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रोजे छोड़कर दिन-रात लोगों की मदद में जुटा रहता है ये शख्स, लोग बुलाते हैं 'फरिश्ता'

कोरोना का खौफ इतना है कि संक्रमण के डर से सगे-संबंधी और करीबी भी जरूरतमंदों से मुंह फेर ले रहे हैं. कई लोग ऐसी दिक्कतों का भी सामना कर रहे हैं मरीज कि मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए ले जाने को शव-वाहन तक का इंतजाम नहीं हो पा रहा.

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शव-वाहन मुहैया कराते हैं फैजुल (फोटो- आजतक)
शव-वाहन मुहैया कराते हैं फैजुल (फोटो- आजतक)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • प्रयागराज में जरूरतमंदों को मुफ्त में शव-वाहन मुहैया कराते हैं फैजुल
  • अंतिम संस्कार में भी मदद करते हैं फैजुल

संकट में जरूरतमंदों की मदद के लिए आपका सभी सुविधाओं के साथ लैस होना या अमीर होना जरूरी नहीं है. इसके लिए बस दिल में जज़्बा होना चाहिए. ऐसे ही जज़्बे वाले शख्स हैं फैजुल. प्रयागराज के रहने वाले फैजुल कोरोना महामारी के संकटकाल में पूरे जी-जान से परेशान लोगों की मदद कर रहे हैं. इस नेक काम में दिन-रात जुटे होने की वजह से वो रमजान के पवित्र महीने में रोजे भी नहीं रख रहे हैं. 

कोरोना का खौफ इतना है कि संक्रमण के डर से सगे-संबंधी और करीबी भी जरूरतमंदों से मुंह फेर ले रहे हैं. कई लोग ऐसी दिक्कतों का भी सामना कर रहे हैं मरीज कि मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए ले जाने को शव-वाहन तक का इंतजाम नहीं हो पा रहा. अगर एम्बुलेंस या अन्य कोई वाहन इस काम के लिए तैयार भी होता है तो औने-पौने दाम मांगता है. इसके लिए भी लंबा इंतजार करना पड़ रहा है. ऐसे में लोगों को फैजुल मुफ्त में शव वाहन उपलब्ध करा रहे हैं. इसके अलावा जिन शवों का कोई दावेदार सामने नहीं आता, उनके अंतिम संस्कार का जिम्मा भी फैजुल ने ले रखा है. 

फैजुल ने दूसरे लोगों की मदद को अपनी जिंदगी का मकसद बना रखा है. उन्होंने इसी वजह से शादी भी नहीं की. अपने धर्म के पाबंद फैजुल पांच वक्त के नमाजी हैं. लेकिन कोरोना महामारी के दौरान जरूरतमंदों की ओर से मदद मांगते हुए उन्हें इतने फोन आते हैं कि इस बार वे रमजान में रोजे नहीं रख रहे हैं. फैजुल के मुताबिक मदद के काम में किसी तरह की रुकावट न हो, इसीलिए उन्होंने अल्लाह से माफी मांगते हुए रोजे नहीं रखने का फैसला किया. 

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फैजुल के मोबाइल की घंटी इन दिनों थमने का नाम नहीं ले रही. जब भी किसी जरूरतमंद का फोन आता है तो वो निकल पड़ते हैं मदद के लिए. फैजुल किसी से कोई पैसा नहीं मांगते. अगर कोई अपनी मर्जी से कुछ देता है तो उसे वो अल्लाह की नियामत समझ कर रख कर रख लेते हैं. इस पैसे का इस्तेमाल वे ड्राइवर के वेतन और वाहन के मेंटनेंस पर होने वाले खर्च के लिए ही करते हैं.  

मीरापुर इलाके के रहने वाले फैजुल गरीब जरूरतमंदों को पिछले एक दशक से मुफ्त शव वाहन मुहैया कराते आ रहे हैं. पहले वो रिक्शा ट्राली के जरिए ऐसा किया करते थे. इसके अलावा सामान इधर उधर पहुंचा कर वो घर के खर्च के लिए पैसे जुटाया करते थे. फिर उन्होंने जो पैसे जोड़ रखे थे और कुछ उधार लेकर 80 हजार रुपए में नीलामी के जरिए वाहन खरीदा. इसी वाहन को उन्होंने शव वाहन का रूप दे दिया. इन दिनों कोरोना से होने वाली मौतें इतनी ज्यादा हैं कि फैजुल दिन-रात लोगों की मदद करते ही बिता रहे हैं. फैजुल के मुताबिक उन्हें ऐसा करने से दिली तसल्ली मिलती है. प्रयागराज के लोग भी फैजुल के जज्बे की तारीफ करते नहीं थक रहे. 

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फैजुल ने अपने वाहन पर समाजसेवी भी लिख रहा है. वो धर्म, जाति, क्षेत्र किसी भी तरह का भेद न कर सभी जरूरतमंदों को मदद पहुंचाते हैं. किसी के भी एक कॉल पर वो मदद के लिए तैयार रहते हैं. पैरों में चप्पल, साधारण सी पैंट, शर्ट पहने फैजुल भले ही आर्थिक स्थिति से ज्यादा मजबूत न हों लेकिन इनका दिल सोने का है. फैजुल घर में वृद्ध मां के साथ रहते हैं. एक बहन की शादी हो गई है. दो भाई अलग रहते है.  

ऐसे दौर में जब कोरोना के खौफ से इंसान दूसरे इंसान के पास आने से बच रहा है, फैजुल का दूसरों की मदद का जज़्बा बेमिसाल है. 

 

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