राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल पूर्वी उत्तर प्रदेश की बैठक का आज दूसरा और अंतिम दिन है. संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बैठक के पहले दिन स्वरोजगार, धर्मांतरण और सामाजिक समरसता का मंत्र स्वयंसेवकों को और संघ के अनुवांशिक संगठनों को दिया. संघ प्रमुख ने जिस तरह से अनुसूचित जाति व जनजाति के बीच सामाजिक समरसता और बेरोजगारी की समस्या के समाधान का रास्ता खोजने के साथ-साथ स्वरोजगार से लोगों को जोड़ने पर जोर दिया है, उसके पीछे सियायी मायने भी छिपे हैं.
बिहार विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा बना था, जिसके चलते एनडीए को जीतने में पसीने झूट गए थे. ऐसे में यूपी में डेढ़ साल बाद होने वाले चुनाव में बेरोजगारी मुद्दा बने, उससे पहले ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों को और संघ के अनुवांशिक संगठनों को इस दिशा में काम करने का सीधे तौर पर संदेश दे दिया है ताकि आगे किसी तरह का कोई सियासी संकट न खड़ा हो सके. प्रयागराज के यमुनापार के गौहनिया स्थित वशिष्ट वात्सल्य नर्सिंग कालेज में चल रही संघ की बैठक में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी रविवार को पहुंचे थे.
बेरोजगारों को स्वरोजगार से जोड़ें
सूत्रों की मानें तो संघ के राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारियों की मौजूदगी में हुई बैठक में बताया गया कि कोरोना काल में काफी लोगों की नौकरी चली गई और काफी संख्या में लोगों का व्यापार चौपट हो गया. ऐसे में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कोरोना काल में उपजी बेरोजगारी के समाधान का तरीका सुझाया है. उन्होंने पदाधिकारियों से कहा है कि स्वयंसेवकों के माध्यम से बेरोजगारों को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित कराएं. उन्हें कुटीर उद्योग के लिए प्रेरित करें और जहां जैसी आवश्यकता हो सामर्थ के अनुसार मदद करें. बैठक में कहा गया कि संघ की रीति-नीति के प्रति झुकाव रखने वाले व्यवसायी, सक्षम लोग अब आगे आएं और बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध करवाएं.
दलित बस्तियों में सेवा कार्य पर जोर
अनुसूचित जाति और जनजाति से जुड़े लोगों के हो रहे धर्मांतरण को लेकर भी आरएसएस ने चिंता जाहिर की है. सूत्रों की मानें तो प्रयागराज कार्यकारी मंडल की बैठक में संघ प्रमुख ने पदाधिकारियों को निर्देश दिया कि धर्मांतरण पर प्रभावी नियंत्रण के लिए अनुसूचित जाति व जनजाति की बस्तियों में सेवाकार्य को तेज किए जाएं. इसके अलावा उनके बीच सामाजिक समरसता के लिए दलित बस्तियों में रहने वाले परिवारों के साथ सतत संपर्क बनाए रखने पर भी जोर दिया गया है.
यूपी में दलित वोटर निर्णायक
दरअसल, संघ लंबे सय से दलित और आदिवासी समुदाय के बीच काम कर रहा है. यूपी में करीब 22 फीसदी दलित मतदाता है, जो बसपा का कोर वोटबैंक माना जाता है. हालांकि, पिछले कुछ चुनाव में दलित समुदाय के एक तबके का झुकाव संघ के कार्य करने की वजह से बीजेपी की तरफ हुआ है. ऐसे में संघ दलित समुदाय के बीच अपनी उपस्थिति को बनाए रखना चाहता है. इसीलिए प्रमुख त्योहारों पर संघ के स्वयंसेवक इन दलित बस्तियों में जाते हैं और उनके साथ मिलकर भोजन करते हैं व त्योहार मनाते हैं. स्वयंसेवक इस तरह से उन्हें अहसास करवाते हैं कि हम सभी एक ही परिवार, एक ही समाज का हिस्सा हैं.
यूपी की राजनीति में दलित वोट काफी निर्णायक भूमिका में है. ऐसे में बीजेपी के साथ आए दलित मतदाता कहीं छिटक न जाए, इसी बात के मद्देनजर संघ प्रमुख ने प्रयागराज की बैठक में अपने पदाधिकारियों के दलित समुदाय के बीच काम करने पर जोर दिया है. यह संघ और बीजेपी दोनों के लिए काफी अहम माना जा रहा है.