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यूपी: सामने है लोकसभा चुनाव, बीजेपी-कांग्रेस-सपा नेतृत्व में कब तक बदलाव?

उत्तर प्रदेश में अब लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी समीकरण सेट किए जाने लगे हैं. कांग्रेस को सूबे में एक मजबूत चेहरे की तलाश है, जो पार्टी की वापसी की मजबूत बुनियाद रख सके. बीजेपी स्वतंत्र देव सिंह के विकल्प के रूप में ऐसे नेता को संगठन की कमान सौंपना चाहती है, जिससे सियासी समीकरण को सेट किया जा सके. वहीं, सपा में भी एक मजबूत चेहरे की तलाश है, जो पार्टी को नई ऊर्जा दे सके.

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अखिलेश यादव, स्वतंत्र देव सिंह, प्रियंका गांधी
अखिलेश यादव, स्वतंत्र देव सिंह, प्रियंका गांधी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कांग्रेस को ऐसे चेहरे की तलाश जो पार्टी में डाल सके जान
  • बीजेपी किसे स्वतंत्र देव सिंह की जगह बनाएगी नया अध्यक्ष
  • सपा चीफ अखिलेश यादव यूपी में क्या बदलेंगे प्रदेश अध्यक्ष

उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. पीएम नरेंद्र मोदी ने सोमवार रात सीएम आवास पर योगी सरकार के मंत्रियों के साथ बैठक कर गुड गवर्नेंस के टिप्स दिए, जिसे 2024 के चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. वहीं, तीन दशकों से हार का मुंह देख रही कांग्रेस के सामने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में मजबूत और भरोसेमंद चेहरे की तलाश है जबकि बीजेपी और सपा दोनों ही नए अध्यक्ष के लिए नए समीकरण साधना चाहती हैं. इस तरह बीजेपी से लेकर कांग्रेस और सपा तक में बदलाव की प्रतीक्षा है.

देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें उत्तर प्रदेश में हैं, जहां 80 संसदीय सीटें है. इस लिहाज से राजनीतिक दलों के लिए यूपी हमेशा अहम माना जाता है. बीजेपी दो बार से केंद्र की सत्ता में काबिज है तो यूपी का उसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इसी के चलते बीजेपी सूबे में किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती है. कांग्रेस की वापसी का सारा दारोमदार यूपी पर ही टिका हुआ है तो सपा का सियासी आधार इसी राज्य में है. इसीलिए तीनों ही प्रमुख दल फूंक-फूंक अपने सियासी कदम बढ़ा रहे हैं. 

बीजेपी की नजर नए समीकरण पर

बता दें कि स्वतंत्रदेव सिंह के योगी सरकार में मंत्री बनने के बाद उनकी जगह नए अध्यक्ष की नियुक्ति की जानी है. हालांकि, स्वतंत्रदेव को मंत्री बने हुए दो महीने हो रहे हैं, लेकिन अभी तक नए अध्यक्ष की तलाश पार्टी नहीं कर सकी. बीजेपी इस मंथन में जुटी है कि यूपी में संगठन की कमान किसी ब्राह्मण को सौंपी जाए या फिर किसी दलित को. साथ ही सूबे में पिछड़ों की आबादी सबसे अधिक है, जिसके चलते किसी पिछड़े को भी अध्यक्ष बनाया जाना विकल्प में है. 

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यूपी के सियासी समीकरण को देखते हुए बीजेपी अपना नया अध्यक्ष नियुक्त करना चाहती है ताकि 2014 और 2019 जैसे नतीजे 2024 में रिपीट किए जा सके. नए अध्यक्ष की नियुक्ति के साथ ही प्रदेश से लेकर जिलों तक नई टीम भी बनेगी. संगठन से जुड़े हुए कई नेता योगी सरकार में मंत्री बन गए हैं, जिसके चलते उनकी जगह नए चेहरों को शामिल किया जाना है. ऐसे में बीजेपी को अध्यक्ष से लेकर संगठन के तमाम पदों पर किन चेहरों की नियुक्ति होती है, उसकी प्रतीक्षा है. 

