
कोरोना के नए वैरिएंट 'Omicron' की आहट से खौफजदा भारतीयों के लिए अच्छी खबर है. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU)के जीव विज्ञान विभाग की मानें तो नया वैरिएंट Omicron भारतीय के लिए घातक नहीं होगा. इसका दावा यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञान विभाग के जीन विज्ञानी प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने कोरोना वायरस की जीनोम सीक्वेंसिंग स्टडी के बाद किया है.
प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि Omicron वैरिएंट के साथ कई सारे म्यूटेशन जुड़े हैं. इसी के आधार पर दिख रहा है कि यह इम्यून स्केप भी कर सकता है और जिनके अंदर लो लेवल की एंटीबॉडी है उनको फिर से प्रभावित कर सकता है. वहीं, वैक्सीन लगवा चुके लोगों को भी यह वैरिएंट किसी डिग्री तक उनकी इम्यूनिटी बाईपास कर सकता है. ऐसे में कहा जा सकता है कि यह वैरिएंट खतरनाक तो है, लेकिन अफ्रीका में फैल रहे इस नए वैरिएंट को समझने में कम से कम दो हफ्ते लगेंगे. तभी समझ में आ सकेगा कि इससे मृत्युदर कितनी है?
मई 2020 में ही ऑरिजनेट हुआ
अभी की प्रारंभिक विश्लेषण से पता चला है कि यह Omicron वैरिएंट मई 2020 में ही ऑरिजनेट हो चुका था. एड्स के मरीज में यह वैरिएंट काफी समय तक यह रहा और इसने म्यूटेशन किया. इइस वैरिएंट का R0

अफ्रीकन लोगों को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं
इस वैरिएंट के कम घातक होने के बारे में प्रोफेसर ने बताया, अभी अफ्रीका में चौथी लहर चल रही है और अफ्रीका में जितने वैरिएंट पैदा हुए हैं, उन्होंने अफ्रीकन लोगों को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाया है. वहीं, अफ्रीका से ही सारे मानव पैदा हुए हैं, चाहे इंडिया, यूरोप, एशिया या साउथ ईस्ट एशिया के हों. तो अफ्रीकन लोगों की इम्यूनिटी अन्य के मुकाबले ज्यादा मजबूत है. उसके बाद भारत का नंबर आता है. जितना असर अफ्रीका पर पड़ता है, उससे थोड़ा ज्यादा भारत पर पड़ता है.

5-10 % ही रिइंफेक्शन रेट
इंडिया के लिए प्लस प्वाइंट यह है कि सीरो सर्वे के मुताबिक, 70 प्रतिशत लोग संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं और 5-10 प्रतिशत ही रिइंफेक्शन रेट है. इसका मतलब यह है कि भारत में यह Omicron वैरिएंट फैला भी तो बहुत ही कम लोगों को रिइंफेक्शन होगा और भारत के लोग इस वैरिएंट से बचे रहेंगे.
इसलिए बचे रहेंगे भारतीय
प्रो. चौबे ने आगे बताया कि यह वैरिएंट इसलिए भारत में ज्यादा घातक नहीं होगा, क्योंकि इम्यूनिटी के अलावा भारत में लोगों की एवरेज उम्र काफी कम है और यहां जवान लोग ज्यादा हैं. दूसरी वजह एसी-टू जीन का हैप्लोटाइप है जो कि भारतीयों को प्रोटेक्ट करता है और भारत के 60% लोगों में पाया जाता है. इसके अलावा, निएंडरथल हैप्लोटाइप का भारत में कोई असर नहीं पड़ता है जो सीवियरिटी को बढ़ाता है. साथ ही लोगों का जींस और स्थानीय खानपान का तरीका भी उन्हें ज्यादा बेहतर तरीके से बचा रहा है.