UCC in Uttarkahand: उत्तराखंड से आज एक बड़ी खबर सामने आई. समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए बनाई गई जस्टिस देसाई कमेटी ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंप दी है. राजधानी देहरादून में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरानआज सुबह ही कमेटी के सभी सदस्यों ने पुष्कर सिंह धामी को यूसीसी पर बनाई गई अपनी रिपोर्ट सौंपी. अब इस रिपोर्ट की समीक्षा की जाएगी और इसी विधानसभा सत्र में उत्तराखंड देश में समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य बन जाएगा.
सीएम पुष्कर सिंह धामी को ये रिपोर्ट करीब 20 महीने के बाद मिली है, लेकिन इसे तैयार करने में इतना वक्त इसलिए लगा क्योंकि कमेटी ने प्रदेश के लाखों लोगों की राय भी ली है. समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने के लिए तैयार की गई रिपोर्ट में क्या है इसका वास्तविक खुलासा तब होगा जब इसे 6 फरवरी को विधानसभा के पटल पर पेश किया जाएगा, लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि समान नागरिक संहिता के इस ड्राफ्ट में करीब 400 से ज्यादा सेक्शंस की अनुशंसा की गई है. जिसमें सबसे ज्यादा तवज्जो महिलाओं के समान अधिकार को लेकर दिया गया हो सकता है.
महिलाओं को तवज्जो
समान नागरिक संहिता का प्रभावी अर्थ शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और संपत्ति का अधिकार से जुड़े कानूनों को सुव्यवस्थित करना हैं. 21वें विधि आयोग ने कहा था कि इसके लिए देशभर में संस्कृति और धर्म के अलग-अलग पहलुओं पर गौर करने की जरूरत होगी.
खबर है कि विवाह, तलाक, लिव इन रिलेशनशिप, संपत्ति में महिलाओं का अधिकार, संपत्ति बंटवारा, बच्चा गोद लेने से लेकर माता पिता के भरण पोषण तक को लेकर इस कानून में प्रावधान किये जा सकते हैं. उत्तराखंड सरकार का दावा है कि उन्होंने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किये गए वादे को पूरा करने और प्रदेश के मतदाताओं के जनमत का सम्मान करने के लिए ही ये कानून बनाया है.
कुछ ऐसे हो सकते हैं प्रावधान
विवाह का पंजीकरण कराना जरूरी- मान नागरिक संहिता (यूसीसी) के लागू होने के बाद बहुविवाह पर रोक लग जाएगी और बहुविवाह पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी.लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र 21 साल तय की जा सकती है.विवाह के बाद अनिवार्य पंजीकरण की आवश्यकता हो सकती है. प्रत्येक विवाह का संबंधित गांव, कस्बे में पंजीकरण कराया जाएगा और बिना पंजीकरण के विवाह अमान्य माना जाएगा. विवाह पंजीकरण नहीं कराने पर किसी भी सरकारी सुविधा से वंचित होना पड़ सकता है.
लिव-इन में रहने वालों को का पुलिस रजिस्ट्रेशन- लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों को अपनी जानकारी देना अनिवार्य होगा और ऐसे रिश्तों में रहने वाले लोगों को अपने माता-पिता को जानकारी प्रदान करनी होगी. लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए पुलिस में रजिस्ट्रेशन जरूरी होगा.
इद्दत पर लग सकता है प्रतिबंध- क्रिया सरल होगी.मुस्लिम समुदाय के भीतर इद्दत जैसी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है. पति और पत्नी दोनों को तलाक की प्रक्रियाओं तक समान पहुंच प्राप्त होगी.लड़कियों को भी लड़कों के बराबर विरासत का अधिकार मिलेगा.
आकस्मिक मौत पर प्रावधान- नौकरीपेशा बेटे की मृत्यु की स्थिति में बुजुर्ग माता-पिता के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पत्नी पर होगी और उसे मुआवजा मिलेगा. पति की मृत्यु की स्थिति में यदि पत्नी पुनर्विवाह करती है तो उसे मिला हुआ मुआवजा माता-पिता के साथ साझा किया जाएगा. यदि पत्नी की मृत्यु हो जाती है और उसके माता-पिता को कोई सहारा नहीं मिलता है, तो उनकी देखरेख की जिम्मेदारी पति पर होगी.
बच्चों की कस्टडी- अनाथ बच्चों के लिए संरक्षकता की प्रक्रिया को सरल बनाया जाएगा. पति-पत्नी के बीच विवाद के मामलों में बच्चों की कस्टडी उनके दादा-दादी को दी जा सकती है. बच्चों की संख्या पर सीमा निर्धारित करने सहित जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रावधान पेश किए जा सकते हैं. वहीं पूरा मसौदा महिला केंद्रित प्रावधानों पर केंद्रित हो सकता है. आदिवासियों को यूसीसी से छूट मिलने की संभावना है.
2.31 लाख लोगों से ली राय
आपको बता दें कि यूसीसी के चुनावी वादे को पूरा करने के लिए सीएम धामी ने 27 मई 2022 को ही पांच सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया था. जिसमें जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में कमेटी बनी थी. उस कमेटी में रिटायर्ड जज जस्टिस प्रमोद कोहली, उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह, देहरादून यूनिवर्सिटी वीसी सुरेखा डंगवाल और सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौड़ शामिल किये गए थे. कमेटी ने ड्राफ्ट तैयार करने के लिए 143 बैठकें की और प्रदेश के करीब 2.31 लाख लोगों से राय भी ली.
इस कानून के लागू होने के बाद उत्तराखंड देश का पहला राज्य होगा जहां संपूर्ण रूप से समान नागरिक संहिता का कानून लागू होगा. इससे पहले गोवा में लागू कानून संपूर्ण रूप से यूसीसी नहीं होकर पारिवारिक मुद्दे पर बनाया गया कानून बताया जाता है. खबर है कि उत्तराखंड में कानून लागू होने के बाद असम और उत्तर प्रदेश में भी इसी तर्ज का कानून लागू किया जा सकता है.