मध्य प्रदेश और राजस्थान में कोल्ड्रिफ कफ सिरप पीने से 26 बच्चों की मौत हो गई थी. मासूम बच्चों की कफ सिरप पीने से हुई मौतों का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. वकील विशाल तिवारी ने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. इस याचिका में बच्चों की मौत के मामले की जांच राष्ट्रीय न्यायिक आयोग या एक्सपर्ट कमेटी से कराने की मांग की गई थी.
सर्वोच्च न्यायालय ने यह जनहित याचिका खारिज कर दी है. याचिकाकर्ता विशाल तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत के आंकड़े बढते ही जा रहे हैं. ये पहली बार नहीं है. उन्होंने कोर्ट में कहा कि अक्सर इस तरह की दवाओं को लेकर खबरें आती रहती हैं. जो भी दवाई बाजार मे भेजी जाएं, उसका प्रॉपर टेस्ट किया जाना चाहिए.
याचिकाकर्ता ने कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत के मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के किसी पूर्व न्यायाधीश की निगरानी में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग या एक्सपर्ट कमेटी से कराई जाए. जनहित याचिका में कफ सिरप वाली इन दवाओं में प्रयुक्त रसायन डाई एथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल की बिक्री और निगरानी के लिए सख्त नियम बनाए जाने की भी गुहार लगाई गई थी.
याचिकाकर्ता वकील ने पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने, अलग-अलग राज्यों में दर्ज मुकदमे एक ही जगह ट्रांसफर कर जांच कराए जाने की भी मांग की गई थी. वकील विशाल तिवारी ने कफ सिरप के नाम पर विषैले सिरप बनाने वाली कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने, बंद करने और सख्त कार्रवाई करने की मांग भी की थी.
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इस याचिका का विरोध करते हुए तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले में कार्रवाई करने में राज्य सरकार सक्षम है. उन्होंने कहा कि राज्य को जांच नहीं करने देना अविश्वास करना होगा. सॉलिसीटर जनरल ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि कहीं भी कुछ भी होता है, तो ये अखबार में पढ़कर जनहित याचिका दाखिल कर देते हैं.
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इस पर जस्टिस बीआर गवई ने याचिकाकर्ता वकील से पूछा कि अब तक आपने कितनी पीआईएल दाखिल की हैं? याचिकाकर्ता ने जवाब में कहा आठ या 10. सीजेआई ने इसके बाद बिना कोई टिप्पणी किए याचिका खारिज कर दी.