एक युग था अटल-आडवाणी का, जब बीजेपी की रैलियों में मंचों की साज-सज्जा को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती थी. सादे लेकिन बड़े मंच और इनकी खूबसूरती बढ़ाने के लिए पार्टी के झंडे, पौधे लगे गमले और मंच के इर्द-गिर्द लगे भोपूं वाले लाउडस्पीकर. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के बाद बीजेपी अटल-आडवाणी के युग को पीछे छोड़कर नए कलेवर के साथ जनता के सामने है.
मोदी की रैलियों में इसे स्पष्ट देखा जा सकता है. मोदी यूपी में होने वाली हर रैली का मंच किसी न किसी इलाकाई थीम को लेकर तैयार किया जा रहा है. 19 अक्टूबर को कानपुर के गौतमबुद्घ पार्क में मोदी की रैली आयोजित हुई थी . इसीलिए मंच को उसी तरह पांच गुंबदों का स्वरूप दिया गया, जैसा कि बुद्घ पार्क में बना है.
25 अक्टूबर को झांसी में होने वाली मोदी की रैली के लिए मंच को रानी लक्ष्मीबाई के किले का स्वरूप दिया जा रहा है. यही नहीं, 8 नवंबर को बहराइच में मोदी की रैली के लिए भी थीम तलाशी जा रही है. बहराइच से आठ किलोमीटर दूर नानपारा मार्ग पर जिस जगह यह रैली आयोजित की जा रही है, उसे राजा सुहेलदेव स्थल नाम दिया जा रहा है. पार्टी के कई नेता युद्घ के लिए निकले घोड़े पर सवार राजा सुहेलदेव की थीम पर मंच का निर्माण चाहते हैं.
दूसरी ओर, कुछ नेता यहां के मंच को लाल किले का स्वरूप देना चाहते हैं. उनका तर्क है कि 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी ने बहराइच में जिस मंच से भाषण दिया था, उसे लाल किला का स्वरूप दिया गया था. उसी के बाद अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे.