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जो जीतेगा 'हस्तिनापुर' उसका ही होगा 'राजतिलक' !

प्रदेश में ऐसी कई सीटें हैं जहां पर किसी भी पार्टी के लिए जीतना शुभ होता है, जिससे राज्य में उसकी सरकार बन सके. ऐसी ही एक सीट है मेरठ जिले की हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र, यहां पर भी पहले चरण में ही वोटिंग है.

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कौन जीतेगा हस्तिनापुर !
कौन जीतेगा हस्तिनापुर !

पंजाब और गोवा में जबरदस्त वोटिंग के साथ पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की शानदार शुरुआत हुई है. अब सभी की नजरें देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश पर हैं. उत्तर प्रदेश में 11 फरवरी को पहले चरण की वोटिंग होगी जिसमें अलीगढ़, मेरठ, बागपत समेत 15 जिलों की 73 विधानसभा सीटों पर वोटिंग होनी है. सभी राजनीतिक दल अपने स्टार प्रचारकों के दम पर अपनी पूरी ताकत झोंक कर वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने में लगे हैं.

प्रदेश में ऐसी कई सीटें हैं जहां पर किसी भी पार्टी के लिए जीतना शुभ होता है, जिससे राज्य में उसकी सरकार बन सके. ऐसी ही एक सीट है मेरठ जिले की हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र, यहां पर भी पहले चरण में ही वोटिंग है. अगर अभी तक के चुनावी इतिहास को देखें तो अधिकतर बार ये हुआ है कि जिस भी पार्टी को हस्तिनापुर विधानसभा सीट पर जीत मिली है उसी पार्टी की सरकार लखनऊ में बनी है.

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क्या कहते हैं आंकड़ें
देश में 1952 में पहले चुनाव हुए लेकिन तब हस्तिनापुर विधानसभा क्षेत्र नहीं था. लेकिन 1957 के चुनावों में हस्तिनापुर को विधानसभा का दर्जा मिला और यह प्रदेश के चुनावी नक्शे पर आया. 1957, 1962 और 1967 में हस्तिनापुर से कांग्रेस के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की तो लखनऊ में भी कांग्रेस की सरकार बनी और क्रमश: सम्पूर्णानंद, चंद्रभानू गुप्ता, चरण सिंह मुख्यमंत्री बनें. वहीं 1969 में हुए चुनावों में यहां भारतीय क्रांति दल के प्रत्याशी ने जीत दर्ज की और राज्य में भारतीय क्रांति दल की सरकार बनी और चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री बनें.

जेपी आंदोलन का भी असर
1974 में कांग्रेस प्रत्याशी यहां से जीता तो कांग्रेस के एन डी तिवारी मुख्यमंत्री बने, 1977 में जेपी आंदोलन का असर यहां भी दिखा और यहां से जनता दल का प्रत्याशी जीता और लखनऊ में जनता दल के रामनरेश यादव मुख्यमंत्री बनें. 1980, 1985 में कांग्रेस ने अपनी जीत दोहराई और राज्य की सत्ता में उसकी वापसी हुई. 1989 में जनता दल का विधायक हस्तिनापुर से जीता तो लखनऊ में जनता दल की ओर से मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने. वहीं 1991 में कुछ समय के लिए कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बनें पर बाबरी मस्जिद विध्वंस के कारण उन्हें हटना पड़ा और 1993 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा तो चुनाव नहीं हो सके.

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क्षेत्रीय दलों की एंट्री
1993 के बाद से राज्य में क्षेत्रीय पार्टियों का बोलबाला रहा तो 1996 में हस्तिनापुर में हुए चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज की और लखनऊ में अस्थिर सरकार बनी, इस दौरान मायावती, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बने तो राष्ट्रपति शासन भी लगा. 2002 में यहां से सपा प्रत्याशी जीता तो राज्य में पहले सपा के समर्थन से मायावती मुख्यमंत्री बनी पर बाद में मुलायम सिंह ही मुख्यमंत्री बनें. फिर 2007 में बसपा और 2012 में सपा प्रत्याशी ने जीत दर्ज की तो राज्य में भी क्रमश: इनकी ही सरकार बनी.

अब कौन हैं मैदान में
2017 चुनावों के लिए समाजवादी पार्टी ने अपने मौजूदा विधायक प्रभुदयाल वाल्मिकी पर भरोसा जताया है तो बसपा से पूर्व विधायक योगेश वर्मा मैदान में हैं. बीजेपी की ओर से दिनेश खटीक और रालोद ने कुसुम प्रधान को अपना प्रत्याशी बनाया है.

क्यों खास है हस्तिनापुर?
हस्तिनापुर का महाभारत का अपना इतिहास रहा है, इसे महाभारतकालीन धरती भी कहा जाता है तो यहां पर जैन धर्म का पवित्र स्थान जंबूद्वीप भी है. पर्यटन के नजरिये से हस्तिनापुर का काफी महत्व है. अभी हाल ही में पेश किए गए बजट में केंद्र सरकार ने हस्तिनापुर को रेलवे लाइन से जोड़ने की पिछले 60 वर्षों की मांग को पूरा किया है.

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