कांग्रेस को मजबूत चेहरे की तलाश

उत्तर प्रदेश के प्रभारी के तौर पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कई सियासी प्रयोग किए, लेकिन पार्टी की हालत बेहतर होने के बजाय पहले से भी खराब हो गई. 2022 के चुनाव में कांग्रेस सात सीटों से घटकर दो पर आई. कांग्रेस में संगठन सृजन से लेकर चुनाव में हर एक फैसले प्रियंका गांधी ने लिए, लेकिन चुनावी हार की जिम्मेदारी लेते हुए अजय कुमार लल्लू ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. 

अजय लल्लू के इस्तीफा देने के दो महीन के बाद भी कांग्रेस नया अध्यक्ष तलाश नहीं कर सकी है जबकि उनके साथ इस्तीफा देने वाले पंजाब और उत्तराखंड में नए अध्यक्ष नियुक्त कर दिए गए हैं. कांग्रेस ने उदयपुर के चिंतन शिविर में नीति, रणनीति और संगठन में बदलाव के लिए तीन दिन तक मंथन किया है. इस बैठक में उत्तर प्रदेश के भी प्रदेश पदाधिकारी और विशेष आमंत्रित सदस्य गए थे, जिनमें प्रियंका गांधी टीम के नेता शामिल थे. 

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कांग्रेस के चिंतन शिविर के बाद अब उत्तर प्रदेश में भी बड़े बदलाव होने की संभावना बन रही हैं. चिंतन के निष्कर्षों के तहत 'अनुभव' को कमान और युवाओं को संगठन में जिम्मेदारी देने का काम किया जाएगा. पीएल पुनिया से लेकर प्रमोद कृष्णम, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, विधायक वीरेंद्र चौधरी, नदीम जावेद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए चर्चा में है. इसके अलावा चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना है, जिन्हें सूबे के अलग-अलग जोन की जिम्मेदारी दी जाएगी. सूबे में कांग्रेस फिर से खड़ी होने के लिए प्रियंका गांधी को अपनी नई टीम खड़ी करनी होगी, जिनका अपना सियासी आधार और संघर्ष करने की ताकत हो, जो पार्टी में जान डाल सके.  

सपा में भी क्या होगा बड़ा बदलाव?

उत्तर प्रदेश में सपा भले ही सत्ता में वापसी न कर सकी हो, लेकिन प्रमुख विपक्षी दल बनने में कामयाब रही है. सपा के प्रदेश अध्यक्ष की कमान काफी लंबे समय से नरेश उत्तम पटेल के कंधों पर है, लेकिन वो कोई असर नहीं छोड़ सके हैं. ऐसे में सपा में नरेश उत्तम को बदलने की आवाज उठ रही है और प्रदेश से लेकर जिला स्तर पर संगठन में नए और संघर्षशील चेहरों को तवज्जो दिए जाने की मांग की जा रही है. सपा ने ईद के बाद संगठनात्मक बदलाव के संकेत दिए थे. 

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प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने सभी महानगर अध्यक्षों एवं जिलाध्यक्षों से विधानसभा क्षेत्रवार हार के कारणों पर रिपोर्ट मांगी और सक्रिय सदस्यों की सूची भी तलब की थी. विधानसभा क्षेत्रवार रिपोर्ट पर सपा शीर्ष नेतृत्व ने माहभर मंथन किया और बदलाव का प्लान बनाया है. अखिलेश यादव लगातार एक-एक जिले के नेताओं से मिल रहे हैं. शीर्ष नेतृत्व की रणनीति है कि लंबे समय से पार्टी में संघर्षशील रहने वाले युवाओं को पार्टी में आगे लाने की ताकि वे जनहित के मुद्दे को धमाकेदार तरीके से उठा सकें और 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी की जीत का ग्राफ बढ़ाया जा सके. 2024 का लोकसभा का चुनाव सपा को यूपी की सियासत में खुद को स्थापित रखने के लिए काफी अहम है. 

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