ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी गुरुवार को चुनावी थर्मामीटर से पश्चिम यूपी के सियासी मिजाज की थाह लेने के लिए निकले हैं. इसके लिए उन्होंने दिल्ली से सड़क के रास्ते गाजियाबाद, हापुड़, अमरोहा, संभल होते हुए मुरादाबाद पहुंचे. इस दौरान जगह-जगह उनका स्वागत हुआ. ओवैसी का ये दौरा पश्चिमी यूपी में मिशन-2022 का आगाज है, जहां मुस्लिम समुदाय निर्णायक भूमिका में है.
असदुद्दीन ओवैसी यूपी की सियासत में मुसलमानों को सत्ता में हिस्सेदारी को अहम मुद्दा बना रहे हैं. पिछले तीन दशकों से यूपी में सपा मुस्लिम समाज की पहली पसंद रही है. ओवैसी इसी समीकरण को तोड़ कर अपने लिए सूबे में राजनीतिक संभावनाएं तलाश रहे हैं. इसीलिए वो एक साथ योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव दोनों पर हमलावर हैं. ओवैसी ने अपना मुरादाबाद दौरा इस तरह से बनाया है कि वे पश्चिमी यूपी के कई जिलों के सियासी समीकरण साध सकें.
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ओवैसी दिल्ली से गाजियाबाद, हापुड़, अमरोहा, संभल होते हुए मुरादाबाद पहुचे. इस दौरान जगह जगह उनका जमकर स्वागत और सत्कार किया गया. इस तरह से उनकी कोशिश ये बताने और दिखाने की रही कि पश्चिमी यूपी में ओवैसी की हवा है.
ओवैसी गाजियाबाद के मसूरी इलाके में धौलाना विधानसभा कार्यालय का उदघाटन करने पहुंचे थे, जहां उन्हें देखने और सुनने के लिए कार्यकर्ता और उनके साथ आए लोगों की भीड़ बेकाबू हो गई. हालात इतने खराब हो गए कि लोग एक-दूसरे पर गिर पड़े. इस दौरान कुर्सियां टूट गईं और कुछ लोग चोटिल हो गए. हालत ऐसी हो गई कि ओवैसी बिना भाषण दिए ही कार्यक्रम स्थल से लौट गए.
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यूपी में मुस्लिम वोटों की सियासत
बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और सूबे की कुल 143 सीटों पर मुस्लिम अपना असर रखते हैं. इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी बीस से तीस फीसदी के बीच है जबकि 73 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान तीस फीसदी से ज्यादा हैं.
सूबे की करीब तीन दर्जन ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर जीत दर्ज कर सकते हैं और करीब 107 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक मतदाता चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं. सूबे की इन्हीं सीटों पर ओवैसी की खास नजर है और यह सीटें ज्यादाकर पश्चिम यूपी में हैं. ओवैसी खुद भी ऐलान कर चुके हैं कि यूपी में इस बार 100 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेंगे.
विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व
यूपी विधानसभा में अब तक के सबसे कम सिर्फ 24 मुस्लिम विधायक हैं. मुस्लिम विधायकों की यह हिस्सेदारी 6 फीसदी से भी कम है जबकि सूबे में मुसलमानों की आबादी 20 फीसदी है. इस लिहाज से 403 सदस्यों वाली विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या 75 होनी चाहिए. आजादी के बाद से यह अब तक सबसे कम आंकड़ा है.
ओवैसी की पार्टी 2022 के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों की नुमाइंदगी को एक बड़ा मुद्दा भी बना रही है. शौकत अली कहते हैं कि सपा और बसपा सिर्फ मुस्लिमों का वोट लेना जानती है, लेकिन प्रतिनिधित्व नहीं देना चाहती है. वहीं, ओवैसी की पार्टी के प्रवक्ता असीम वकार ने कहा कि इस बार यूपी में मुस्लिम सीएम या फिर डिप्टीसीएम जरूर बनेगा. मुसलमानों के वोटों पर तथाकथित सेकुलर दलों की ठेकेदारी नहीं चलेगी.
मुस्लिमों की कहां कितना भागेदारी
मुरादाबाद में 50.80 फीसदी, रामपुर में 50.57 फीसदी, सहारनपुर में 41.97 फीसदी, मुजफ्फरनगर में 41.11 फीसदी, शामली में 41.73 फीसदी, अमरोहा में 40.78 फीसदी, बागपत में 27.98 फीसदी, हापुड़ में 32.39 फीसदी, मेरठ में 34.43 फीसदी, संभल में 32.88 फीसदी, बहराइच में 33.53 फीसदी, बलरामपुर में 37.51 फीसदी, बरेली में 34.54 फीसदी, बिजनौर में 43.04 फीसदी और अलीगढ़ में 19.85 फीसदी आबादी मुस्लिम है. इन जिलों में उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला बहुत हद तक मुस्लिम मतदाताओं के ही हाथ में होता है.
वहीं, अन्य जिलों जैसे अमेठी में 20.06 फीसदी, गोंडा में 19.76 फीसदी, लखीमपुर खीरी में 20.08 फीसदी, लखनऊ में 21.46 फीसदी, मऊ में 19.46 फीसदी, महाराजगंज में 17.46 फीसदी, पीलीभीत 24.11 फीसदी, संत कबीर नगर में 23.58 फीसदी, श्रावस्ती में 30.79 फीसदी, सिद्धार्थनगर में 29.23 फीसदी, सीतापुर में 19.93 फीसदी और वाराणसी में 14.88 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है. इसके अलावा अन्य जिलों में यह आबादी 10 से 15 फीसदी के बीच है.