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'समलैंगिक संबंध हमेशा टिके रहने वाले', सेम सैक्स मैरिज मामले में सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

CJI ने आगे कहा, "पिछले 69 वर्षों में हमारे कानून में विस्तार हुआ है. जब आप समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हैं तो आप यह भी महसूस करते हैं कि ये एक बार के रिश्ते नहीं हैं, ये स्थिर रिश्ते भी हैं. ये न केवल शारीरिक बल्कि भावनात्मक भी हैं."

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सेम सैक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सेम सैक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

समलैंगिक विवाह को लेकर गुरुवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. पांच जजों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस दौरान अहम टिप्पणी की. उन्होंने कहा कि समलैंगिक संबंध एक बार का रिश्ता नहीं, ये रिश्ते हमेशा के लिए टिके रहने वाले हैं. ये न सिर्फ शारीरिक बल्कि भावनात्मक रूप से मिलन भी है. यही कारण है कि समलैंगिग विवाह के लिए 69 साल पुराने स्पेशल मैरिज एक्ट के दायरे का विस्तार करना गलत नहीं है.

CJI ने आगे कहा, "पिछले 69 वर्षों में हमारे कानून में विस्तार हुआ है. जब आप समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हैं तो आप यह भी महसूस करते हैं कि ये एक बार के रिश्ते नहीं हैं, ये स्थिर रिश्ते भी हैं. ये न केवल शारीरिक बल्कि भावनात्मक भी हैं. समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करके हमने न केवल सहमति देने वाले समान लिंग के वयस्कों के बीच संबंधों को मान्यता दी है, बल्कि हमने यह भी माना है कि जो लोग समान लिंग के हैं, वे स्थिर संबंधों में भी होंगे."

इस दौरान CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने सोशल मीडिया पर ट्रोल करने पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि उनकी टिप्पणियों पर उन्हें ट्रोल किया गया. अब यह जजों के लिए चिंता का विषय बन गया है. हम कोर्ट में जो कहते हैं, उसका जवाब ट्रोल्स में होता है, कोर्ट में नहीं.

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CJI ने कहा कि विषमलैंगिक जोड़े अब शिक्षा के प्रसार के साथ और आधुनिक युग के दबाव के चलते या तो निःसंतान हैं या एक बच्चा चाहते हैं. चीन जैसे लोकप्रिय देश भी जनसांख्यिकीय मोर्चे पर हार रहे हैं. युवा जो उच्च शिक्षित हैं, वह बच्चे नहीं चाहते, यह पसंद की बात है. अब इस मामले में अगली सुनवाई 24 अप्रैल को होगी.

क्या है स्पेशल मैरिज एक्ट? 

- दो अलग-अलग धर्मों और अलग-अलग जातियों के लोग शादी कर सकें, इसके लिए 1954 में स्पेशल मैरिज एक्ट बनाया गया था. 

- इस कानून के जरिए भारत के हर नागरिक को ये संवैधानिक अधिकार दिया गया है कि वो जिस धर्म या जाति में चाहे, वहां शादी कर सकते हैं. इसके लिए लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल से ज्यादा होनी चाहिए. 

- भारत में शादी के बाद उसका रजिस्ट्रेशन भी करवाना होता है. अलग-अलग धर्मों के अपने पर्सनल लॉ हैं, जो सिर्फ उन धर्मों को मानने वालों पर लागू होते हैं. लेकिन स्पेशल मैरिज एक्ट सभी पर लागू होता है. इसके तहत शादी करवाने के लिए धर्म बदलने की जरूरत नहीं होती.

इस कानून में क्या बदलने की मांग की गई है? 

1. कानूनी उम्र बदली जाए - सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट रोहतगी ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट में शादी की कानूनी उम्र में बदलाव किया जाए. यहां पुरुष की पुरुष से शादी होती है तो उम्र 21 साल और स्त्री की स्त्री से शादी होती है तो 18 साल उम्र तय की जा सकती है. 

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2. महिला-पुरुष की जगह व्यक्ति लिखा जाए - याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने ये भी मांग की है कि स्पेशल मैरिज एक्ट में 'पुरुष और महिला की शादी' की बात कही गई है. इसमें 'पुरुष' और 'महिला' की जगह 'व्यक्ति' लिखा जाना चाहिए. स्पेशल मैरिज एक्ट को 'जेंडर न्यूट्रल' बनाया जाए.

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