देते हैं, जहां से उन्हें निकालना बहुत मुश्किल हो सकता है. माता-पिता काम के बोझ, स्ट्रेस और स्पीड में उलझे रह जाते हैं और घर में बच्चे प्यार और अटेंशन के नौकरानी पर डिपेंड हो जाते हैं. इस तरह बच्चे कहीं ना कहीं अपने पेरेंट्स से दूर हो जाते हैं और इस दूरी को समय के साथ भरना भी मुश्किल हो सकता है, क्योंकि समय के साथ यह दीवार और मजबूत और लंबी हो जाती है.

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प्रेमानंद महाराज की खास अपील

एक्टर सुधांशु ही नहीं बल्कि उनसे पहले आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज ने भी माता-पिता से अपील की थी कि अपने बच्चों को अपना ज्यादा से ज्यादा समय दें. उन्होंने कहा था कि कमाई जरूरी है, लेकिन बच्चे के शुरुआती साल कहीं ज्यादा जरूरी होते हैं. 

वर्किंग पेरेंट्स अपनाएं ये आसान टिप्स

  • 10–15 मिनट पहले उठें और बच्चों के साथ बैठकर नाश्ता करें.
  • ऑफिस से घर पहुंचने के बाद 30–45 मिनट बिना मोबाइल, बिना टीवी के सिर्फ बच्चों के साथ बिताएं. 
  • यह समय बच्चों के लिए मम्मी-पापा मेरे साथ हैं की सबसे मजबूत फीलिंग देता है. 
  • किचन में हल्के काम, कपड़े तह करना, टेबल सेट करना जैसी एक्टिविटी में बच्चे को शामिल करें, ताकि आप बच्चे के साथ ज्यादा क्वालिटी टाइम बिता पाएं.
  • बेडटाइम स्टोरी, हल्की बातें, या दिन कैसे बीता जैसी चीजें बच्चे याद रखते हैं और इससे इमोशनल बॉन्डिंग गहरी होती है. 
  • ऑफिस से देर हो जाए तो वीडियो कॉल पर 5–7 मिनट बच्चों से बात करें. भले ही समय कम हो, लेकिन जब भी साथ हों बच्चे को अपना पूरा टाइम दें. 
  • वर्किंग होना गलत नहीं है, बस जब आप बैलेंस बनाते हैं तो बच्चा यह सीखता है कि लाइफ में काम और परिवार दोनों जरूरी है.
     
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