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राष्ट्रीय राजनीति में रम रहा है मायावती का मन

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती इस बात से बखूबी वाकिफ हैं कि उत्तर प्रदेश की गद्दी से उतरने के बाद प्रदेश में यह चर्चा जोरों पर है कि अब मायावती सूबे में कम दिखती हैं. बहनजी भी इस बात से बखूबी वाकिफ हैं. इसलिए रविवार को जब उन्होंने लखनऊ के रमाबाई मैदान में ब्राह्मण भाईचारा सम्मेलन को संबोधित किया तो अपने लखनऊ न आने की वजह विस्तार से बताई.

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मायावती
मायावती

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती इस बात से बखूबी वाकिफ हैं कि उत्तर प्रदेश की गद्दी से उतरने के बाद प्रदेश में यह चर्चा जोरों पर है कि अब मायावती सूबे में कम दिखती हैं. बहनजी भी इस बात से बखूबी वाकिफ हैं. इसलिए रविवार को जब उन्होंने लखनऊ के रमाबाई मैदान में ब्राह्मण भाईचारा सम्मेलन को संबोधित किया तो अपने लखनऊ न आने की वजह विस्तार से बताई.

मायावती ने कहा कि एक तो वह संसद में पार्टी के संसदीय दल की नेता हैं इसलिए उन्हें संसद के लिए रणनीति तैयार करनी होती है. दूसरे यह कि उनके उत्तर प्रदेश पर ज्यादा ध्यान देने से उत्तर प्रदेश बीएसपी को कुछ फायदा जरूर हो सकता है, लेकिन इससे राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को खड़ा करने के बाबा साहेब अंबेडकर से लेकर कांशीराम तक के सपने को आघात लगेगा.

मायावती ने समझाया की मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित पांच राज्यों में चुनाव होने हैं और इनके लिए प्रत्याशियों का चयन और व्यापक रणनीति बनाना उनके लिए जरूरी है. अपने शुभचिंतकों को मायावती ने समझाया कि वह जुलाई के अंतिम सप्ताह के बाद एक बार फिर दिल्ली चली जाएंगी, क्योंकि संसद का मानसून सत्र शुरू होना है.

मायावती ने बड़ी साफगोई से अपना राष्ट्रीय एजेंडा अपने समर्थकों के सामने रखा है. दरअसल चार बार यूपी की मुखिया रहने के बाद मायावती जानती हैं कि उत्तर प्रदेश में अब उनके लिए और बड़ी कुर्सियां बची नहीं हैं. ऐसे में देश की राजनीति में हाथ आजमाने से दलित एजेंडा तो आगे बढ़ेगा ही, साथ ही कहीं कोई लंगड़ी सरकार केंद्र में आई तो उनके लिए कोई बड़ी भूमिका भी सामने आ सकती है. वैसे भी सपा, जदयू और तृणमूल जैसी पाटियों की तरह बीएसपी के पास भी 20 के फेर में ही लोकसभा सीटें हैं. ऐसे में सबका बाजार भाव बराबर ही बैठेगा.

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